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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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तेरी गली से दूर कोई सहारा ढूँढ लूँ |
हकीक़त कहीं मिल ना पाई
धर्म - गोपाल दस नीरज की कविता
रावण बनना भी कहाँ आसान?
कि मेरा कोई रूप न हो
नया मंज़र है या नज़र है जुदा।
चुनी है मैने एक हसीं राह
ज़िन्दगी अब क़रीब आ रही है |
कविता बन कागज पर उतार दिया।
तेरा मिलना ऐसे होता है
जो दिल के नज़दीक होता है
पाँव अंधेरे में हरगिज़ हम बढ़ाये न होते
जीवन में हमेशा तेरी कमी है
तुम्हें मालूम है मेरा हाल ए दिल
अमीर मीनाई के चुनिंदा शेर
नज़दीकियों में दूर का मंज़र तलाश कर
इश्क़ के उपवन में
मुश्किल है अलग कर पाना
ये जो ज़िंदगी की किताब है
नजरें चार होने से मोहब्बत कहाँ होती
तुम तान बनो मैं गीत बनूं
मिलते हैं जब दिल दीवाने
रुस्वा होने का का डर था
उन के लिए दुआ निकली
मेरा गुरूर मेरी ख्वाहिशों पर भारी है
अश्क अपने वादों से मुकरने लगा
आओ चाँद पहलू में बैठो जरा
नेमतों से मिली हो।
अपने दिल में हमें पनाह दे दो
मानो मुझे नई मंजिल मिल गई
ये उदासी मेरे मन से जाती क्यों नहीं
जिस्म की बेचैनियों को मोहब्बत का नाम न दो
यार भरोसा बस मुश्किल से होता है|
एक लम्हे की ज़िन्दगी
आप हमारे साथ नहीं चलिए कोई बात नहीं
इक रोज हमारी आहों का असर देखोगे।
रुठे से उनके मिज़ाज़ है
बे-ख़ुदी में क्या कोई जाँ-निसार करता है
अदावत से आगे चल के दिखाओ
मेरी आवाज़ पलटकर आई
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
मैनें पूरे हक से आपना माना तुझे
वक्त चाहे कैसा भी हो हंसते हंसाते रहा करो
जो हमें अपना समझे
किताब शायरी
ये सब मेरी मुहब्बत का सिला है
अजब बात है
मुमकिन ही नहीं होगा शायद
तेरी नज़रों ने छूआ तो हम महकने लगे हैं
लबों की वही अब दुआ हो गये हैं ।
चाहता था मैं जिसे जी जान से
मैं वो खोई हुई इक चीज़ हूँ जिस का पता तुम हो
गोपालदास 'नीरज' की चुनिंदा शेर
अब तुम्हारा प्यार भी मुझको नहीं स्वीकार प्रेयसी
वो तेरी यादें
एक रात गुजारी न गई तेरे बग़ैर
मुक़द्दर में चलना था चलते रहे
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Tuesday, January 31, 2023
धर्म - गोपाल दस नीरज की कविता
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