Tuesday, November 30, 2021

रंग आ जाते मुट्ठी में जुगनू बन कर...

जिस को मेरी हालत का एहसास नहीं, 
उस को दिल का हाल सुना कर रोना क्या.

इस तरह सताया है परेशान किया है, 
गोया कि मोहब्बत नहीं एहसान किया है.

दीवारों में दर होता तो अच्छा था, 
अपना कोई घर होता तो अच्छा था. 

ऐ मेरे मुसव्विर नहीं ये मैं तो नहीं हूँ,
ये तू ने बना डाली है तस्वीर कोई और.

रंग आ जाते मुट्ठी में जुगनू बन कर, 
ख़ुशबू का पैकर होता तो अच्छा था. 

अब अश्क तिरे रोक नहीं पाएँगे मुझ को, 
अब डाल मिरे पाँव में ज़ंजीर कोई और. 


अफ़ज़ाल फ़िरदौस


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