Sunday, May 28, 2023

ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा

ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा 

ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा 

अपने दिल को भी बताऊँ न ठिकाना तेरा 
सब ने जाना जो पता एक ने जाना तेरा 

तू जो ऐ ज़ुल्फ़ परेशान रहा करती है 
किस के उजड़े हुए दिल में है ठिकाना तेरा 

आरज़ू ही न रही सुब्ह-ए-वतन की मुझ को 
शाम-ए-ग़ुर्बत है अजब वक़्त सुहाना तेरा 

ये समझ कर तुझे ऐ मौत लगा रक्खा है 
काम आता है बुरे वक़्त में आना तेरा 

ऐ दिल-ए-शेफ़्ता में आग लगाने वाले 
रंग लाया है ये लाखे का जमाना तेरा 

तू ख़ुदा तो नहीं ऐ नासेह-ए-नादाँ मेरा 
क्या ख़ता की जो कहा मैं ने न माना तेरा 

रंज क्या वस्ल-ए-अदू का जो तअ'ल्लुक़ ही नहीं 
मुझ को वल्लाह हँसाता है रुलाना तेरा 

काबा ओ दैर में या चश्म-ओ-दिल-ए-आशिक़ में 
इन्हीं दो-चार घरों में है ठिकाना तेरा 

तर्क-ए-आदत से मुझे नींद नहीं आने की 
कहीं नीचा न हो ऐ गोर सिरहाना तेरा 

मैं जो कहता हूँ उठाए हैं बहुत रंज-ए-फ़िराक़ 
वो ये कहते हैं बड़ा दिल है तवाना तेरा 

बज़्म-ए-दुश्मन से तुझे कौन उठा सकता है 
इक क़यामत का उठाना है उठाना तेरा 

अपनी आँखों में अभी कौंद गई बिजली सी 
हम न समझे कि ये आना है कि जाना तेरा 

यूँ तो क्या आएगा तू फ़र्त-ए-नज़ाकत से यहाँ 
सख़्त दुश्वार है धोके में भी आना तेरा 

'दाग़' को यूँ वो मिटाते हैं ये फ़रमाते हैं 
तू बदल डाल हुआ नाम पुराना तेरा 

Dagh Dehalvi

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