Wednesday, December 1, 2021

चाँदनी-रात थी सर्द हवा से खिड़की बजती थी

पिछले बरस तुम साथ थे मेरे और दिसम्बर था 
महके हुए दिन-रात थे मेरे और दिसम्बर था 

चाँदनी-रात थी सर्द हवा से खिड़की बजती थी 
उन हाथों में हाथ थे मेरे और दिसम्बर था 

बारिश की बूंदों से दिल पे दस्तक होती थी 
सब मौसम बरसात थे मेरे और दिसम्बर था 

भीगी ज़ुल्फ़ें भीगा आँचल नींद थी आँखों में 
कुछ ऐसे हालात थे मेरे और दिसम्बर था 

धीरे धीरे भड़क रही थी आतिश-दान की आग 
बहके हुए जज़्बात थे मेरे और दिसम्बर था 

प्यार भरी नज़रों से 'फ़रह' जब उस ने देखा था 
बस वो ही लम्हात थे मेरे और दिसम्बर था

फ़रह शाहिद

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