तेरी नज़रों ने छूआ तो हम महकने लगे हैं
मिले बिना ही तूझसे हम तो मिलने लगे है
पत्थर में तो फूल का खिलना नामूमकिन है
मगर पत्थरों में फूल देखो खिलने लगे हैं।
क्या हूआ इश्क़ में तूमसे मुलाक़ात एक दफा
लोग चरित्र को भी ग़लत मेरे कहने लगे हैं।
इश्क़ में खूदा है ये सूना तो था हमने बहुत
इस हकीकत से रूबरू अब तो होने लगे हैं
जब से हूआ है मूझे दिदार उसकी सूरत का
उसकी झलक के खातिर हम तरसने लगे हैं।
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