जैसे हो इन्कार तक पहचान से।
देखते हैं इस तरह अन्जान से।
कैस से आबाद थे जो कल तलक,
दिख रहे हैं दश्त वो वीरान से।
बात पर उनकी भरोसा क्या करूँ,
जिनका लेना कुछ नहीं ईमान से।
क्या पता था बेवफ़ा हो जायेगी,
चाहता था मैं जिसे जी जान से।
बदतरीं हालात हों कितने हमीद,
बात करनी चाहिए सम्मान से।
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