मिरा वक़्त मुझ से बिछड़ गया मिरा रंग-रूप बिगड़ गया
जो ख़िज़ाँ से बाग़ उजड़ गया मैं उसी की फ़स्ल-ए-बहार हूँ
तुम्हें चाहूँ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ
मिरा दिल फेर दो मुझ से ये झगड़ा हो नहीं सकता
कहीं ऐसा न करना वस्ल का वा'दा तो करते हो
कि तुम को फिर कोई कुछ और समझाए तो रहने दो
तुम्हारे नाम से सब लोग मुझ को जान जाते हैं
मैं वो खोई हुई इक चीज़ हूँ जिस का पता तुम होमेल कुछ खेल नहीं था जो बिगाड़ा तू ने
रब्त कुछ रस्म नहीं था जो घटा बैठा है
उन्हीं लोगों की बदौलत ये हसीं अच्छे हैं
चाहने वाले इन अच्छों से कहीं अच्छे हैंआप क्यूँ बैठे हैं ग़ुस्से में मिरी जान भरे
ये तो फ़रमाइए क्या ज़ुल्फ़ ने कुछ कान भरे
वफ़ा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते
कहा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करतेपूछा कि दिल को क्या कहूँ बोले कि दीवाना मिरा
पूछा कि उस को क्या हुआ बोले कि बीमारी मिरी
मुझ को मिटा के कौन सा अरमाँ तिरा मिटा
मुझ को मिला के ख़ाक में क्या ख़ाक मिल गयान किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ
जो किसी के काम न आ सके मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ
मोहब्बत में किसी ने सर पटकने का सबब पूछा
तो कह दूँगा कि अपनी मुश्किलें आसान करता हूँ
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