सर्दी में दिन सर्द मिला
हर मौसम बेदर्द मिला
ऊँचे लम्बे पेड़ों का
पत्ता पत्ता ज़र्द मिला
सोचते हैं क्यूँ ज़िंदा हैं
अच्छा ये सर-दर्द मिला
हम रोए तो बात भी थी
क्यूँ रोता हर फ़र्द मिला
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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