उसका गुस्सा मेरे लिए सजा,
उसकी उड़ती जुल्फें और मेरा कंधा
वो इतनी पावन जैसे कल -कल करती गंगा,
उसकी आंखें दरिया सी गहरी
ओर में मांझी बीच मझधार में फंसी नैया का,
वो बरसाने की राधा गोरी,
और मैं सावला अपनी यशोदा मैया का
वह जैसे कड़कती ठंड में चाय की प्याली सी,
वह जैसे बसंत ऋतु में फैली हरियाली सी,
वह जैसे अमावस की रात में पूनम का चंद्रमा
वह जैसे रोते हुए बच्चे को हसाती प्यारी मां
यह सब पुरानी बात है आज की नहीं
दिल खोल कर सब बोल दिया अब कुछ भी राज नहीं
ऐसा नहीं कि अब उसकी चाहत नहीं मुझे,
पर मेरी मोहब्बत अब उसके इश्क के ताज के मोहताज नहीं
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