सब्र का नतीज़ा है कि अभी ज़िंदा हूँ
वरना ग़म ने तो मुझे मार ही डाला था
कभी कभी राज़ का पर्दा उठाना पड़ता है
वरना हर शख़्स ख़ुद को शहंशाह मनाता है
दौर-ए-आख़िर में रखा जाएगा आईना
दौर-ए-लम्'आँ दौर-ए-इब्तिला ना होना
मैं'ने औरों से सुना है कि परेशान हूँ मैं
क्यूँ परेशान करे दूर का बसने वाला होगा
जब ख़ुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा
कितने ओर कदम बढ़ा दिए जाएं मंजिल तक
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