हाए क्या चीज़ लिए बैठे हैं
जलील मानिकपुरी
तेरे माथे पे ये आंचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आंचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
दूर के चांद को ढूंढ़ो न किसी आंचल में
ये उजाला नहीं आंगन में समाने वाला
निदा फ़ाज़ली
ये हवा कैसे उड़ा ले गई आंचल मेरा
यूं सताने की तो आदत मेरे घनश्याम की थी
परवीन शाकिर
हिनाई हाथ से आंचल संभाले
ये शरमाता हुआ कौन आ रहा है
मजनूं गोरखपुरी
मुद्दतों बाद मयस्सर हुआ मां का आंचल
मुद्दतों बाद हमें नींद सुहानी आई
इक़बाल अशहर
न छांव करने को है वो आंचल न चैन लेने को हैं वो बांहें
मुसाफ़िरों के क़रीब आ कर हर इक बसेरा पलट गया है
क़तील शिफ़ाई
अपने आंचल में छुपा कर मेरे आंसू ले जा
याद रखने को मुलाक़ात के जुगनू ले जा
अज़हर इनायती
नमी सी थी दम-ए-रुख़्सत कुछ उन के आंचल पर
वो अश्क थे कि पसीना मैं सोचता ही रहा
मिर्ज़ा महमुद सरहदी
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