दफ़्फतन ये दर्द, फिर से क्यूं उभरने लगा?
तेरी गलियों से, मै जब आज गुजरने लगा।।
ना बहने का वादा,जिसने किया था कभी।
वो ही अश्क, अपने वादों से मुकरने लगा।।
अहसास की शिद्दत बढ़ा देता है ये सावन।
मेरे घर के ऊपर , क्यूं हर अब्र घिरने लगा?
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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