सर्दी में दिन सर्द मिला
हर मौसम बेदर्द मिला
ऊँचे लम्बे पेड़ों का
पत्ता पत्ता ज़र्द मिला
सोचते हैं क्यूँ ज़िंदा हैं
अच्छा ये सर-दर्द मिला
हम रोए तो बात भी थी
क्यूँ रोता हर फ़र्द मिला
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
सर्दी में दिन सर्द मिला
हर मौसम बेदर्द मिला
ऊँचे लम्बे पेड़ों का
पत्ता पत्ता ज़र्द मिला
सोचते हैं क्यूँ ज़िंदा हैं
अच्छा ये सर-दर्द मिला
हम रोए तो बात भी थी
क्यूँ रोता हर फ़र्द मिला
तुम्हें ग़म की क़सम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो
ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो
मैं देखूँ तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है
कोई दिन के लिए अपनी निगहबानी मुझे दे दो
वो दिल जो मैं ने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है
बड़ी शय है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है,
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में
वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है
अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब
रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
*"Ye Suraj Se Bhi Keh Do Ke Apni Aag Bujha Ke Kare*
*Agar Mujhse Baatein Karni Hai, To Fir Nazar Jhuka Ke Kare"*
कुछ दबी हुई ख्वाहिशें हैं, कुछ मंद मुस्कुराहटें,
कुछ खोये हुए सपने हैं, कुछ अनसुनी आहटें.
कुछ सुकून भरी यादें है, कुछ दर्द भरे लम्हात,
कुछ थमें हुए तूफाँ है, कुछ मद्धम सी बरसात.
कुछ अनकहे अल्फ़ाज़ हैं, कुछ नासमझ इशारे,
कुछ ऐसे मझधार हैं, जिनके मिलते नहीं किनारे.
कुछ उलझने हैं राहों में, कुछ कोशिशें बेहिसाब.
बस इसी का नाम जिंदगी है, चलते रहिये जनाब!
आ गई याद शाम ढलते ही
बुझ गया दिल चराग़ जलते ही
खुल गए शहर-ए-ग़म के दरवाज़े
इक ज़रा सी हवा के चलते ही
कौन था तू कि फिर न देखा तुझे
मिट गया ख़्वाब आँख मलते ही
ख़ौफ़ आता है अपने ही घर से
माह-ए-शब-ताब के निकलते हीतू भी जैसे बदल सा जाता है
अक्स-ए-दीवार के बदलते ही
ख़ून सा लग गया है हाथों में
चढ़ गया ज़हर गुल मसलते ही
अथाह प्यास थी तो चले आये।
तेरी ही तलाश थी तो चले आये ।
ये ना समझना कि मजबूर थे हम,
तबियत उदास थी तो चले आये।
इतना बहाना भी ठीक नही यार,
तेरी ही आस थी तो चले आये।
मानते तो हो पर पहचानते नही,
चाहत हताश थी तो चले आये।
आ तेरी आँखो मे झाँक लूँ खूब
भड़की सी आग थी तो चले आये।
आगोश में आओ तो बता दूँ हाल,
दिल की पुकार थी तो चले आये।
शाम ख़ामोश है पेड़ों पे उजाला कम है
लौट आए हैं सभी एक परिंदा कम है
- फ़हीम जोगापुरी
दिल की बस्ती में उजाला ही उजाला होता
काश तुम ने भी किसी दर्द को पाला होता
- अशोक साहिल
ग़ज़ल में अब के भी तेरा हवाला कम रहेगा
- सलीम कौसर
ये दाग़ दाग़ उजाला ये शब-गज़ीदा सहर
वो इंतिज़ार था जिस का ये वो सहर तो नहीं
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ये सर्द-मेहर उजाला ये जीती-जागती रात
तिरे ख़याल से तस्वीर-ए-माह जलती है
- महबूब ख़िज़ां
इस अंधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
रात जंगल में कोई शमां जलाने से रही
- निदा फ़ाज़ली
मेरी तारीक शबों में है उजाला इन से
चांद से ज़ख़्मों पे मरहम ये लगाते क्यूं हो
- लईक़ आजिज़
यही दिन में ढलेगी रात 'अख़्तर'
यही दिन का उजाला रात होगा
- अख़्तर होशियारपुरी
अंधेरों को निकाला जा रहा है
मगर घर से उजाला जा रहा है
- फ़ना निज़ामी कानपुरी
सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या
उजाला हर तरफ़ है इस किनारे उस किनारे क्या
- हफ़ीज़ बनारसी