Wednesday, May 31, 2023

सब्र का नतीज़ा है कि अभी ज़िंदा हूँ

सब्र का नतीज़ा है कि अभी ज़िंदा हूँ
वरना ग़म ने तो मुझे मार ही डाला था 

कभी कभी राज़ का पर्दा उठाना पड़ता है 
वरना हर शख़्स ख़ुद को शहंशाह मनाता है 

दौर-ए-आख़िर में रखा जाएगा आईना 
दौर-ए-लम्'आँ दौर-ए-इब्तिला ना होना 

मैं'ने औरों से सुना है कि परेशान हूँ मैं 
क्यूँ परेशान करे दूर का बसने वाला होगा 

जब ख़ुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा 
कितने ओर कदम बढ़ा दिए जाएं मंजिल तक

इस बार फिर से मोहब्बत हो गई

ना चाहते हुए भी

इस बार फिर से 
मोहब्बत हो गई 
और हद ये थी कि 
इस बार फिर 
तुम्ही ही से 
हाँ ये बात जरूर है 
इस बार पहले से सबकुछ 
अलग सा था 
हम ठीक उस किनारे 
तक जा कर लौटे थे 
जहाँ हमेशा के लिए 
बिछड़ना तय था 
इस बार हम दोनों 
पिछली बार से 
बिल्कुल अलग थे 
दो अजनबी प्यार में हो 
जैसे इस बार पहले 
की तरह सपने नहीं थे 
उम्मीदें नहीं थी 
अपेक्षायें भी नहीं थी 
बस दो लोग थे 
जिन्हें हर हाल में 
एक दूसरे का साथ 
निभाना था, क्योंकि 
वो प्यार में थे 
ना जाने क्या था 
जो लौटा लाया था हमें 
अपरिभाषित सा 
अपहचाना सा कुछ 
बस कुछ था 
और फिर से हम 
प्रेम में थे 

लगे हैं मुझे आजमाने में

तुम्हारी हमारी सुनाने में भाई, 

लगे हैं सभी इस ज़माने में भाई। 

खुदी को परखने की फुर्सत नहीं है, 
लगे हैं मुझे आजमाने में भाई। 

मोहब्बत से ज़्यादा ग़ज़ल है ज़रूरी, 
दिलों की ये दूरी मिटाने में भाई। 

मोहब्बत किसी वक़्त में थी इबादत, 
सुकूँ अब न है दिल लगाने में भाई। 

'शिखा' ग़म छुपाने का है ये तरीका, 
लगे हैं सभी मुस्कुराने में भाई। 

कष्ट ये दाल रोटी का जाता नहीं, 
पेट खाली हो गर कुछ भी भाता नहीं। 

मीर भी इस ज़माने में रहता अगर, 
उल्फ़तों के तराने सुनाता नहीं। 

बिजली,पानी नहीं ना सड़क ही यहाँ, 
इसलिए इस गली कोई आता नहीं। 

बेवजह डरते हो इस ज़माने से तुम, 
आदमी हैं सभी ये विधाता नहीं। 

दुनिया में पैसे वाले मिलेंगे बहुत, 
पर दुआ अब कोई भी कमाता नहीं। 

रास्ता ख़ुद बनाना है सबको 'शिखा', 
राह मंज़िल की कोई बताता नहीं। 

तेरी महफिल में क्या आने-जाने लगे, 
तब से हम भी ग़ज़ल गुनगुनाने लगे। 

कल तलक चोर थे आज देखो वही, 
आईना इस जहां को दिखाने लगे। 

देखिए अब यहां क्या से क्या हो गया, 
की ख़ुदी को ख़ुदा सब बताने लगे। 

लूट है, है वबा और मुश्किल घड़ी, 
आदमी, आदमी को सताने लगे। 

ऐ 'दोस्त' तुम कहो अब कहां जाये हम? 
आसमां ये ज़मीं सब डराने लगे। 

जो ज़िंदगी बची है उसे मत गंवाइये

दिल का ख़्याल तो किया करें

हर लकीरें मुकद्दर बदला करती 

कितने दर्द से गुज़रता हूँ हर रोज़ 
याद नहीं आख़िरी आहा भी अब 

मैं तो उस ज़ख़्म ही को भूल गया 
दर्द क्या था उसी को भूल गया 

सब दाव पे रख कर हार गया हूँ 
अब अपना रिश्ता कैसे रखूं ज़िंदा 

जो ज़िंदगी बची है उसे मत गंवाइये 
बेहतर ये है कि ग़म को ही भुला दें

जब हँसने लग गया तो रुलाया गया मुझे

गुजरा हुआ फकीर बताया गया मुझे

मेरे ही घर में पूछ के लाया गया मुझे। 

सबका यही सबाल था के हँसता क्यों नहीं 
जब हँसने लग गया तो रुलाया गया मुझे। 

पहले दिखाई सबने गुलाबों की सेज फिर 
काँटो के बिस्तरो पे सुलाया गया मुझे। 

हां इश्क़ का मुझे भी बड़ा शौक था मगर 
ये बिन दवा का रोग बताया गया मुझे। 

जब शक हुआ उन्हें तो मिरी कब्र खोदकर 
नश्तर चला चला के दिखाया गया मुझे। 

पहले तो मुस्कुराए बो ख़ंजर लिए हुए 
फिर बाद में गले से लगाया गया मुझे। 

गैरों को देखती थी मिरा नाम लेके वो 
जिस आंख का सितारा बताया गया मुझे। 

जहराब से भरा हुआ पैमाना जाम का 
हाथों से मुस्कुरा के पिलाया गया मुझे। 

पहले कहा गया कि यहीं बैठ जा
मैं बैठने चला तो भगाया गया मुझे।

तुम्हारे दक्ष हाथ जब मेरी परिपक्व देह में स्त्री खोज रहे थे

तुम्हारे दक्ष हाथ 

जब मेरी परिपक्व देह में 
स्त्री खोज रहे थे 
तो यह मेरी प्रीति के कई जन्मों की यात्रा थी 

मैंने पहचाना तुम्हारा स्पर्श 
तुम्हारी गति 
तुम्हारा दबाव 
तुम्हारी लय 

हमारी मृदुल स्मृतियों में मैं एक भावपूर्ण नृत्यांगना थी 
और 
एक उपासक भी 
उस पहाड़ की 
जिस पर देवी का मंदिर था 
प्रसाद रूप में अर्पित किए गेंदा-पुष्पों और सिंदूर से मेरी आस्था कभी नही जुड़ी 

मेरी आस्था थी देवी की नीली रहस्यमय जीभ में 
मेरी आस्था थी उसकी फैली बड़ी लाल जालों से भरी आँखों में 
और 
उसके क्रोधित सौंदर्य में उठे पैर की विनाशक आभा में 

महिषासुर 
बलशाली भुजाओं वाला महिषासुर वहाँ अपनी अंतिम निद्रा में था 

इस दृश्य का भय 
केवल तुम जानते थे 
और मेरी आस्थाओं को भी केवल तुम देख पाते थे 

तब भी तुम्हारे हाथ दक्ष थे 
पतंग उड़ाने में 
बेर तोड़ने में 
संतरे छीलने में 
और 
प्रथम रक्तस्त्राव की असहनीय पीड़ा से बहे मेरे आँसू पोंछने में 

आज भी तुम्हारे हाथ दक्ष हैं 
मुझमें एक स्त्री खोजने में! 

पूनम अरोड़ा


तू इस तरह से मिरी ज़िंदगी में शामिल है

तू इस तरह से मिरी ज़िंदगी में शामिल है

जहाँ भी जाऊँ ये लगता है तेरी महफ़िल है 

हर एक रंग तिरे रूप की झलक ले ले 
कोई हँसी कोई लहजा कोई महक ले ले 

ये आसमान ये तारे ये रास्ते ये हवा 
हर एक चीज़ है अपनी जगह ठिकाने से 

कई दिनों से शिकायत नहीं ज़माने से 
मिरी तलाश तिरी दिलकशी रहे बाक़ी 

ख़ुदा करे कि ये दीवानगी रहे बाक़ी 

Nida Fazli


Monday, May 29, 2023

सिर्फ़ इतने जुर्म पर हंगामा होता जाए है

सिर्फ़ इतने जुर्म पर हंगामा होता जाए है 

तेरा दीवाना तिरी गलियों में देखा जाए है 

आप किस किस को भला सूली चढ़ाते जाएँगे 
अब तो सारा शहर ही मंसूर बनता जाए है 

दिलबरों के भेस में फिरते हैं चोरों के गिरोह 
जागते रहियो कि इन रातों में लूटा जाए है 

तेरा मय-ख़ाना है या ख़ैरात-ख़ाना साक़िया 
इस तरह मिलता है बादा जैसे बख़्शा जाए है 

मय-कशो आगे बढ़ो तिश्ना-लबो आगे बढ़ो 
अपना हक़ माँगा नहीं जाता है छीना जाए है 

मौत आई और तसव्वुर आप का रुख़्सत हुआ 
जैसे मंज़िल तक कोई रह-रौ को पहुँचा जाए है 


Kaif Bhopali



कुछ अपना ही था।

एक यार मिला जो

अपना सा था 
बातें तो हो ही जाती थी. 
पर कुछ अधूरा सा था 

वो तो कभी था ही नहीं 
बस उसके साथ बिताए 
हुवे कुछ पल कि कुछ 
यादें ही रह गई थीं 

अब फिर कभी हो सकेगा 
तो ज़रूर मिलना होगा 
ना होकर भी शायद वो 
यूं कुछ अपना सा ही था।

अब तो लौट आओ

सीख गया मैं गलती से अपने अभी कितना सजा बाकी है

अब तो लौट आओ फिर से इतना इंतजार काफी है 

रुक जाएंगी सांसे एक दिन फिर हमें दोष ना देना 
हम हर दिन है तेरे इंतजार में कहीं मतलबी मत कह देना 

भले ही महफिल में आते हैं जिक्र बस तुम्हारा होता है 
शायरी जो भी हम करते हैं वो प्यार तुम्हारा होता है । 

हम नहीं चल पाएंगे तुम बिन अब कितना हमे सताओगी 
दुनिया अधूरी सी लगती है अभी कितना हमे रुलाओगी । 

कुसूर तो मेरा ही है सब जो तुम्हें जाने के लिए कहा । 
गलत वक्त में हमने जो ये गलत फैसला लिया । 

जो गया उसे अब भूल कर हम नई शुरुआत करते हैं 
हर वक्त में साथ चलकर जीवन में कुछ बड़ा करते हैं । 

लिखता हूं जो हर दिन ये बस तुम्हारे लिए 
महफिल में भी आता हूं तो सिर्फ तुम्हारे लिए । 

अब हमें इंतजार है तुम्हारे लौटने का 
कई रात हम जागें है वक्त है बस तुमसे मिलने का । 

हमें इस बार भी यूं ही निराश मत करना 
ये रातें भी सवाल करती हैं इन्हें इस बार जवाब देना ? ।

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता 

तिरे वा'दे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना 
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ए'तिबार होता 

तिरी नाज़ुकी से जाना कि बँधा था अहद बोदा 
कभी तू न तोड़ सकता अगर उस्तुवार होता 

कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को 
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता 

ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह 
कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता 

रग-ए-संग से टपकता वो लहू कि फिर न थमता 
जिसे ग़म समझ रहे हो ये अगर शरार होता 

ग़म अगरचे जाँ-गुसिल है प कहाँ बचें कि दिल है 
ग़म-ए-इश्क़ गर न होता ग़म-ए-रोज़गार होता 

कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है 
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता 

ये मसाईल-ए-तसव्वुफ़ ये तिरा बयान 'ग़ालिब' 
तुझे हम वली समझते जो न बादा-ख़्वार होता

दिल करता रोक लूं

जब भी तुम

मुलाकात के बाद 
जाने को होती हो, 
दिल करता रोक लूं, 
पर कैसे, 
तुम बिन आंखें उदास हो जाती 
बातें ख़ामोश हो जाती 
दिल करता 
जिंदगी भर अपने पास रख लूं 
पर कोई वजह, 
कोई बहाना मिलता नहीं। 
क्यूं इतना दिल में समाती जाती हो, 
इक पल की जुदाई में भी 
जान लिए जाती हो, 
मेरी जान! बस इतना अहसान कर दो 
रुक भी जाओ की 
मुझे जीने का मोहलत दे दो। 
तुम जो कह जाती, फिर मिलेंगे, 
जाने से आने तक का इंतजार,उफ्फ 
इक कयामत सा गुजरता, 
तुम क्यूं मेरी बेचैनियों का इम्तहान लेती हो, 
रुक जाओ, मत जाओ ना। 

10 उम्दा शायरी

1.जुगनूओ को हाल सुनाता रहा रातभर ,

वह हसीं ख्वाबों में आता रहा रात भर 
इक सुरूर था उसके आँखों में इस कदर 
मैं उसके बातों में आता रहा रात भर । 

2.सब कुछ मिला इस शहर हमें, मगर सुकून नहीं मिला, 
में तलाशता रहा हवाओं में, मगर तेरे खुश्बू नहीं मिला । 

3.तेरी इश्क़ के स्याही उतार दिया मैंने मेरे दिल के पन्नों पर, 
अब इत्र-इत्र के खुश्बू सा बहता तेरा नाम इन धड़कनों पर । 

4.यह जो रातो का नींद कहीं खो गया था, 
मेरा तेरी आंखों के बिस्तर पर मिला है, मुझे ! 

5.हवाओं ने खबर तो दी होगी उन्हें, की शहर में आऊंगा उनके, 
खिड़की पर बैठी होगी कबसे, की नजर में आऊंगा उनके ।

6.एक ख्याल तुम्हारा, तन्हाई से भरी रातें कई, 
एक जिक्र तुम्हारा, निकल पड़ते हैं बातें कई । 

7.मेरे पूरा जीवन झूठ पे टिका है, 
सच हैं तो सिर्फ तुमसे मोहब्बत करना । 

8.वह याद ही नहीं करती हमें, 
और हमें उनके सिवा और कोई याद ही नहीं... 

9.मेरे हालात पे तब्सिरा(comment) करते हैं लोग 
जब ये भी मुहब्बत से गुजरे तो जानें, 
ये हिज्र(बिछड़ना) क्या होती है ये क्या जानें 
वो आखरी मुलाकात से गुजरे तो जानें । 

10.मैंने ख्वाबों को कभी मरने नहीं दिया 
तेरे आँचल गमों से कभी भरने नहीं दिया, 
मेरे दिल के वीरानियों में बहुत आए पनाहगार मगर 
हक सिर्फ तुम्हारा था किसी गैर को ठहरने नहीं दिया। 

तुझे हर पल याद किए जा रहा हूं

बारिशों में अपने इश्क़ के

हाथों में तेरा हाथ ले 
हसरतों को 
जिए जा रहें हैं। 
हम इश्क़ की गलियों में 
बेखौफ जिए जा रहें हैं। 
बारिशों में अपने इश्क़ के 
हाथों में तेरा हाथ ले 
दीवानों सा उड़ रहे हैं। 
बारिशों में अपने प्यार की 
हम तुम भींगे जा रहें हैं। 
हम तुम भींगे जा रहें है 
बारिशों में अपने इश्क की 
हम जिएं जा रहें हैं। 
दर्द जुदाई का पिए जा रहा हूं। 
तुझे पल पल याद किए जा रहा हूं 
तुझे हर पल याद किए जा रहा हूं।

Sunday, May 28, 2023

Majrooh Sultanpuri Shayari

कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा

हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा


मिलने को यूँ तो मिला करती हैं सब से आँखें
दिल के आ जाने के अंदाज़ जुदा होते हैं

'मजरूह' लिख रहे हैं वो अहल-ए-वफ़ा का नाम
हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह 


मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया 

हमारे लब न सही वो दहान-ए-ज़ख़्म सही
वहीं पहुँचती है यारो कहीं से बात चले 


हादसे और भी गुज़रे तिरी उल्फ़त के सिवा
हाँ मुझे देख मुझे अब मेरी तस्वीर न देख 

वो लजाए मेरे सवाल पर कि उठा सके न झुका के सर
उड़ी ज़ुल्फ़ चेहरे पे इस तरह कि शबों के राज़ मचल गए 


ये रुके रुके से आँसू ये दबी दबी सी आहें
यूँही कब तलक ख़ुदाया ग़म-ए-ज़िंदगी निबाहें 

शब-ए-इंतिज़ार की कश्मकश में न पूछ कैसे सहर हुई
कभी इक चराग़ जला दिया कभी इक चराग़ बुझा दिया 

कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा
हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा 

वो तुम्ही तो हो

मेरी जिंदगी


वो तुम्ही तो हो 
मेरी हर खुशी 
वो तुम्ही तो हो 
मेरी उम्मीद 
वो तुम्हीं तो हो 
दिल की धड़कनें 
वो तुम्हीं तो हो 
मेरे हमनवां 
वो तुम्हीं तो हो 
मेरी हर खुशी 
वो तुम्हीं तो हो 
मेरी चाहत 
मेरी ज़िंदगी 
वो तुम्हीं तो हो 
वो तुम्ही तो हो 

ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा

ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा 

ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा 

अपने दिल को भी बताऊँ न ठिकाना तेरा 
सब ने जाना जो पता एक ने जाना तेरा 

तू जो ऐ ज़ुल्फ़ परेशान रहा करती है 
किस के उजड़े हुए दिल में है ठिकाना तेरा 

आरज़ू ही न रही सुब्ह-ए-वतन की मुझ को 
शाम-ए-ग़ुर्बत है अजब वक़्त सुहाना तेरा 

ये समझ कर तुझे ऐ मौत लगा रक्खा है 
काम आता है बुरे वक़्त में आना तेरा 

ऐ दिल-ए-शेफ़्ता में आग लगाने वाले 
रंग लाया है ये लाखे का जमाना तेरा 

तू ख़ुदा तो नहीं ऐ नासेह-ए-नादाँ मेरा 
क्या ख़ता की जो कहा मैं ने न माना तेरा 

रंज क्या वस्ल-ए-अदू का जो तअ'ल्लुक़ ही नहीं 
मुझ को वल्लाह हँसाता है रुलाना तेरा 

काबा ओ दैर में या चश्म-ओ-दिल-ए-आशिक़ में 
इन्हीं दो-चार घरों में है ठिकाना तेरा 

तर्क-ए-आदत से मुझे नींद नहीं आने की 
कहीं नीचा न हो ऐ गोर सिरहाना तेरा 

मैं जो कहता हूँ उठाए हैं बहुत रंज-ए-फ़िराक़ 
वो ये कहते हैं बड़ा दिल है तवाना तेरा 

बज़्म-ए-दुश्मन से तुझे कौन उठा सकता है 
इक क़यामत का उठाना है उठाना तेरा 

अपनी आँखों में अभी कौंद गई बिजली सी 
हम न समझे कि ये आना है कि जाना तेरा 

यूँ तो क्या आएगा तू फ़र्त-ए-नज़ाकत से यहाँ 
सख़्त दुश्वार है धोके में भी आना तेरा 

'दाग़' को यूँ वो मिटाते हैं ये फ़रमाते हैं 
तू बदल डाल हुआ नाम पुराना तेरा 

Dagh Dehalvi

तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त

तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त 

तू मिरी पहली मोहब्बत थी मिरी आख़िरी दोस्त 

लोग हर बात का अफ़्साना बना देते हैं 
ये तो दुनिया है मिरी जाँ कई दुश्मन कई दोस्त 

तेरे क़ामत से भी लिपटी है अमर-बेल कोई 
मेरी चाहत को भी दुनिया की नज़र खा गई दोस्त 

याद आई है तो फिर टूट के याद आई है 
कोई गुज़री हुई मंज़िल कोई भूली हुई दोस्त 

अब भी आए हो तो एहसान तुम्हारा लेकिन 
वो क़यामत जो गुज़रनी थी गुज़र भी गई दोस्त 

तेरे लहजे की थकन में तिरा दिल शामिल है 
ऐसा लगता है जुदाई की घड़ी आ गई दोस्त 

बारिश-ए-संग का मौसम है मिरे शहर में तो 
तू ये शीशे सा बदन ले के कहाँ आ गई दोस्त 

मैं उसे अहद-शिकन कैसे समझ लूँ जिस ने 
आख़िरी ख़त में ये लिक्खा था फ़क़त आप की दोस्त 

Ahmad Faraz



पुरानी यादों को भुलाकर क्या फिर से इकरार करोगे

पुरानी यादों को भुलाकर क्या फिर से इकरार करोगे, 

मैं लौट के आ रही हूं वापस क्या फिर से प्यार करोगे? 

तुझसे बात करना तो सिर्फ़ बहाना है।

तुझसे बात करना तो सिर्फ़ बहाना है।

मक़्सद तो बस तिरे नज़दीक आना है।। 

सुना था मैंने मोहब्बत ख़ुदा का नाम है। 
लगता है ये भी महज़ इक फ़साना है।। 

किसी से इतनी वाबस्तगी न रख बंदे। 
ऋये दुनिया फ़क़त इक सरायखाना है।। 

हर शख़्स अपनी दीवानगी में है दीवाना। 
पल भर में अंदाज उसका जारेहाना है।। 

ज़िंदगी कुछ भी नहीं एक दरिया के सिवा। 
इस और से 'दोस्त' उस और जाना है।। 

जो गुज़रा साथ हमारे वो हादसा ठहरा

है मेरी बात अलग यारों ने मारा मुझको,
तुम्हें है मारा अदू ने ये अलग बात हुई। 
जो गुज़रा साथ हमारे वो हादसा ठहरा, 
जो गुज़रा साथ आपके तो वारदात हुई। 

Saturday, May 27, 2023

कैसे कहूँ अब नहीं होती मुलाकात मेरी तुम्हारी

कैसे कहूँ अब नहीं होती मुलाकात मेरी तुम्हारी,

अब भी होती है मुलाकात मेरी तुम्हारी, 
रोज़ाना होती है , 
हर सुबह हर शाम होती है, 
कहने को तुम नहीं हो साथ मेरे, 
मुलाकात तो फिर भी हो ही जाती है, 
बंद आँखों में चेहरा दिख जाता है तुम्हारा, 
दिल से दिल की बात भी हर रोज़ होती है, 
दिखाई नहीं देते अब तुम मुझे कहीं भी, 
बैठते भी नहीं अब पास मेरे, 
मगर यादों से तुम्हारी मेरी बात हर रोज़ होती है, 
साथ मेरे चलते नहीं थाम कर तुम हाथ मेरा, 
तुम्हारी परछाई अब मेरे साथ साथ चलती है, 
पुकारते नहीं अब तुम नाम मेरा, 
कानों में मेरे आवाज़ तुम्हारी मगर, 
रह रह कर सुनाई देती है, 
बीत गया महीना सावन का, 
आँखों से मेरे रिमझिम बरसात अब भी होती है, 
अब भी होती है मुलाकात मेरी तुम्हारी, 
कैसे कहूँ अब नही होती मुलाकात मेरी तुम्हारी।

रात-भर जागकर भी दर्द ही उठाया हूँ

ऐ जिन्दगी तुझे अब तक ना समझ पाया हूँ

जिसे भी देखा रोता हुआ ही पाया हूँ 

दिलासा फूलों की काँटों में ही उलझाया 
रात-भर जागकर भी दर्द ही उठाया हूँ 

सवाल उलझता गया उलझन अभी भी बाकी है 
टूटा जो आइना हर बार समेटता आया हूँ 

आँखों में ख्वाब हसीन दिल में उम्मीद बड़ी 
शराफ़त तड़फी बस इल्ज़ाम ही तो पाया हूँ 

वरना यादें जीना मुश्किल कर देती हैं

हम अब किसे आईना दिखाएं

हर शख़्स आईना लिए घूमते है 

कि मैंने ख़ुद को नहीं रोका है 
वक़्त की ही थोड़ी पाबंदियाँ है 

बदलते वक़्त ने बदले मिज़ाज 
फ़िर मैं क्या उम्मीद रक्खूँ किसी से 

वक़्त को क्यूँ भला बुरा कहिए 
बेहतर है कि ख़ुद-ब-ख़ुद को देखें 

अच्छा है कि हम वक़्त के मुसाफ़िर 
वरना यादें जीना मुश्किल कर देती हैं

हमें पूर्ण इसका पूर्व आभास था

मन के निकट एक एहसास था ।

दूर हो के भी जो बहुत पास था ।। 
टूटेगा एक दिन यह विश्वास था । 
हमें पूर्ण इसका पूर्व आभास था ।। 

दुनिया तिरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ

दुनिया तिरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ

तू चाँद मुझे कहती थी मैं डूब रहा हूँ 

अब कोई शनासा भी दिखाई नहीं देता 
बरसों मैं इसी शहर का महबूब रहा हूँ 

मैं ख़्वाब नहीं आप की आँखों की तरह था 
मैं आप का लहजा नहीं उस्लूब रहा हूँ 

रुस्वाई मिरे नाम से मंसूब रही है 
मैं ख़ुद कहाँ रुस्वाई से मंसूब रहा हूँ 

सच्चाई तो ये है कि तिरे क़र्या-ए-दिल में 
इक वो भी ज़माना था कि मैं ख़ूब रहा हूँ 

उस शहर के पत्थर भी गवाही मिरी देंगे 
सहरा भी बता देगा कि मज्ज़ूब रहा हूँ 

दुनिया मुझे साहिल से खड़ी देख रही है 
मैं एक जज़ीरे की तरह डूब रहा हूँ 

शोहरत मुझे मिलती है तो चुप-चाप खड़ी रह 
रुस्वाई मैं तुझ से भी तो मंसूब रहा हूँ 

फेंक आए थे मुझ को भी मिरे भाई कुएँ में 
मैं सब्र में भी हज़रत-ए-अय्यूब रहा हूँ 
Munavvar Rana 

तुमको निहारता हूँ सुबह से ऋतम्बरा

तुमको निहारता हूँ सुबह से ऋतम्बरा

अब शाम हो रही है मगर मन नहीं भरा 

ख़रगोश बन के दौड़ रहे हैं तमाम ख़्वाब 
फिरता है चाँदनी में कोई सच डरा-डरा 

पौधे झुलस गए हैं मगर एक बात है 
मेरी नज़र में अब भी चमन है हरा-भरा 

लम्बी सुरंग-से है तेरी ज़िन्दगी तो बोल 
मैं जिस जगह खड़ा हूँ वहाँ है कोई सिरा 

माथे पे हाथ रख के बहुत सोचते हो तुम 
गंगा क़सम बताओ हमें क्या है माजरा  

दुष्यंत कुमार 

तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो

तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो, 

जो मिले ख़्वाब में वो दौलत हो


मैं तुम्हारे ही दम से ज़िंदा हूँ 
मर ही जाऊँ जो तुम से फ़ुर्सत हो 

तुम हो ख़ुशबू के ख़्वाब की ख़ुशबू 
और उतनी ही बे-मुरव्वत हो 

तुम हो पहलू में पर क़रार नहीं 
या'नी ऐसा है जैसे फ़ुर्क़त हो 

तुम हो अंगड़ाई रंग-ओ-निकहत की 
कैसे अंगड़ाई से शिकायत हो 

किस तरह छोड़ दूँ तुम्हें जानाँ 
तुम मिरी ज़िंदगी की आदत हो 

किस लिए देखती हो आईना 
तुम तो ख़ुद से भी ख़ूब-सूरत हो 

दास्ताँ ख़त्म होने वाली है 
तुम मिरी आख़री मोहब्बत हो  


Jaun Elia

Friday, May 26, 2023

बुझ चुकी है शमा जल रहा है परवाना

बुझ चुकी है शमा,

जल रहा है परवाना, 
हे रब्बा मेरे तू बता, 
ये कैसा अफसाना। 

तलब ये कैसी लगी, 
उस दिलजले परवाने को, 
तैयार हो चुका है वो, 
अपनी हस्ती मिटाने को। 

जान जान कहने वाली को, 
अब उसने जान लिया, 
झोपड़ी को स्वर्ग बता, 
उसने ऊंचा मकान लिया है। 

दिलजला परवाना तैयार है, 
कायामत की कस्ती पर, 
निकल चुका है तबाही लाने, 
वो अपनी हंसती बस्ती पर । 

छोड़ चला है देखी वो, 
अपने सारे नाते, 
उसके मन में है बस, 
उस शमा की ही बातें। 

ना समझा वो मां का दर्द, 
ना सुनी भाई की पुकार, 
उसके जहन में बस चुका है, 
अब किसी और का प्यार।

ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा

ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा 

ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा  

अपने दिल को भी बताऊँ न ठिकाना तेरा  
सब ने जाना जो पता एक ने जाना तेरा  

तू जो ऐ ज़ुल्फ़ परेशान रहा करती है  
किस के उजड़े हुए दिल में है ठिकाना तेरा  

आरज़ू ही न रही सुब्ह-ए-वतन की मुझ को  
शाम-ए-ग़ुर्बत है अजब वक़्त सुहाना तेरा  

ये समझ कर तुझे ऐ मौत लगा रक्खा है  
काम आता है बुरे वक़्त में आना तेरा  

ऐ दिल-ए-शेफ़्ता में आग लगाने वाले  
रंग लाया है ये लाखे का जमाना तेरा 

Dagh Dehalvi 

मुझ को मुझ से अभी जुदा न करो

मेरे दुख की कोई दवा न करो 

मुझ को मुझ से अभी जुदा न करो  

नाख़ुदा को ख़ुदा कहा है तो फिर  
डूब जाओ ख़ुदा ख़ुदा न करो  

ये सिखाया है दोस्ती ने हमें  
दोस्त बन कर कभी वफ़ा न करो  

इश्क़ है इश्क़ ये मज़ाक़ नहीं  
चंद लम्हों में फ़ैसला न करो  

आशिक़ी हो कि बंदगी 'फ़ाकिर'  
बे-दिली से तो इब्तिदा न करो  

Sudarshan Fakir

उस बेवफ़ा से रब्त उम्र भर का था

माना वो एक ख़्वाब था धोका नज़र का था 

उस बेवफ़ा से रब्त मगर उम्र भर का था 

- रशीद कैसरानी


किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी

ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी


हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है

नई नई सी है कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी


~ फ़िराक़ गोरखपुरी



मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ

मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त

मैं गया वक़्त नहीं हूँ  कि फिर आ भी न सकूँ   

~मिर्ज़ा ग़ालिब

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। 

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय॥ 


~ कबीर

चलना हमारा काम है

गति प्रबल पैरों में भरी

फिर क्यों रहूँ दर दर खड़ा

जब आज मेरे सामने

है रास्ता इतना पड़ा

जब तक न मंज़िल पा सकूँ

तब तक मुझे न विराम है

चलना हमारा काम है

~शिवमंगल सिंह सुमन

मुझसे तो कह रहा था मोहब्बत फ़िज़ूल है

बैठा है क्यों उदास वो दिलबर की याद में 

मुझसे तो कह रहा था मोहब्बत फ़िज़ूल है

  

- जौन एलिया


ख़ुद से ख़ुदी के ऐब छुपाना फ़ुज़ूल है

यूँ आईने को आँख दिखाना फ़ुज़ूल है


मुमकिन है नींद नींद न हो कर बहाना हो

वो सो नहीं रहा तो जगाना फ़ुज़ूल है


~ दिनेश कुमार द्रौण


Har mausam me dard se ghire rahte hai

Ye kaise zakham hai jo hare rahte hai

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कल पर किसका अधिकार प्रिये

चलना है सबको छोड़ यहाँ

अपने सुख - दुख का भार प्रिये

करना है कर लो आज उसे

कल पर किसका अधिकार प्रिये


भगवती चरण वर्

Thursday, May 25, 2023

हर इक बात की वो ख़बर रखता है

हर इक बात की वो ख़बर रखता है

सुना है कि हम पर नज़र रखता है 

जहाँ भी नज़र दौड़ी वो मिल गया 
निगाहों में क्या वो असर रखता है 

बदलती रही है वफ़ा यार की 
कहूँ कैसे वो पाक नज़र रखता है 

घुमंतू होगी नस्ल उसकी तो क्या 
अजी साफ़-सुथरा तो घर रखता है 

शज़र,चिड़िया और फूल,भँवरे यहाँ 
अरे! नादां तू क्यों शरर रखता है 

वो पहले सा नूर न था..

तक़दीर ही अपनी ऐसी थी,

इसमें तेरा शायद कसूर ना था, 
पहली नज़र में दिल दे दिया, 
कहां ख़बर थी, 
तुम में वफ़ा का कोई दस्तूर न था। 
तुम सितमगर, दिल फिर भी भूलता नहीं तुम्हे, 
दिल मेरा पहले तो कभी 
इतना मजबूर ना था। 
ना हमने आवाज़ लगाईं, ना तुम आए बरसों 
घर हमारा इतना भी तो दूर ना था। 
माना की तुमने बदल ली राहें अपनी, 
हाल तक भी नहीं पूछते, 
तुम में पहले तो इतना गुरूर न था। 
देखा था तुम्हे कल, नए हमसफ़र के संग, 
दिखावा कर रहे थे खुशी का, 
पर तुम्हारे चेहरे में अब 
वो पहले सा नूर न था.... 

हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला

 हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला

सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला
सन-सन चलती हवा रात भर जाड़े से मरता हूँ
ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ।

आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का
न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही को भाड़े का
बच्चे की सुन बात, कहा माता ने 'अरे सलोने`
कुशल करे भगवान, लगे मत तुझको जादू टोने।

जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ
कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा
बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा।

घटता-बढ़ता रोज, किसी दिन ऐसा भी करता है
नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है
अब तू ही ये बता, नाप तेरी किस रोज लिवायें
सी दे एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आये !

रामधारी सिंह दिनकर 

थक गए हो तो मिरे काँधे पे बाज़ू रक्खो

इस क़दर भी तो न जज़्बात पे क़ाबू रक्खो 

थक गए हो तो मिरे काँधे पे बाज़ू रक्खो 


ख़्वाबों के उफ़ुक़ पर तिरा चेहरा हो हमेशा 
और मैं उसी चेहरे से नए ख़्वाब सजाऊँ 

हम ने उस को इतना देखा जितना देखा जा सकता था 
लेकिन फिर भी दो आँखों से कितना देखा जा सकता था 

दिल सुलगता है तिरे सर्द रवय्ये से मिरा 
देख अब बर्फ़ ने क्या आग लगा रक्खी है 

यूँ तिरी याद में दिन रात मगन रहता हूँ 
दिल धड़कना तिरे क़दमों की सदा लगता है