न जाने जैसे हाथों से कुछ छूट गया,
एक सपना लगता है जैसे टूट गया।
पतझड़ ही अब तक जीवन में आया,
उम्मीद नव पल्लव की पर बहार मुझसे रूठ गया।
दुख आंखों में समा गया,
आंसू बन आंखों से छलक गया।
हूं बहुत उदास,दिल का दर्द
कविता बन कागज पर उतार दिया।
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
No comments:
Post a Comment