Wednesday, January 11, 2023

मेरी आवाज़ पलटकर आई

मेरी आवाज़ पलटकर आई,


वादियों से वो ग़म-ज़दा आई। 

अगरचे माज़ी को भुलाया है, 
याद कोई यदा-कदा आई। 

बिना दस्तक दिए दरवाज़े पर, 
एक खुशबू है बे-सदा आई। 

हमको पहचान लिया ग़ैरों में, 
बा-ख़ुदा आन-ओ-अदा आई। 

कहाँ अता किया पता ही नहीं, 
जबीं ये आज कर सजदा आई। 

शहर में शोर बहुत होता है, 
लगता रहता है आपदा आई। 

रिश्ते धागे की तरह होते हैं, 
तोड़कर जोड़ा तो उक़्दा आई। 

जुदा थे ख़्वाब तुम्हारे 'गौतम', 
इनकी ताबीर भी जुदा आई। 

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