Monday, January 9, 2023

गोपालदास 'नीरज' की चुनिंदा शेर

जब चले जाएँगे हम लौट के सावन की तरह 
याद आएँगे प्रथम प्यार के चुम्बन की तरह 

फूल बन कर जो जिया है वो यहाँ मसला गया 
ज़ीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिए 

बदन पे जिस के शराफ़त का पैरहन देखा 
वो आदमी भी यहाँ हम ने बद-चलन देखा 

जितना कम सामान रहेगा 
उतना सफ़र आसान रहेगा 

जितनी भारी गठरी होगी 
उतना तू हैरान रहेगा 

मेरे होंटों पे दुआ उस की ज़बाँ पे गाली 
जिस के अंदर जो छुपा था वही बाहर निकला 

क्या अजब है यही इंसान का दिल भी 'नीरज' 
मोम निकला ये कभी तो कभी पत्थर निकला

तुम चांद बनके जानम, इतराओ चाहे जितना
पर उसको याद रखना, रोशन हो जिसके पीछे

जो ज़ुल्म सह के भी चुप रह गया न ख़ौल उठा,
वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त न था

मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए

जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे
मेरा आँसू तेरी पलकों से उठाया जाए। 

हर किसी शख़्स की किस्मत का यही है किस्सा,
आए राजा की तरह ,जाए वो निर्धन की तरह

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए 
जिस में इंसान को इंसान बनाया जाए 

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