आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
अनजाने राह पर चलते कब यूं ही मुड़ गए पीछे, न दिल को करार मिला, न जमीन को आसमां। पर फिर भी क्यों ऐसा लगता है, चुनी है मैने एक हसीं राह।
न दिल को करार मिला, न जमीन को आसमां। पर फिर भी क्यों ऐसा लगता है, चुनी है मैने एक हसीं राह।
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