मैं उस के बदन की मुक़द्दस किताब
निहायत अक़ीदत से पढ़ता रहा
आँखों में ख़्वाब रखिए,
हाथों में किताब रखिए,
नेकियों को भूलकर, बस
गलतियों का हिसाब रखिए।
तितली से दोस्ती न गुलाबों का शौक़ है
मेरी तरह उसे भी किताबों का शौक़ है
यूँ ही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो
~बशीर बद्
अधूरी रातें,
बेहते सपने,
रूहानी बातें,
कैसी कैसी बातें करते हैं
ये शायर लोग
ये #किताबी लोग ।।
अभी तो चंद लफ़्ज़ों में समेटा है तुझे ,
अभी तो मेरी किताबों में तेरा सफर बाकी है.
वो आये थे अपनी वफाओं का हिसाब करने,
किताब-ऐ-इश्क़ जो खोली कर्ज़दार होकर चले गए.
रूह का चेहरा किताबी होगा,
जिस्म का रंग उन्नाबी* होगा.
शरबती रंग से लिखो आँखें,
और एहसास शराबी होगा.
(*उन्नाब के दाने की रंगत का)
तुम जब आओगी तो खोया हुआ पाओगी मुझे,
मेरी तन्हाई में ख्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं.
मेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हें,
मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं.
-जॉन आलिया
धुप में निकलो, घटाओं में नहा के देखो,
जिंदगी क्या है किताबों को हटा के देखो.
अब किसकी सुनें और किसको पढ़ें,
किताबों ने कुछ और पढ़ाया,
जिंदगी ने कुछ और सिखाया.
ये इल्म का सौदा, ये रिसाले*, ये किताबें,
एक शख्स की यादों को भुलाने के लिए है.
*a small book in the form of a treatise on socio-economic, political or historical टॉपिक्स
जो लिखा जो पढ़ा
कभी काम नहीं आया,
सारा भ्रम किताबों का बस किताबी रह गया,
खूबसरत था सपना मेरा पर,
न जाने क्यों ख्वाबी रह गया.
कितनी तारीफ करू मैं उस जालिमा के हुस्न की,
पूरी किताब तो बस उसके आँखों में ख़तम हो जाती है.
वफ़ा नज़र नहीं आती कहीं ज़माने में
वफ़ा का ज़िक्र किताबों में देख लेते हैं
इश्क का रंग, यू गुलाबी हो जायेगा,
कब सोचा था, मजनू यू #किताबी हो जाएगा ,
छुपा कर रखते हैं, तेरी तस्वीर को अक्सर ,
डर है कही देख लिया, तो मेरा शहर शराबी हो जायेगा !!!
बेकार लग रही हैं दुनिया की सब किताबें
देखी है जब से मैं ने सूरत तिरी किताबी
किताबी लोगों से दोस्ती भी
अजीब होती हैं..
जो बन गए दोस्त तो
हर एक पन्ना पढ़ लेते हैं
छू ले अगर किसी को, महका दे बस उसी को
फूलों के जैसे खिलती है, वो लड़की गुलाब सी है
आयत के जैसे पढ़ लिया, आंखों में उसको गढ़ लिया
कोई गजल है अनकही, वो लड़की किताब सी है
नींद आती है जब भी रातों को,,
डूब जाता हूं तेरे ख्वाबों में,,
उसकी तस्वीर क्या रखी मैंने,,
खुशबू आने लगी किताबों में..
ना करना हमसे वो बातें "किताबी",
जाया हो जाएंगी ये मुलाकातें गुलाबी..!
कुछ यूं हो दरम्यान न कोई बात हो,
मुकम्मल सी बस एक मुलाकात हो..
मेरा प्यार रूहानी मगर उसका प्रेम किताबी रहा
नज़र भरकर नहीं देखा कभी इतना मिजाजी रहा!
जो पढ़ा है उसे जीना ही नहीं है मुमकिन
ज़िंदगी को मैं किताबों से अलग रखता हूँ।
बच्चों के छोटे हाथों को चांद सितारे छूने दो।
चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे।।
No comments:
Post a Comment