आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
रुठे से उनके मिज़ाज़ हैचमक रहा है चाँद अपनी चांदनी संग, किन्तु तुम्हारे रूठने से यूँ लग रहा हो जैसे, कितनी लम्बी घनघोर अमावस की रात है.
किन्तु तुम्हारे रूठने से यूँ लग रहा हो जैसे, कितनी लम्बी घनघोर अमावस की रात है.
Post a Comment
No comments:
Post a Comment