Friday, January 27, 2023

पाँव अंधेरे में हरगिज़ हम बढ़ाये न होते

पाँव अंधेरे में हरगिज़ हम बढ़ाये न होते 
आप शौक-ए-चराग़ा ग़र जलाये न होते 

आंख जम जाती शब-ए - शीत पाकर 
चाॅंद का गर्द बढ़कर हटाये न होते 

ग़मे-नज़दीकियां आग़ोश लेने लगी थी 
बस थोड़ी देर और मुस्कुराये न होते 

या खुदा हम भी कुछ और आज रहते 
हुबहू सूरत - ए - हाल सुनाये न होते 

कई बस्तियों में लोग ग़मगीन हो जाते 
जो वादे पे चल तुम शहर आये न होते॥ 

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