खुशियाँ बेशुमार हो जरूरी तो नहीं,
सपने सारे पूरे हो जरूरी तो नहीं,
माना लोगो में अंतर बहुत है,
सब हमसे खुश हो जरूरी तो नहीं।
कौन कहता हैं सब अपने नहीं,
मन से साथ में बैठ तो सही,
बहुत कर ली बातें दूसरो से,
एक अपनी आत्मा से करके देख तो सही,
सब हमसे खुश हो जरूरी तो नहीं,
आदमी अनेक, रिश्ते अनेक ,
खून के रिश्तों में परिवर्तन अनेक,
सब के मन से मन मिले जरूरी नहीं,
पर हर बातो को दिल मे रखना जरुरी नहीं,
सब हमसे खुश हो जरूरी तो नहीं।
हा माना तकलीफ होती हैं,
रिश्तो के टूटने पे,
सब कुछ मन का मिल जाये ,
तो शिकायत की जरूरत ही नहीं,
सब हमसे खुश हो जरूरी तो नहीं।
दिल से दिल मिलते हैं,
पर मन से मन मिले जरूरी तो नही,
कुछ बाते मन मे ही अधूरी हो,
हर बातो को बयां कर देना जरूरी तो नही,
सब हमसे खुश हो जरूरी तो नही।
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