Saturday, December 18, 2021

सर्दी में दिन सर्द मिला

सर्दी में दिन सर्द मिला 


हर मौसम बेदर्द मिला 


ऊँचे लम्बे पेड़ों का 


पत्ता पत्ता ज़र्द मिला 


सोचते हैं क्यूँ ज़िंदा हैं 


अच्छा ये सर-दर्द मिला 


हम रोए तो बात भी थी 


क्यूँ रोता हर फ़र्द मिला 

Tuesday, December 7, 2021

मैं तो वही हूँ

तुमने नही पहचाना, तो क्या हुआ
मै तो अभी भी वही हूँ।
तुम बदल गए, तो क्या हुआ
मै तो अभी भी वही हूँ।
बस! मेरे अल्फाज़ो ने मुझसे कहा,
अब तू बना ऐसी पहचान कि,
लोग कहे कि,अरे! तुम तो वही हो ॥

उसकी मोहब्बत मेरे लिए

उसकी मोहब्बत मेरे लिए नशा
उसका गुस्सा मेरे लिए सजा,
उसकी उड़ती जुल्फें और मेरा कंधा
वो इतनी पावन जैसे कल -कल करती गंगा,

उसकी आंखें दरिया सी गहरी
ओर में मांझी बीच मझधार में फंसी नैया का,
वो बरसाने की राधा गोरी,
और मैं सावला अपनी यशोदा मैया का

वह जैसे कड़कती ठंड में चाय की प्याली सी,
वह जैसे बसंत ऋतु में फैली हरियाली सी,
वह जैसे अमावस की रात में पूनम का चंद्रमा
वह जैसे रोते हुए बच्चे को हसाती प्यारी मां

यह सब पुरानी बात है आज की नहीं
दिल खोल कर सब बोल दिया अब कुछ भी राज नहीं
ऐसा नहीं कि अब उसकी चाहत नहीं मुझे,
पर मेरी मोहब्बत अब उसके इश्क के ताज के मोहताज नहीं

ऐ ज़िन्दगी हम भी किसी के

ऐ ज़िन्दगी हम भी किसी के खास बनना चाहते हैं।
हमारे कन्धे पर सर रख कर कोई खुद को महफूज समझे।
बस किसी के लिए वही जनाब बनना चाहते हैं।
ऐ ज़िन्दगी हम भी किसी के खास बनना चाहते हैं।
जब तन्हाई परेशानी और इस दुनिया की भीड़ से कोई ऊब जाए ।
ऐसे में किसी के लिये शकुन की बरसात बनना चाहते हैं ।
ऐ ज़िन्दगी हम भी किसी के खास बनना चाहते हैं।

तुम्हारी हर बात तुमसे कहेंगे

तुम्हारी हर बात तुमसे कहेंगे,
तुम इश्क करो या नफरत,
हर सितम सहेंगे ।
तुम बदल गए,
यह तुम्हारी फितरत है,
हम कभी नहीं बदला करेंगे ।
दिल है, कोई खिलौना नहीं ,
जो खेला और तोड़ दिया ,
तुम तोड़ते रहो ,
हम जोड़ते रहेंगे ।
अहम तुम मे है,
तो अहम् मुझमें भी है ,
मगर झुकते हैं हम,
क्योंकि इश्क इबादत है ।
क्योंकि इश्क इबादत है ।।

खुदा भी तुझसे नाराज हुआ तो होगा

बिछड़ के मुझसे आंसू तेरा भी गिरा तो होगा 
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उठ-उठ कर रातों में मुझे याद किया तो होगा ।
तेरा दिल धड़कता था मेरे दिल के साथ 
अब तेरा दिल भी तुझसे रुठा तो होगा।
यूँ तो कोई किसी के बिना मरता नहीं है 
लेकिन कुछ दिन तू भी मर-मर के जिया तो होगा।
जो तुमने तोड़ दिया तो करूँ क्या इसका गिला
टुटे दिल को जोड़ के फिर से जीना तो होगा।
सुना है कि मासूम दिल खुदा का घर होता है
फिर तो खुदा भी तुझसे नाराज हुआ तो होगा ।

जरूरी तो नहीं

जीवन रंगीन हो जरूरी तो नहीं,
खुशियाँ बेशुमार हो जरूरी तो नहीं,
सपने सारे पूरे हो जरूरी तो नहीं,
माना लोगो में अंतर बहुत है,
सब हमसे खुश हो जरूरी तो नहीं।

कौन कहता हैं सब अपने नहीं,
मन से साथ में बैठ तो सही,
बहुत कर ली बातें दूसरो से,
एक अपनी आत्मा से करके देख तो सही,
सब हमसे खुश हो जरूरी तो नहीं,

आदमी अनेक, रिश्ते अनेक ,
खून के रिश्तों में परिवर्तन अनेक,
सब के मन से मन मिले जरूरी नहीं,
पर हर बातो को दिल मे रखना जरुरी नहीं,
सब हमसे खुश हो जरूरी तो नहीं।

हा माना तकलीफ होती हैं,
रिश्तो के टूटने पे,
सब कुछ मन का मिल जाये ,
तो शिकायत की जरूरत ही नहीं,
सब हमसे खुश हो जरूरी तो नहीं।

दिल से दिल मिलते हैं,
पर मन से मन मिले जरूरी तो नही,
कुछ बाते मन मे ही अधूरी हो,
हर बातो को बयां कर देना जरूरी तो नही,
सब हमसे खुश हो जरूरी तो नही।

Sunday, December 5, 2021

अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला


अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला 
हम ने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला 

एक बे-चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा 
जिस तरफ़ देखिए आने को है आने वाला 

उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मा'लूम न था 
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला 

दूर के चाँद को ढूँडो न किसी आँचल में 
ये उजाला नहीं आँगन में समाने वाला 

इक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सब की दुनिया 
कोई जल्दी में कोई देर से जाने वाला

Nida Fazli 

Thursday, December 2, 2021

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो 
तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो 

ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में 
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो 

मैं देखूँ तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है 
कोई दिन के लिए अपनी निगहबानी मुझे दे दो 

वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है 
बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो

साहिर लुधियानवी

 


तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो  

ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में  
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो  

मैं देखूँ तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है  
कोई दिन के लिए अपनी निगहबानी मुझे दे दो  

वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है  
बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो 

Wednesday, December 1, 2021

कैफ़ी आज़मी: चुनिंदा शेर

तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता
मिरी तरह तिरा दिल बे-क़रार है कि नहीं 

पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा 

रह गई ज़िंदगी दर्द बन के
दर्द दिल में छुपाए छुपाए 

अब जिस तरफ़ से चाहे गुज़र जाए कारवाँ
वीरानियाँ तो सब मिरे दिल में उतर गईं 

मंज़िल से वो भी दूर था और हम भी दूर थे 
हम ने भी धूल उड़ाई बहुत रहनुमा के साथ 

वो भी सराहने लगे अर्बाब-ए-फ़न के बा'द
दाद-ए-सुख़न मिली मुझे तर्क-ए-सुख़न के बा'द 

दीवारें तो हर तरफ़ खड़ी हैं
क्या हो गए मेहरबान साए 

जहाँ से पिछले पहर कोई तिश्ना-काम उठा
वहीं पे तोड़े हैं यारों ने आज पैमाने

छटा जहाँ से उस आवाज़ का घना बादल
वहीं से धूप ने तलवे जलाए हैं क्या क्या 

आज फिर टूटेंगी तेरे घर की नाज़ुक खिड़कियाँ
आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में

वो चुप हो गए मुझ से क्या कहते कहते

हसरत मोहानी: 

वो चुप हो गए मुझ से क्या कहते कहते
कि दिल रह गया मुद्दआ कहते कहते

मिरा इश्क़ भी ख़ुद-ग़रज़ हो चला है
तिरे हुस्न को बेवफ़ा कहते कहते

शब-ए-ग़म किस आराम से सो गए हैं
फ़साना तिरी याद का कहते कहते

ये क्या पड़ गई ख़ू-ए-दुश्नाम तुम को
मुझे ना-सज़ा बरमला कहते कहते

ख़बर उन को अब तक नहीं मर मिटे हम
दिल-ए-ज़ार का माजरा कहते कहते

अजब क्या जो है बद-गुमाँ सब से वाइज़
बुरा सुनते सुनते बुरा कहते कहते

वो आए मगर आए किस वक़्त 'हसरत'
कि हम चल बसे मरहबा कहते कहते

चाँदनी-रात थी सर्द हवा से खिड़की बजती थी

पिछले बरस तुम साथ थे मेरे और दिसम्बर था 
महके हुए दिन-रात थे मेरे और दिसम्बर था 

चाँदनी-रात थी सर्द हवा से खिड़की बजती थी 
उन हाथों में हाथ थे मेरे और दिसम्बर था 

बारिश की बूंदों से दिल पे दस्तक होती थी 
सब मौसम बरसात थे मेरे और दिसम्बर था 

भीगी ज़ुल्फ़ें भीगा आँचल नींद थी आँखों में 
कुछ ऐसे हालात थे मेरे और दिसम्बर था 

धीरे धीरे भड़क रही थी आतिश-दान की आग 
बहके हुए जज़्बात थे मेरे और दिसम्बर था 

प्यार भरी नज़रों से 'फ़रह' जब उस ने देखा था 
बस वो ही लम्हात थे मेरे और दिसम्बर था

फ़रह शाहिद

Tuesday, November 30, 2021

एक गली की बात थी और गली गली गयी

हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई 
शौक़ में कुछ नहीं गया शौक़ की ज़िंदगी गई

एक ही हादसा तो है और वो यह के आज तक
बात नहीं कही गई बात नहीं सुनी गई

बाद भी तेरे जान-ए-जां दिल में रहा अजब समाँ
याद रही तेरी यां फिर तेरी याद भी गई

सैने ख्याल-ए-यार में की ना बसर शब्-ए-फिराक 
जबसे वो चांदना गया तबसे वो चांदनी गयी 

उसके बदन को दी नुमूद हमने सुखन में और फिर
उसके बदन के वास्ते एक कबा भी सी गयी

उसके उम्मीदे नाज़ का हमसे ये मान था की आप
उम्र गुज़ार दीजिये, उम्र गुज़ार दी गयी

उसके विसाल के लिए अपने कमाल के लिए
हालत-ए-दिल की थी खराब और खराब की गई

तेरा फिराक़ जान-ए-जां ऐश था क्या मेरे लिए
यानी तेरे फिराक़ में खूब शराब पी गई

उसकी गली से उठके मैं आन पड़ा था अपने घर
एक गली की बात थी और गली गली गयी

जौन एलिया

रंग आ जाते मुट्ठी में जुगनू बन कर...

जिस को मेरी हालत का एहसास नहीं, 
उस को दिल का हाल सुना कर रोना क्या.

इस तरह सताया है परेशान किया है, 
गोया कि मोहब्बत नहीं एहसान किया है.

दीवारों में दर होता तो अच्छा था, 
अपना कोई घर होता तो अच्छा था. 

ऐ मेरे मुसव्विर नहीं ये मैं तो नहीं हूँ,
ये तू ने बना डाली है तस्वीर कोई और.

रंग आ जाते मुट्ठी में जुगनू बन कर, 
ख़ुशबू का पैकर होता तो अच्छा था. 

अब अश्क तिरे रोक नहीं पाएँगे मुझ को, 
अब डाल मिरे पाँव में ज़ंजीर कोई और. 


अफ़ज़ाल फ़िरदौस


Sunday, November 28, 2021

इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो

ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो 
अब कोई ऐसा तरीक़ा भी निकालो यारो 

दर्द-ए-दिल वक़्त को पैग़ाम भी पहुँचाएगा 
इस कबूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो 

लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे 
आज सय्याद को महफ़िल में बुला लो यारो 

आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे 
आज संदूक़ से वो ख़त तो निकालो यारो 

रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया 
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो 

कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता 
एक पत्थर तो तबीअ'त से उछालो यारो 

लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की 
तुम ने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो

दुष्यंत कुमार 

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ

इक उम्र से हूं लज़्ज़त-ए-गिर्या से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जां मुझ को रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शमाएं भी बुझाने के लिए आ

अहमद फ़राज़

Saturday, November 27, 2021

परवीन शाकिर - खुशबू और ख्वाब की शायरा

-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
उसने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की

वो कहीं भी गया लौटा तो मिरे पास आया
है यही बात तो अच्छी मिरे हरजाई की

कमाल-ए-ज़ब्त को मैं भी तो आज़माऊँगी
ख़ुद अपने हाथ से उसकी दुल्हन सजाऊँगी

हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ
दो-घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं



सब्ज़ मद्धम रौशनी में सुर्ख़ आँचल की धनक
सर्द कमरे मचलती गर्म साँसों की महक
बाज़ुओं के सख़्त हलक़े में कोई नाज़ुक बदन
सिलवटें मलबूस पर आँचल भी कुछ ढलका हुआ
गर्मी-ए-रुख़्सार से दहकी हुई ठंडी हवा
नर्म ज़ुल्फ़ों से मुलाएम उंगलियों की छेड़-छाड़
सुर्ख़ होंटों पर शरारत के किसी लम्हे का अक्स
रेशमी बाँहों में चूड़ी की कभी मद्धम धनक
शर्मगीं लहजों में धीरे से कभी चाहत की बात
दो दिलों की धड़कनों में गूँजती थी इक सदा
काँपते होंटों पे थी अल्लाह से सिर्फ इक दुआ’
काश ये लम्हे ठहर जाएँ ठहर जाएँ ज़रा



ख़ुमार-ए-लज़्ज़त से एक पल को / जो आँखें चौंके / तो नीम-ख़्वाबीदा सर-ख़ुशी में / ग़ुरूर-ए-ताराजगी ने सोचा / ख़ुदा-ए-बरतर के क़हर से / आदम-ओ- हव्वा / बहिश्त से जब भी निकले होंगे / सुपुर्दगी की उसी इंतिहा पर होंगे / उसी तरह हम बदन और हम-ख़्वाब-ओ-हम-तमन्ना



हवा कुछ उसकी शब का भी अहवाल सुना
क्या वो अपनी छत पर आज अकेला था
या कोई मेरे जैसी साथी थी और उसने
चाँद को देख के उसका चेहरा देखा था



इतने अच्छे मौसम में
रूठना नहीं अच्छा
हार जीत की बातें
कल पे हम उठा रक्खें
आज दोस्ती कर लें



ख़ुश्बू बता रही है कि वो रास्ते में है
मौज-ए-हवा के हाथ में उसका सुराग़ है

नींद पर जाल से पड़ने लगे आवाज़ों के
और फिर होने लगी तेरी सदा आहिस्ता



मैं बर्ग बर्ग उसको नुमू बख़्शती रही
वो शाख़ शाख़ मेरी जड़ें काटता रहा



मैं उसकी दस्तरस में हूँ मगर वो
मुझे मेरी रज़ा से मांगता है

लड़कियों के दुख अजब होते हैं सुख उस से अजीब
हँस रही हैं और काजल भीगता है साथ साथ

परवीन शाकिर : चुनिंदा शेर


मिलते हुए दिलों के बीच और था फ़ैसला कोई
उस ने मगर बिछड़ते वक़्त और सवाल कर दिया 

हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा
क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा 

कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी
मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजाऊँगी 


याद तो होंगी वो बातें तुझे अब भी लेकिन
शेल्फ़ में रक्खी हुई बंद किताबों की तरह 

शाम भी हो गई धुँदला गईं आँखें भी मिरी
भूलने वाले मैं कब तक तिरा रस्ता देखूँ 


मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा 

काँटों में घिरे फूल को चूम आएगी लेकिन
तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखा 


बस ये हुआ कि उस ने तकल्लुफ़ से बात की
और हम ने रोते रोते दुपट्टे भिगो लिए 

कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए
पानी को अब तो सर से गुज़र जाना चाहिए

कल रात जो ईंधन के लिए कट के गिरा है
चिड़ियों को बड़ा प्यार था उस बूढ़े शजर से

Sunday, November 7, 2021

जब मैं प्रेम करता हूँ

जब मैं प्रेम करता हूँ अपने से 
अच्छा लगता है पानी का दरख़्त 
और मेरे भीतर से उछलकर कुछ बीज 
प्रवेश करते हैं शब्दों के भीतर 

जब मैं प्रेम करता हूँ तुमसे-सबसे 
अच्छी लगती है भरी-पूरी नदी 
और नक्षत्र-लोक से बरसती दुआएँ 
जोत जगाती हैं आँगन के दियों में 


जब हम प्रेम करते हैं पृथ्वी से 
आँखों में तैरते हैं सातों समुद्र 
और पुरखों के सपनों की पताकाएँ 
फहराने लगती हैं समय के आकाश में 

पानी का दरख़्त नदी में 
और नदी समुद्र में मिल जाती है 
फिर भी पूरी नहीं होती प्रेम की परिक्रमा 
क्षितिजों के पार कुछ ढूँढ़ती ही रहती हैं 
कवियों की आँखें।

चंद्रकांत देवताले की कविता

रोमांटिक शेर

दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं, 
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं. 
- जिगर मुरादाबादी

इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी,. 
लोग तुझ को मिरा महबूब समझते होंगे
- बशीर बद्र

अपने जैसी कोई तस्वीर बनानी थी मुझे, 
मिरे अंदर से सभी रंग तुम्हारे निकले. 
- सालिम सलीम

यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का, 
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे. 
- जौन एलिया

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे, 
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे. 
- क़ैसर-उल जाफ़री

मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंट रख देना, 
यक़ीं आ जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है. 
- बशीर बद्र 




Friday, October 29, 2021

कहीं वो मिलता तो उस से लिपट के रो लेते

किसी की याद में पलकें ज़रा भिगो लेते
उदास रात की तन्हाइयों में रो लेते 

दुखों का बोझ अकेले नहीं सँभलता है 
कहीं वो मिलता तो उस से लिपट के रो लेते 

अगर सफ़र में हमारा भी हम-सफ़र होता 
बड़ी ख़ुशी से उन्ही पत्थरों पे सो लेते 

तुम्हारी राह में शाख़ों पे फूल सूख गए 
कभी हवा की तरह इस तरफ़ भी हो लेते 

ये क्या कि रोज़ वही चाँदनी का बिस्तर हो 
कभी तो धूप की चादर बिछा के सो लेते! 

बशीर बद्र 

Sunday, September 26, 2021

उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है,

चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है 


एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में 
वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है 

अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब 
रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है 

रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं 
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है 

उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो 
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है

Wednesday, September 15, 2021

आज भी तेरा दिल मेरे लिए बेकरार हैं.

वादा नहीं कोई तेरा, 
फिर भी इंतज़ार है.

बिछड़ने के बाद भी, 
हमें तुमसे प्यार हैं,

तेरे भी चेहरे की उदासी 
बता रही हैं.

आज भी तेरा दिल, 
मेरे लिए बेकरार हैं.

Wednesday, August 4, 2021

नजर झुका के रखे

 *"Ye Suraj Se Bhi Keh Do Ke Apni Aag Bujha Ke Kare* 

*Agar Mujhse Baatein Karni Hai, To Fir Nazar Jhuka Ke Kare"*

Friday, July 2, 2021

ये मर्ज़-ए-इश्क़ तो जान के साथ ही जाएगा

ज़ख्म-ए-दिल का इलाज़ कैसे मुमकिन है तबीब
ये मर्ज़-ए-इश्क़ तो जान के साथ ही जाएगा।


अहवाल क्या बयाँ मैं करूँ हाए ऐ #तबीब 
है दर्द उस जगह कि जहाँ का नहीं इलाज

साये कज़ा के जब बहुत करीब आ गए
दीवार बन के दर्मियाँ तबीब* आ गए
घर जब बना रहा था दिलों में वबा का ख़ौफ़
बन कर मसीहा कितने ही हबीब आ गए

तदबीर मेरे इश्क़ की क्या फ़ाएदा तबीब
अब जान ही के साथ ये आज़ार जाएगा
~ मीर तक़ी मीर

तबीब- डॉक्टर 

Thursday, July 1, 2021

बस इसी का नाम जिंदगी है

कुछ दबी हुई ख्वाहिशें हैंकुछ मंद मुस्कुराहटें,

कुछ खोये हुए सपने हैंकुछ अनसुनी आहटें.

 

कुछ सुकून भरी यादें हैकुछ दर्द भरे लम्हात,

कुछ थमें हुए तूफाँ हैकुछ मद्धम सी बरसात.

 

कुछ अनकहे अल्फ़ाज़ हैंकुछ नासमझ इशारे,

कुछ ऐसे मझधार हैंजिनके मिलते नहीं किनारे.

 

कुछ उलझने हैं राहों मेंकुछ कोशिशें बेहिसाब.

बस इसी का नाम जिंदगी हैचलते रहिये जनाब!

Tuesday, June 29, 2021

ठुकराया हमने भी बहुतों को है तेरी खातिर

ठुकराया हमने भी बहुतों को है तेरी खातिर, 
तुझसे फासला भी शायद उनकी बद्दुआओं का असर है! 

उसका उदास होना मुझे अच्छा नही लगता!

मुझसे बिछड़ कर ख़ुश है तो उसे खुश रहने दो, 
मुझसे मिल कर उसका उदास होना मुझे अच्छा नही लगता!

क्यूँ पूछते हो हम ने बताना तो है नहीं..

बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं 
हम बे-घरों का कोई ठिकाना तो है नहीं  

वो जो हमें अज़ीज़ है कैसा है कौन है 
क्यूँ पूछते हो हम ने बताना तो है नहीं...

Friday, June 18, 2021

तुम्हारी धड़कनों का दिल में इतना शोर लगता है

तुम्हारी धड़कनों का दिल में इतना शोर लगता है
कोई दिल्ली पुकारे तो हमें लाहौर लगता है

तुम्हारे खत चुरा कर ले गया कल रात कमरे से
तुम्हारा ही दीवाना शहर का एक चोर लगता है 

Wednesday, June 16, 2021

ज़ख़्मों को फिर मरहम की ज़रूरत नहीं होती

दो लफ़्ज़ मोहब्बत के असर करते हैं इतना 
ज़ख़्मों को फिर मरहम की ज़रूरत नहीं होती 

Saturday, June 12, 2021

मेरी आंखों का कोई ख़्वाब सा

मेरी आंखों का
कोई ख़्वाब सा
मेरी ख़्वाहिशों का
कोई जवाब सा
वो मिला है मुझको
इस तरह
मेरी नेकियों का
कोई ख़्वाब सा ।

नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही

नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही

न तन में ख़ून फ़राहम न अश्क आंखों में
नमाज़-ए-शौक़ तो वाजिब है बे-वज़ू ही सही

किसी तरह तो जमे बज़्म मय-कदे वालो
नहीं जो बादा-ओ-साग़र तो हाव-हू ही सही

गर इंतिज़ार कठिन है तो जब तलक ऐ दिल
किसी के वादा-ए-फ़र्दा की गुफ़्तुगू ही सही

दयार-ए-ग़ैर में महरम अगर नहीं कोई
तो 'फ़ैज़' ज़िक्र-ए-वतन अपने रू-ब-रू ही सही

Friday, May 28, 2021

मिट्टी शायरी

मिट्टी की आवाज़ सुनी जब मिट्टी ने
सांसों की सब खींचा-तानी ख़त्म हुई
- नज़र जावेद


भीगी मिट्टी की महक प्यास बढ़ा देती है
दर्द बरसात की बूंदों में बसा करता है
- मरग़ूब अली 

मिट्टी का बदन कर दिया मिट्टी के हवाले
मिट्टी को कहीं ताज-महल में नहीं रक्खा
- मुनव्वर राना 


मैं तो चाक पे कूज़ा-गर के हाथ की मिट्टी हूं
अब ये मिट्टी देख खिलौना कैसे बनती है
- ज़ेब ग़ौरी

मिट्टी में कितने फूल पड़े सूखते रहे
रंगीन पत्थरों से बहलता रहा हूं मैं
- असग़र मेहदी होश


मिट्टी पर उंगली से मिट्टी लिख देना
मैं ने अपना दिल बहलाना सीख लिया
- मुक़द्दस मालिक 

सुब्ह मिट्टी है शाम है मिट्टी
या'नी अपना मक़ाम है मिट्टी
- आसिम तन्हा


मिट्टी से कुछ ख़्वाब उगाने आया हूं
मैं धरती का गीत सुनाने आया हूं 
- नज़ीर क़ैसर

कोई ख़ुश्बू मिट्टी से आने लगी है
ज़मीं पर वो बूंदें गिराने लगी है
- साइमा जबीं महक


मिट्टी पे कोई नक़्श भी उभरा न रहेगा
गिर जाएगी दीवार तो साया न रहेगा
- नज़ीर क़ैसर

एक-दूसरे को बिना जाने पास-पास होना

एक-दूसरे को बिना जाने
पास-पास होना
और उस संगीत को सुनना
जो धमनियों में बजता है,
उन रंगों में नहा जाना
जो बहुत गहरे चढ़ते-उतरते हैं ।

शब्दों की खोज शुरु होते ही
हम एक-दूसरे को खोने लगते हैं
और उनके पकड़ में आते ही
एक-दूसरे के हाथों से
मछली की तरह फिसल जाते हैं ।

हर जानकारी में बहुत गहरे
ऊब का एक पतला धागा छिपा होता है,
कुछ भी ठीक से जान लेना
खुद से दुश्मनी ठान लेना है ।

कितना अच्छा होता है
एक-दूसरे के पास बैठ खुद को टटोलना,
और अपने ही भीतर
दूसरे को पा लेना ।

 : सर्वेश्वरदयाल सक्सेना 

तुम सच हो बाक़ी जो है फ़साना है और बस


मिलना न मिलना एक बहाना है और बस 
तुम सच हो बाक़ी जो है फ़साना है और बस 

लोगों को रास्ते की ज़रूरत है और मुझे 
इक संग-ए-रहगुज़र को हटाना है और बस 

मसरूफ़ियत ज़ियादा नहीं है मिरी यहाँ 
मिट्टी से इक चराग़ बनाना है और बस 

सोए हुए तो जाग ही जाएँगे एक दिन 
जो जागते हैं उन को जगाना है और बस 
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तुम वो नहीं हो जिन से वफ़ा की उम्मीद है 
तुम से मिरी मुराद ज़माना है और बस 

फूलों को ढूँडता हुआ फिरता हूँ बाग़ में 
बाद-ए-सबा को काम दिलाना है और बस 

आब ओ हवा तो यूँ भी मिरा मसअला नहीं 
मुझ को तो इक दरख़्त लगाना है और बस 
नींदों का रत-जगों से उलझना यूँही नहीं 
इक ख़्वाब-ए-राएगाँ को बचाना है और बस 

इक वादा जो किया ही नहीं है अभी 'सलीम' 
मुझ को वही तो वादा निभाना है और बस 

Thursday, May 27, 2021

हंसो तो साथ हंसेंगी दुनिया बैठ अकेले रोना होगा

हंसो तो साथ हंसेंगी दुनिया बैठ अकेले रोना होगा
चुपके चुपके बहा कर आंसू दिल के दुख को धोना होगा

बैरन रीत बड़ी दुनिया की आंख से जो भी टपका मोती
पलकों ही से उठाना होगा पलकों ही से पिरोना होगा

खोने और पाने का जीवन नाम रखा है हर कोई जाने
उस का भेद कोई न देखा क्या पाना क्या खोना होगा

बिन चाहे बिन बोले पल में टूट फूट कर फिर बन जाए
बालक सोच रहा है अब भी ऐसा कोई खिलौना होगा

प्यारों से मिल जाएं प्यारे अनहोनी कब होनी होगी
कांटे फूल बनेंगे कैसे कब सुख सेज बिछौना होगा

बहते बहते काम न आए लाख भंवर तूफ़ानी-सागर
अब मंजधार में अपने हाथों जीवन नाव डुबोना होगा

जो भी दिल ने भूल में चाहा भूल में जाना हो के रहेगा
सोच सोच कर हुआ न कुछ भी आओ अब तो खोना होगा

क्यूं जीते-जी हिम्मत हारें क्यूं फ़रियादें क्यूं ये पुकारें
होते होते हो जाएगा आख़िर जो भी होना होगा

'मीरा-जी' क्यूं सोच सताए पलक पलक डोरी लहराए
क़िस्मत जो भी रंग दिखाए अपने दिल में समोना होगा

बेपनाह हुस्न


तुझको नज़रों ने देखा है मेरी, 
लबों से तारीफ़ कैसे करूं.

निगाहों में जो क़ैद है अक्स तेरा, 
उसे लफ़्ज़ों में बयाँ कैसे करूँ. 

तेरे लबों में सिमटे हैं जो सुर्ख़ गुलाब, 
उन्हें छूने की हसरत होती है बार बार. 

तेरी पलकों में रखा है मैंने सावन, 
उसमें भीगने को बेक़रार है मेरा तन मन. 

तेरे रुखसार पे खिला है ये जो मख़मली चाँद का नूर, आईने में तू भी इसे एक बार देखना जरूर. 

बेपनाह हुस्न की तू ही तो है मल्लिका, 
हो जाएगा तुझे ख़ुद पर ही गुरुर! 

नजर, लब, तारीफ, निगाह, अक्स, लफ़्ज़, बयाँ, लिपटे, सुर्ख, गुलाब, छुने, हसरत, पलक, सावन, भीगने, बेकरार, तन, मन, रुखसार, खिला, मखमली, चाँद, नूर, आईना, बेपनाह, हुस्न, मल्लिका, मलिका, गुरूर

जीवन मुझ से मैं जीवन से शरमाता हूं

जीवन मुझ से मैं जीवन से शरमाता हूं
मुझ से आगे जाने वालो में आता हूं

जिन की यादों से रौशन हैं मेरी आंखें
दिल कहता है उन को भी मैं याद आता हूं

सुर से सांसों का नाता है तोड़ूं कैसे
तुम जलते हो क्यूं जीता हूं क्यूं गाता हूं

तुम अपने दामन में सितारे बैठ कर टांको
और मैं नए बरन लफ़्ज़ों को पहनाता हूं

जिन ख़्वाबों को देख के मैं ने जीना सीखा
उन के आगे हर दौलत को ठुकराता हूं

ज़हर उगलते हैं जब मिल कर दुनिया वाले
मीठे बोलों की वादी में खो जाता हूं

'जालिब' मेरे शेर समझ में आ जाते हैं
इसी लिए कम-रुत्बा शाएर कहलाता हूं

Monday, May 24, 2021

मजरूह सुल्तानपुरी शायरी



मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया 


देख ज़िंदां से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार
रक़्स करना है तो फिर पांव की ज़ंजीर न देख 

कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा
हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा


शब-ए-इंतिज़ार की कश्मकश में न पूछ कैसे सहर हुई
कभी इक चराग़ जला दिया कभी इक चराग़ बुझा दिया 

बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए
हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते


अब सोचते हैं लाएंगे तुझ सा कहां से हम
उठने को उठ तो आए तिरे आस्तां से हम 

कुछ बता तू ही नशेमन का पता
मैं तो ऐ बाद-ए-सबा भूल गया


मुझे ये फ़िक्र सब की प्यास अपनी प्यास है साक़ी
तुझे ये ज़िद कि ख़ाली है मिरा पैमाना बरसों से 

तुझे न माने कोई तुझ को इस से क्या मजरूह
चल अपनी राह भटकने दे नुक्ता-चीनों को 

यही है मौक़ा-ए-इज़हार आओ सच बोलें: क़तील शिफ़ाई

यही है मौक़ा-ए-इज़हार आओ सच बोलें: क़तील शिफ़ाई

खुला है झूट का बाज़ार आओ सच बोलें 
न हो बला से ख़रीदार आओ सच बोलें 

सुकूत छाया है इंसानियत की क़द्रों पर 
यही है मौक़ा-ए-इज़हार आओ सच बोलें 

हमें गवाह बनाया है वक़्त ने अपना 
ब-नाम-ए-अज़्मत-ए-किरदार आओ सच बोलें 

सुना है वक़्त का हाकिम बड़ा ही मुंसिफ़ है 
पुकार कर सर-ए-दरबार आओ सच बोलें 
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तमाम शहर में क्या एक भी नहीं मंसूर 
कहेंगे क्या रसन-ओ-दार आओ सच बोलें 

बजा कि ख़ू-ए-वफ़ा एक भी हसीं में नहीं 
कहाँ के हम भी वफ़ादार आओ सच बोलें 

जो वस्फ़ हम में नहीं क्यूँ करें किसी में तलाश 
अगर ज़मीर है बेदार आओ सच बोलें 
छुपाए से कहीं छुपते हैं दाग़ चेहरे के 
नज़र है आइना-बरदार आओ सच बोलें 

'क़तील' जिन पे सदा पत्थरों को प्यार आया 
किधर गए वो गुनहगार आओ सच बोलें 

जिगर और दिल को बचाना भी हैनज़र आप ही से मिलाना भी है

जिगर और दिल को बचाना भी है
नज़र आप ही से मिलाना भी है

मोहब्बत का हर भेद पाना भी है
मगर अपना दामन बचाना भी है

जो दिल तेरे ग़म का निशाना भी है
क़तील-ए-जफ़ा-ए-ज़माना भी है

ये बिजली चमकती है क्यूं दम-ब-दम
चमन में कोई आशियाना भी है

ख़िरद की इताअत ज़रूरी सही
यही तो जुनूं का ज़माना भी है

न दुनिया न उक़्बा कहां जाइए
कहीं अहल-ए-दिल का ठिकाना भी है

मुझे आज साहिल पे रोने भी दो
कि तूफ़ान में मुस्कुराना भी है

ज़माने से आगे तो बढ़िए 
ज़माने को आगे बढ़ाना भी है 

Sunday, May 16, 2021

आ गई याद शाम ढलते ही

 आ गई याद शाम ढलते ही

बुझ गया दिल चराग़ जलते ही 


खुल गए शहर-ए-ग़म के दरवाज़े 
इक ज़रा सी हवा के चलते ही 

कौन था तू कि फिर न देखा तुझे 
मिट गया ख़्वाब आँख मलते ही 

ख़ौफ़ आता है अपने ही घर से 
माह-ए-शब-ताब के निकलते ही

तू भी जैसे बदल सा जाता है 
अक्स-ए-दीवार के बदलते ही 

ख़ून सा लग गया है हाथों में 
चढ़ गया ज़हर गुल मसलते ही 

Friday, May 14, 2021

तेरी ही आस थी तो चले आये।

अथाह प्यास थी तो चले आये। 

तेरी ही तलाश थी तो चले आये ।


ये ना समझना कि मजबूर थे हम,

तबियत उदास थी तो चले आये। 


इतना बहाना भी ठीक नही यार, 

तेरी ही आस थी तो चले आये। 


मानते तो हो पर पहचानते नही, 

चाहत हताश थी तो चले आये। 


आ तेरी आँखो मे झाँक लूँ खूब

भड़की सी आग थी तो चले आये। 


आगोश में आओ तो बता दूँ हाल, 

दिल की पुकार थी तो चले आये। 



Sunday, May 9, 2021

साथी, सब सहना पड़ता है।

साथी, सब सहना पड़ता है। 
उर-अंतर के अरमानों को, 
छालों को मधु-वरदानों को, 
और मूक गीले गानों को 

निर्मम कर से स्वयं कुचल कर 
और मसल कर— 
भी तो #जननी के सम्मुख 
असमर्थ हमें हँसना पड़ता है। 
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संचित जीवन-कोष लुटा कर 
पाषाणों पर हृदय चढ़ाकर 
सब अपने अधिकार मिटाकर 
घूँट हलाहल-सी भी पीकर— 

अपने ही हाथों से कंपित 
और विनिंदित— 
भी हो, ख़ुशी न ख़ुशी से 
पर मर-मर कर जीना पड़ता है। 
जीवन के एकाकी-पथ पर 
कुछ काँटों की सेज बिछाकर 
कर का जलता दीप बुझाकर 
पग अपने सहला-सहला कर— 

अपने ही हाथों से विह्वल 
तन-मन व्याकुल— 
भी हो पर जीवन-पथ पर 
हमको प्रतिपल बढ़ना पड़ता है। 

साथी, सब सहना पड़ना पड़ता है॥

गोपाल दास नीरज 

बिखरा हुआ ख्वाब हूं मैं..

कभी भूल ना पाओगे
वह एहसास हूं मैं. 
नींद की आगोश में
बिखरा हुआ ख्वाब हूं मैं..

आंचल शायरी

गोशे आंचल के तेरे सीने पर
हाए क्या चीज़ लिए बैठे हैं
जलील मानिकपुरी

तेरे माथे पे ये आंचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आंचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़

दूर के चांद को ढूंढ़ो न किसी आंचल में
ये उजाला नहीं आंगन में समाने वाला
निदा फ़ाज़ली

ये हवा कैसे उड़ा ले गई आंचल मेरा
यूं सताने की तो आदत मेरे घनश्याम की थी
परवीन शाकिर

हिनाई हाथ से आंचल संभाले
ये शरमाता हुआ कौन आ रहा है
मजनूं गोरखपुरी

मुद्दतों बाद मयस्सर हुआ मां का आंचल
मुद्दतों बाद हमें नींद सुहानी आई
इक़बाल अशहर

न छांव करने को है वो आंचल न चैन लेने को हैं वो बांहें
मुसाफ़िरों के क़रीब आ कर हर इक बसेरा पलट गया है
क़तील शिफ़ाई

अपने आंचल में छुपा कर मेरे आंसू ले जा
याद रखने को मुलाक़ात के जुगनू ले जा
अज़हर इनायती

नमी सी थी दम-ए-रुख़्सत कुछ उन के आंचल पर
वो अश्क थे कि पसीना मैं सोचता ही रहा
मिर्ज़ा महमुद सरहदी


मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता

मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता 
नई ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता 

नई ज़मीन नया आसमाँ भी मिल जाए 
नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता 

वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मिरा 
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता 

वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे 
कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता 

जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ 
यहाँ तो कोई मिरा हम-ज़बाँ नहीं मिलता 

खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में 
तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता 

Friday, May 7, 2021

ज़मीं पे इंसाँ ख़ुदा बना था वबा से पहले

ज़मीं पे इंसाँ ख़ुदा बना था वबा से पहले 
वो ख़ुद को सब कुछ समझ रहा था वबा से पहले 

पलक झपकते ही सारा मंज़र बदल गया है 
यहाँ तो मेला लगा हुआ था वबा से पहले 

तुम आज हाथों से दूरियाँ नापते हो सोचो 
दिलों में किस दर्जा फ़ासला था वबा से पहले 

अजीब सी दौड़ में सब ऐसे लगे हुए थे 
मकाँ मकीनों को ढूँढता था वबा से पहले 

हम आज ख़ल्वत में इस ज़माने को रो रहे हैं 
वो जिस से सब को बहुत गिला था वबा से पहले 

न जाने क्यों आ गया दुआ में मिरी वो बच्चा 
सड़क पे जो फूल बेचता था वबा से पहले 

दुआ को उट्ठे हैं हाथ 'अम्बर' तो ध्यान आया 
ये आसमाँ सुर्ख़ हो चुका था वबा से पहले 

जिंदगी शायरी

1. जिंदगी बता तेरी दास्तां मैं क्या लिखूं
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बावफ़ा लिखूं तुझको या बेवफ़ा लिखूं

2. कभी इनायत कभी कहर भी होगी
जिंदगी कभी जाम कभी जहर भी होगी

3. प्यालों की शाम उजालों की सहर भी होगी
मगर हयात के सफ़र में दोपहर भी होगी

4. जिसकी हमें उम्मीद थी तुझसे कभी मिला नहीं
फिर भी मगर ऐ जिंदगी तुझसे हमें गिला नहीं

5. तमाम उम्र हमने जिंदगी से आशनाई की
मगर जिंदगी ने फिर भी हमसे बेवफाई की

6. पहले क्यों बिठाया था उठाकर हमें अपने ठिकानों से
अब ए जिंदगी तेरे शानों से हम उतर नहीं सकते

7. 'नामचीन' मौत तो जब आएगी तब आएगी
ये जिंदगी पहले ही मेरा काम तमाम करके छोड़ेगी

8. दरबदर भटकाती रही जिंदगी हमें उम्रभर आजमाती रही
कभी हम इस इम्तिहान में रहे कभी उस इम्तिहान में रहे

9. ऐ जिंदगी अगर तू मयस्सर होने का वादा करे तो हम
तेरी तलाश में कुछ दिन और दुनिया की ख़ाक छान लेते हैं

10.मुकद्दर के इस खेल में हम भी अपनी किस्मत आजमाकर
देखते हैं
अगर ज़िन्दगी जुआ है तो हम भी एक दांव लगाकर देखते हैं

अपनों को बहुत नज़दीक से देखा है

सीधे से रास्ते को कई बार मुड़ते देखा है
कैसे कहें कि खामोशियों को चीखते देखा है ...

आस-पास बेमतलब सी चीजों की मौजूदगी क्यों??
मैंने दूर जाते अपनों को बहुत नज़दीक से देखा है...

कुछ रिश्ते निभा लिए गए बेसबब ही जिंदगी भर
कुछ रिश्तों को बेवज़ह उलझते देखा है...

कैसे बुन लें पूरे सफर का ख्वाब बंद आंखों से
खुली आँखों से जब पल में मंजर को बदलते देखा है...

कहना, सुनना, देखना ,छू पाना...बहुत आसानी है इन बातों में
मैंने सनसनी हवाओं को चुप होकर गुज़रते देखा है। 

वक़्त, समय शायरी

सदा ऐश दौराँ दिखाता नहीं 
गया वक़्त फिर हाथ आता नहीं 
- मीर हसन

सुब्ह होती है शाम होती है 
उम्र यूँही तमाम होती है 
- मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम

वक़्त की गर्दिशों का ग़म न करो 
हौसले मुश्किलों में पलते हैं 
- महफूजुर्रहमान आदिल

और क्या चाहती है गर्दिश-ए-अय्याम कि हम 
अपना घर भूल गए उन की गली भूल गए 
- जौन एलिया

वक़्त अच्छा भी आएगा 'नासिर' 
ग़म न कर ज़िंदगी पड़ी है अभी 
- नासिर काज़मी

गुज़रने ही न दी वो रात मैं ने 
घड़ी पर रख दिया था हाथ मैं ने 
- शहज़ाद अहमद

उम्र भर मिलने नहीं देती हैं अब तो रंजिशें 
वक़्त हम से रूठ जाने की अदा तक ले गया 
- फ़सीह अकमल

वक़्त करता है परवरिश बरसों 
हादिसा एक दम नहीं होता 
- क़ाबिल अजमेरी

वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता 
दर्द कुछ होते हैं ता-उम्र रुलाने वाले 
- सदा अम्बालवी

'अख़्तर' गुज़रते लम्हों की आहट पे यूँ न चौंक 
इस मातमी जुलूस में इक ज़िंदगी भी है 
- अख़्तर होशियारपुरी

कोई ठहरता नहीं यूँ तो वक़्त के आगे 
मगर वो ज़ख़्म कि जिस का निशाँ नहीं जाता 
- फ़र्रुख़ जाफ़री

सब आसान हुआ जाता है 
मुश्किल वक़्त तो अब आया है 
- शारिक़ कैफ़ी

गुज़रते वक़्त ने क्या क्या न चारा-साज़ी की 
वगरना ज़ख़्म जो उस ने दिया था कारी था 
- अख़्तर होशियारपुरी

रोके से कहीं हादसा-ए-वक़्त रुका है 
शोलों से बचा शहर तो शबनम से जला है 
- अली अहमद जलीली

Thursday, May 6, 2021

आहट शायरी

दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है 
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में 
- गुलज़ार

जिसे न आने की क़स्में मैं दे के आया हूँ 
उसी के क़दमों की आहट का इंतिज़ार भी है 
- जावेद नसीमी

मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी 
कोई आहट न हो दर पर मिरे जब तू आए 
- बशीर बद्र
 
आहटें सुन रहा हूँ यादों की 
आज भी अपने इंतिज़ार में गुम 
- रसा चुग़ताई

'अख़्तर' गुज़रते लम्हों की आहट पे यूँ न चौंक 
इस मातमी जुलूस में इक ज़िंदगी भी है 
- अख़्तर होशियारपुरी

नींद आए तो अचानक तिरी आहट सुन लूँ 
जाग उठ्ठूँ तो बदन से तिरी ख़ुश्बू आए 
- शहज़ाद अहमद

कोई हलचल है न आहट न सदा है कोई 
दिल की दहलीज़ पे चुप-चाप खड़ा है कोई 
- ख़ुर्शीद अहमद जामी

कोई आवाज़ न आहट न कोई हलचल है 
ऐसी ख़ामोशी से गुज़रे तो गुज़र जाएँगे 
- अलीना इतरत
 
आज भी नक़्श हैं दिल पर तिरी आहट के निशाँ 
हम ने उस राह से औरों को गुज़रने न दिया 
- अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन

शाम ढले आहट की किरनें फूटी थीं 
सूरज डूब के मेरे घर में निकला था 
- ज़ेहरा निगाह

आहट भी अगर की तो तह-ए-ज़ात नहीं की 
लफ़्ज़ों ने कई दिन से कोई बात नहीं की 
- जावेद नासिर

ये भी रहा है कूचा-ए-जानाँ में अपना रंग 
आहट हुई तो चाँद दरीचे में आ गया 
- अज़हर इनायती

मदद शायरी

हम चराग़ों की मदद करते रहे
और उधर सूरज बुझा डाला गया
- मनीश शुक्ला


कुछ न कहने से भी छिन जाता है एजाज़-ए-सुख़न
ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है
- मुज़फ़्फ़र वारसी 


समुंदरों को भी हैरत हुई कि डूबते वक़्त
किसी को हम ने मदद के लिए पुकारा नहीं
- इफ़्तिख़ार आरिफ़ 


न कुछ सितम से तिरे आह आह करता हूं
मैं अपने दिल की मदद गाह गाह करता हूं 
- शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

तदबीर के दस्त-ए-रंगीं से तक़दीर दरख़्शां होती है
क़ुदरत भी मदद फ़रमाती है जब कोशिश-ए-इंसां होती है
- हफ़ीज़ बनारसी


अज़ीज़ आए मदद को न ग़म-गुसार आए
ज़माने भर को मुसीबत में हम पुकार आए
- जावेद वशिष्ट

बहुत सादा दिल हैं बहुत नेक हैं
हमारे तुम्हारे मदद-गार सब
- अक़ील नोमानी


कोई मेरी मदद को आया नहीं
मैं ने सब को पुकार कर देखा
- सय्यदा कौसर मनव्वर शरक़पुरी

वो मुझ को क्या बताना चाहता है

वो मुझ को क्या बताना चाहता है
जो दुनिया से छुपाना चाहता है

मुझे देखो कि मैं उस को ही चाहूं
जिसे सारा ज़माना चाहता है

क़लम करना कहां है उस की मंशा
वो मेरा सर झुकाना चाहता है

शिकायत का धुआं आंखों से दिल तक
तअ'ल्लुक़ टूट जाना चाहता है

तक़ाज़ा वक़्त का कुछ भी हो ये दिल
वही क़िस्सा पुराना चाहता है

Wednesday, May 5, 2021

मैं वो हसीं ग़ज़ल बन जाऊंगी


खुद को देखोगे तुम जिसमें,
मैं वो अक्स बन जाऊंगी।
ढूंढोगे तुम जिसको हर किरदार में,
मैं वो शख्स बन जाऊंगी।।

चलना चाहोगे तुम बार-बार जिस पर,
मैं वो डगर बन जाऊंगी।
खो जाओगे तुम जिस में हमेशा के लिए,
मैं वो भंवर बन जाऊंगी।।

याद आएगा जो तुम्हें बार-बार,
मैं वो पल बन जाऊंगी।
इंतजार रहेगा तुम्हें जिसका हमेशा,
मैं वो कल बन जाऊंगी।।

याद करके मुस्कुराओगे तुम जिसे,
मैं वो हसीं भूल बन जाऊंगी।
महकती रहेगी तुम्हारी जिंदगी जिस खुशबू से,
मैं वो फूल बन जाऊंगी।।

जिसके बिना अधूरे हो जाओगे तुम,
मैं तुम्हारा वो हिस्सा बन जाऊंगी।
कमी महसूस होगी तुम्हे जिसकी,
मैं तुम्हारा वो किस्सा बन जाऊंगी।।

भर आए जो हर खुशी में भी,
मैं वो नयन सजल बन जाऊंगी।
गुनगुनाओगे तुम जिसे हर पल,
मैं वो हसीं ग़ज़ल बन जाऊंगी

सुर्ख इन लबों की र॔गत गुलाबों में कहां

सुर्ख इन लबों की र॔गत गुलाबों में कहां, 
होगा चांद हसीं लेकिन तेरे जितना कहां? 

ये जो ज़िन्दगी की किताब है


ये जो ज़िन्दगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है
कहीं इक हसीन सा ख़्वाब है कहीं जान-लेवा अज़ाब है

कहीं छांव है कहीं धूप है कहीं और ही कोई रूप है,
कई चेहरे इस में छुपे हुए इक अजीब सी ये नक़ाब है
 
कहीं खो दिया कहीं पा लिया कहीं रो लिया कहीं गा लिया,
कहीं छीन लेती है हर ख़ुशी कहीं मेहरबान बेहिसाब है
 
कहीं आंसुओं की है दास्तां कहीं मुस्कुराहटों का बयां,
कहीं बर्क़तों की है बारिशें कहीं तिश्नगी बेहिसाब है

Monday, May 3, 2021

उल्फ़त का जब किसी ने लिया नाम रो पड़े

उल्फ़त का जब किसी ने लिया नाम रो पड़े
अपनी वफ़ा का सोच के अंजाम रो पड़े

हर शाम ये सवाल मोहब्बत से क्या मिला
हर शाम ये जवाब कि हर शाम रो पड़े

राह-ए-वफ़ा में हम को ख़ुशी की तलाश थी
दो गाम ही चले थे कि हर गाम रो पड़े

रोना नसीब में है तो औरों से क्या गिला
अपने ही सर लिया कोई इल्ज़ाम रो पड़े

सुदर्शन फ़ाकिर

मेरे सजदे में थे आप

पशेमान ये नजरें, खुदा से मिलाएँ कैसे. 
मेरे सजदे में थे आप, खुदा को बताए कैसे। 

Sunday, May 2, 2021

बारिशों में जल गये होते


जिंदगी ने संभलने से रोका हमें,

शराबों में क्या नशा कि बहक जाते।

सिरफिरे न होते तो शायर क्या होते,
खामियां न होती तो कुछ भी न होते।

आज ही तो उठकर चलने लगे हम,
न मिलतेे तुम तोे उम्रभर सोये रहते।

तेरी सांसों ने बुझा दी सीने की आग,
वरना हम तो बारिशों में जल गये होते।

न होता कोई हमदर्द दुनिया में मंज़र,
गर आसमां से तारे न आंगन में गिरते।

जो मिला वो कम था क्या

दिले ख्वाहिश दिल में ही दफ्न रह गई।

मिले कोई जो होकर मेरा समझता मुझे।।
जिस तरह हो के तेरा टूटकर चाहा तुझे।
जो मिलता कोई अपना जो चाहता मुझे।।
कुछ लम्हों में जी लेती मेरी तमाम जिंदगी।
गर होती रूबरू तेरे इश्क से मेरी जिंदगी।।
जो मुकम्मल होती मेरी राहें मुहब्बत की।
तो कैसे लिखती मेरी कलम बात एहसासों की।।
सोचा चलो चलते हैं , इश्क़ की मंजिल न मिली तो गम क्या।
खूबसूरत बनाएं अपने सफर को, जो मिला वो कम था क्या।।

मुझसे बात न करो

मुझसे न बात करो कोई, मन लग जाएगा..

फिर एक दिन तुम सबका भी, मन भर जाएगा..
हम फिर भी कुछ न कहेंगे किसी से
आंसू फिर पियेंगे, दर्द सहेंगे सही से..
फ़ितरत ही रही ऎसी, हमेशा हमारी
हर शख्स अपना हो, मंज़िल थी बना ली..

कभी अनकही रह जाती है।

बातें....


कभी सुनी जाती है,
या कभी अनकही रह जाती है।
फिर भी
बातें बाकी रह जाती है...
क्या किसी को पता है..
कि ये बातें कब पूरी होती है?
ये बातें इतनी चतुर होती हैं
कि मन के भेद खोल देती है।
ये जुबां से हरदम
निकलना चाहती है.....
मगर ये होंठ रोक देते है....
कभी-कभी तो ये
हृदय के राज़ को
मन के झूले से होते हुए
आंखों की झांकी से
सब प्रकट कर देती है...
इसे लज्जा भी नहीं आती....
ये बेहिसाब उड़ना चाहती हैं,
सबसे आगे जाना चाहती है....
इसे बंदिशों में रहना नहीं आता....
ये सारी बेड़ियाँ तोड़कर,
झिझक की दहलीज़ छोड़कर,
स्वतंत्रता के आंगन में
अपना घर बसाना चाहती है.....
ऐसी होती हैं...
ये 'बातें'
बेधड़क और बेझिझक...
क्योंकि जज़्बात सही या गलत नहीं होते...
जज़्बात तो बस जज़्बात होते हैं।

कुछ दिन तुम्हारे दिल में ठहर जाने दो.

प्रवासी हूँ

कुछ दिन
तुम्हारे दिल के
खूबसूरत शहर में
ठहर जाने दो.

ग़र मंजूर हो
तो धीरे से मुस्कुरा देना
ग़र तकल्लुफ़ हो तो
चुपके से बता देना.

मैं देश तुम्हारे दिल का
छोड़ चला जाऊंगा
ये वादा है मेरा
कभी लौट कर
नहीं आऊंगा.

ग़र भा गया
तुम्हारे मन को
तो दिल में बसा लेना
अपना शहर छोड़ कर
तुम्हारे दिल में बस जाऊंगा.
प्रवासी... हूँ...

हे! मजदूरों तुम्हें नमन

जो धरती की माटी लेकर
 माथे तिलक लगाते हैं

जो खेतों से राजपथों तक
 श्रम के गीत सुनाते हैं ।

जिनके भीतर जलती रहती 
सूरज जैसी कोई अगन

 हे! मजदूरों तुम्हें नमन
 हे! श्रमवीरों तुम्हें नमन।

 जिनका स्वेद, गिरे धरा पर
 वो चंदन बन जाता है।

 चट्टानों को काट काट 
जो गीत विजय के गाता है 

संघर्षों में तपकर भी
 अंदर जिंदा रखे लगन

 हे! मजदूरों तुम्हें नमन 
हे! श्रमवीरों तुम्हें नमन।
जो माटी को सींच रहे हैं 
अपने खून पसीने से ।

खूब संवरती है ये धरती
 श्रम के इसी नगीने से।

 जिनके भीतर ही पलती है 
पर्वत जैसी ठोस लगन ।

हे! मजदूरों तुम्हें नमन 
हे! श्रमवीरों तुम्हें नमन।
जिनका जीवन भी अर्पित
 राष्ट्र के निर्माणों में 

आंखों में विश्वास बसा है
मेहनत जिनके प्राणों में।

 ये माटी के, सच्चे सैनिक 
जो रखते खुशहाल वतन।

 हे ! मजदूरों ,तुम्हें नमन
 हे,श्रमवीरों तुम्हें नमन।

अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया

अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया 
जिस को गले लगा लिया वो दूर हो गया 

काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के 
दीवाना बे-पढ़े-लिखे मशहूर हो गया 

महलों में हम ने कितने सितारे सजा दिए 
लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया 

तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना! 
आईना बात करने पे मजबूर हो गया 

दादी से कहना उस की कहानी सुनाइए 
जो बादशाह इश्क़ में मज़दूर हो गया 

सुब्ह-ए-विसाल पूछ रही है अजब सवाल 
वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया 

कुछ फल ज़रूर आएँगे रोटी के पेड़ में 
जिस दिन मिरा मुतालबा मंज़ूर हो गया

बशीर बद्र 

Friday, April 30, 2021

आँसू शायरी

वैसे तो इक आंसू ही बहा कर मुझे ले जाए
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता
- वसीम बरेलवी

एक आंसू ने डुबोया मुझ को उन की बज़्म में
बूंद भर पानी से सारी आबरू पानी हुई
- शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ 

थमते थमते थमेंगे आंसू
रोना है कुछ हंसी नहीं है
- बुध सिंह कलंदर

रोज़ अच्छे नहीं लगते आंसू
ख़ास मौक़ों पे मज़ा देते हैं
- मोहम्मद अल्वी 

शबनम के आंसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
आंखें मिरी भीगी हुई चेहरा तिरा उतरा हुआ
- बशीर बद्र


दिल में इक दर्द उठा आंखों में आंसू भर आए
बैठे बैठे हमें क्या जानिए क्या याद आया
- वज़ीर अली सबा लखनवी 

क्या कहूं किस तरह से जीता हूं
ग़म को खाता हूं आंसू पीता हूं
- मीर असर 

ये आंसू बे-सबब जारी नहीं है
मुझे रोने की बीमारी नहीं है
- कलीम आजिज़ 

मोहब्बत में इक ऐसा वक़्त भी दिल पर गुज़रता है
कि आंसू ख़ुश्क हो जाते हैं तुग़्यानी नहीं जाती
- जिगर मुरादाबादी

मेरी आंखों में हैं आंसू तेरे दामन में बहार
गुल बना सकता है तू शबनम बना सकता हूं मैं
- नुशूर वाहिदी 

किताब शायरी



काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के
दीवाना बे-पढ़े-लिखे मशहूर हो गया
बशीर बद्र

किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को
काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के
आदिल मंसूरी

क़ब्रों में नहीं हम को किताबों में उतारो
हम लोग मोहब्बत की कहानी में मरें हैं
एजाज तवक्कल

एक चराग़ और एक किताब और एक उम्मीद असासा
उस के बाद तो जो कुछ है वो सब अफ़्साना है
इफ़्तिख़ार आरिफ़ 

किधर से बर्क़ चमकती है देखें ऐ वाइज़
मैं अपना जाम उठाता हूं तू किताब उठा
जिगर मुरादाबादी

खड़ा हूं आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझको
नज़ीर बाक़री

जो पढ़ा है उसे जीना ही नहीं है मुमकिन
ज़िंदगी को मैं किताबों से अलग रखता हूं
ज़फ़र सहबाई

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
निदा फ़ाज़ली

ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं
जां निसार अख़्तर

वही फ़िराक़ की बातें वही हिकायत-ए-वस्ल
नई किताब का एक इक वरक़ पुराना था
इफ़्तिख़ार आरिफ़

शायरी दिल की आवाज़ है या

शायरी दिल की आवाज़ है या महबूब की ज़ुल्‍फ़ों का पेंचोख़म. 
जो भी है इनके ज़रिये दिल की बात लबों तक आती है।


हम वाकिफ़ नहीं थे

तेरे हर फैसले में, 
जो शामिल नहीं थे हम ।
ज़िंदगी तेरे मिज़ाज से,
वाकिफ़ नहीं थे हम ।।

Wednesday, April 28, 2021

दुआ शायरी

कोई दुआ कभी तो हमारी क़ुबूल कर
वर्ना कहेंगे लोग दुआ से असर गया
- शीन काफ़ निज़ाम

ये बस्तियां हैं कि मक़्तल दुआ किए जाएं
दुआ के दिन हैं मुसलसल दुआ किए जाएं
- इफ़्तिख़ार आरिफ़

मंज़र को किसी तरह बदलने की दुआ दे
दे रात की ठंडक को पिघलने की दुआ दे
- शीन काफ़ निज़ाम

मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले
हंसी आ रही है तिरी सादगी पर
- गोपाल मित्तल 

हर-दम यही दुआ है ख़ुदा की जनाब में
आ जाए यार ख़ुद मिरे ख़त के जवाब में
- अज्ञात 

यही दुआ है वो मेरी दुआ नहीं सुनता
ख़ुदा जो होता अगर क्या ख़ुदा नहीं सुनता
- सय्यदा अरशिया हक़ 

चंद पेड़ों को ही मजनूं की दुआ होती है
सब दरख़्तों पे तो पत्थर नहीं आया करता
- अहमद कामरान

कभी दुआ तो कभी बद-दुआ से लड़ते हुए
तमाम उम्र गुज़ारी हवा से लड़ते हुए
- ज़फ़र मुरादाबादी

हमारे हक़ में दुआ करेगा
वो इक न इक दिन वफ़ा करेगा
- नासिर राव

हर दुआ गर क़ुबूल हो जाए
ज़िंदगी ही फ़ुज़ूल हो जाए
- मुनीर अरमान नसीमी 

Saturday, April 24, 2021

बड़ा समर्पण है इन बारिश की बूंदों में वर्ना

बड़ा समर्पण है इन बारिश की बूंदों में वर्ना, 
आसमान तक पहुचकर कौन गिरना चाहता है! 

उजाला शायरी

शाम ख़ामोश है पेड़ों पे उजाला कम है
लौट आए हैं सभी एक परिंदा कम है
- फ़हीम जोगापुरी


दिल की बस्ती में उजाला ही उजाला होता
काश तुम ने भी किसी दर्द को पाला होता
- अशोक साहिल 

अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा

ग़ज़ल में अब के भी तेरा हवाला कम रहेगा
- सलीम कौसर


ये दाग़ दाग़ उजाला ये शब-गज़ीदा सहर
वो इंतिज़ार था जिस का ये वो सहर तो नहीं
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ये सर्द-मेहर उजाला ये जीती-जागती रात
तिरे ख़याल से तस्वीर-ए-माह जलती है
- महबूब ख़िज़ां


इस अंधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
रात जंगल में कोई शमां जलाने से रही
- निदा फ़ाज़ली

मेरी तारीक शबों में है उजाला इन से
चांद से ज़ख़्मों पे मरहम ये लगाते क्यूं हो
- लईक़ आजिज़


यही दिन में ढलेगी रात 'अख़्तर'
यही दिन का उजाला रात होगा
- अख़्तर होशियारपुरी

अंधेरों को निकाला जा रहा है
मगर घर से उजाला जा रहा है
- फ़ना निज़ामी कानपुरी


सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या
उजाला हर तरफ़ है इस किनारे उस किनारे क्या
- हफ़ीज़ बनारसी

Friday, April 23, 2021

दहलीज पर रख दी है चाहत आगे तुम जानो

🍁|| जरूरी नहीं की हर बात पर तुम मेरा कहा मानों 
  दहलीज पर रख दी है चाहत आगे तुम जानो ||🍁


मैं इन बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूं
मैं इन नजारों का अंधा तमाशबीन नहीं।
~ दुष्यंत कुमार

तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं,
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं।
- दुष्यंत कुमार

🍁|| तेरी उंगलियां जो उलझी रही मेरे हाथ में
   यकीनन हम सारी उलझनो को सुलझा लेंगे ||🍁

🍁|| यूँ ही रिहा नहीं हो सकेंगे जहन से तुम्हारे हम
 बड़ी शिद्दत से तुम्हारे दिल में घर बनाया है ||🍁

🍁|| शहर के शहर बंद हैं, हर गली में नाकाबंदी है
   तुम पता नहीं किन रस्तों से चले आते हो ख़्यालों में ||🍁

🍁|| ख्वाहिश ये नही की वो लौट आए मेरे पास 
    तमन्ना ये है कि उसे जाने का मलाल हो ||🍁

"...प्रेम में पड़ी स्त्री को तुम्हारे साथ सोने से
ज़्यादा अच्छा लगता है तुम्हारे साथ जागना"
~ अमृता प्रीतम

🍁|| मेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हें
   मेरे कमरे में टूटे ख्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं ||🍁


Thursday, April 22, 2021

पुकार शायरी

नज़र पुकार रही है तुम्ही चले आओ
मिरी हयात मिरी ज़िंदगी चले आओ
- शाहिदा लतीफ़

कहीं फ़साना-ए-ग़म है कहीं ख़ुशी की पुकार
सुनेगा आज यहां कौन ज़िंदगी की पुकार
- रविश सिद्दीक़ी

मुझे हज़ार मर्तबा पुकार कर चला गया
वो सारी उम्र मेरा इंतिज़ार कर चला गया
- ज़ोहेब फ़ारूक़ी अफ़रंग


मैं जिस का मुंतज़िर हूँ वो मंज़र पुकार ले
शायद निकल के जिस्म से बाहर पुकार ले
- अलीम सबा नवेदी

बाग़ का बाग़ उजड़ गया कोई कहो पुकार कर
किस ने शफ़क़ पे मल दिए फूलों के रंग उतार कर
- शहज़ाद अहमद 


दिखाएगी असर दिल की पुकार आहिस्ता आहिस्ता
बजेंगे आप के दिल के भी तार आहिस्ता आहिस्ता
- सदा अम्बालवी

सुना है चुप की भी कोई पुकार होती है
ये बद-गुमानी मुझे बार बार होती है
- राहिल बुख़ारी


पुकार लेंगे उस को इतना आसरा तो चाहिए
दुआ ख़िलाफ़-ए-वज़अ है मगर ख़ुदा तो चाहिए
- रईस फ़राज़

चीख़-ओ-पुकार में तो हैं शामिल तमाम लोग
क्या बात है ये कोई बता भी नहीं रहा
- मंज़ूर हाशमी


उसे लाख दिल से पुकार लो उसे देख लो
कोई एक हर्फ़ जवाब में नहीं आएगा
- नोशी गिलानी