मिरी तरह तिरा दिल बे-क़रार है कि नहीं
पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा
रह गई ज़िंदगी दर्द बन के
दर्द दिल में छुपाए छुपाए
अब जिस तरफ़ से चाहे गुज़र जाए कारवाँ
वीरानियाँ तो सब मिरे दिल में उतर गईं
मंज़िल से वो भी दूर था और हम भी दूर थे
हम ने भी धूल उड़ाई बहुत रहनुमा के साथ
वो भी सराहने लगे अर्बाब-ए-फ़न के बा'द
दाद-ए-सुख़न मिली मुझे तर्क-ए-सुख़न के बा'द
दीवारें तो हर तरफ़ खड़ी हैं
क्या हो गए मेहरबान साए
जहाँ से पिछले पहर कोई तिश्ना-काम उठा
वहीं पे तोड़े हैं यारों ने आज पैमाने
छटा जहाँ से उस आवाज़ का घना बादल
वहीं से धूप ने तलवे जलाए हैं क्या क्या
आज फिर टूटेंगी तेरे घर की नाज़ुक खिड़कियाँ
आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में
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