Saturday, May 27, 2023

दुनिया तिरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ

दुनिया तिरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ

तू चाँद मुझे कहती थी मैं डूब रहा हूँ 

अब कोई शनासा भी दिखाई नहीं देता 
बरसों मैं इसी शहर का महबूब रहा हूँ 

मैं ख़्वाब नहीं आप की आँखों की तरह था 
मैं आप का लहजा नहीं उस्लूब रहा हूँ 

रुस्वाई मिरे नाम से मंसूब रही है 
मैं ख़ुद कहाँ रुस्वाई से मंसूब रहा हूँ 

सच्चाई तो ये है कि तिरे क़र्या-ए-दिल में 
इक वो भी ज़माना था कि मैं ख़ूब रहा हूँ 

उस शहर के पत्थर भी गवाही मिरी देंगे 
सहरा भी बता देगा कि मज्ज़ूब रहा हूँ 

दुनिया मुझे साहिल से खड़ी देख रही है 
मैं एक जज़ीरे की तरह डूब रहा हूँ 

शोहरत मुझे मिलती है तो चुप-चाप खड़ी रह 
रुस्वाई मैं तुझ से भी तो मंसूब रहा हूँ 

फेंक आए थे मुझ को भी मिरे भाई कुएँ में 
मैं सब्र में भी हज़रत-ए-अय्यूब रहा हूँ 
Munavvar Rana 

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