Saturday, January 21, 2023

अमीर मीनाई के चुनिंदा शेर

कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं

नाख़ुदा जिन का नहीं उन का ख़ुदा होता  है


छुप के भी आए मिरे घर तो वो दरबानों को

अपनी पाज़ेब की झंकार सुनाते आए 


इतने पत्ते भी न होंगे गुलशन-ए-फ़िरदौस में
जिस क़दर फूलों के हैं अम्बार क़ैसर-बाग़ में 

निकल के चेहरे पे मैदान साफ़ ख़त ने किया
कभी ये शहर था ऐसा कि बंद राहें थीं


कहाँ ग़ुंचा कहाँ उस का दहन तंग
बढ़ाई शायरों ने बात थोड़ी 

कल तो आफ़त थी दिल की बेताबी
आज भी बे-क़रार सा है कुछ 


वो दुश्मनी करें तो करें इख़्तियार है
हम तो अदू के दोस्त हैं दुश्मन के यार हैं 

पहलू में मेरे दिल को न ऐ दर्द कर तलाश
मुद्दत हुई ग़रीब वतन से निकल गया 


उस दिल पे हज़ार जान सदक़े
जिस दिल में है आरज़ू तुम्हारी 

वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर
दिन गिने जाते थे इस दिन के लिए


कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद
याद आएगी बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद 

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