Thursday, May 27, 2021

बेपनाह हुस्न


तुझको नज़रों ने देखा है मेरी, 
लबों से तारीफ़ कैसे करूं.

निगाहों में जो क़ैद है अक्स तेरा, 
उसे लफ़्ज़ों में बयाँ कैसे करूँ. 

तेरे लबों में सिमटे हैं जो सुर्ख़ गुलाब, 
उन्हें छूने की हसरत होती है बार बार. 

तेरी पलकों में रखा है मैंने सावन, 
उसमें भीगने को बेक़रार है मेरा तन मन. 

तेरे रुखसार पे खिला है ये जो मख़मली चाँद का नूर, आईने में तू भी इसे एक बार देखना जरूर. 

बेपनाह हुस्न की तू ही तो है मल्लिका, 
हो जाएगा तुझे ख़ुद पर ही गुरुर! 

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