दिल का ख़्याल तो किया करें
हर लकीरें मुकद्दर बदला करती
कितने दर्द से गुज़रता हूँ हर रोज़
याद नहीं आख़िरी आहा भी अब
मैं तो उस ज़ख़्म ही को भूल गया
दर्द क्या था उसी को भूल गया
सब दाव पे रख कर हार गया हूँ
अब अपना रिश्ता कैसे रखूं ज़िंदा
जो ज़िंदगी बची है उसे मत गंवाइये
बेहतर ये है कि ग़म को ही भुला दें
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