तक़दीर ही अपनी ऐसी थी,
इसमें तेरा शायद कसूर ना था,
पहली नज़र में दिल दे दिया,
कहां ख़बर थी,
तुम में वफ़ा का कोई दस्तूर न था।
तुम सितमगर, दिल फिर भी भूलता नहीं तुम्हे,
दिल मेरा पहले तो कभी
इतना मजबूर ना था।
ना हमने आवाज़ लगाईं, ना तुम आए बरसों
घर हमारा इतना भी तो दूर ना था।
माना की तुमने बदल ली राहें अपनी,
हाल तक भी नहीं पूछते,
तुम में पहले तो इतना गुरूर न था।
देखा था तुम्हे कल, नए हमसफ़र के संग,
दिखावा कर रहे थे खुशी का,
पर तुम्हारे चेहरे में अब
वो पहले सा नूर न था....
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