जिस्म की बेचैनियों को मोहब्बत का नाम न दो दो पल के इस सुकून को तुम राहत का नाम न दो |
अपने प्यार को गर खुदा बना न पाओ तुम तो
अपने इश्क़ को फिर तुम इबादत का नाम न दो |
रुह तक गर जा न पाओ तुम किसी के प्यार में तो
जिस्म छूकर अपने प्यार को इज्जत का नाम न दो |
मां की कदमों के सिवा इस दुनिया में कभी भी
किसी को बाहों में भर लो तो जन्नत का नाम न दो |
लगाकर हजार पाबंदियां हम औरतों पर तुम
इसको सरपरस्ती और हिफाजत का नाम न दो |
No comments:
Post a Comment