आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
कभी ख्वाब सी
कभी हकीकत सी कभी सज़ा सी कभी सौगात सी तुम जिंदगी हो जीने को मिली हो कभी दर्द सी कभी निजात सी कभी चार पल की कभी पहाड़ सी तुम ही जिंदगी हो नेमतों से मिली हो।
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