Sunday, May 2, 2021

हे! मजदूरों तुम्हें नमन

जो धरती की माटी लेकर
 माथे तिलक लगाते हैं

जो खेतों से राजपथों तक
 श्रम के गीत सुनाते हैं ।

जिनके भीतर जलती रहती 
सूरज जैसी कोई अगन

 हे! मजदूरों तुम्हें नमन
 हे! श्रमवीरों तुम्हें नमन।

 जिनका स्वेद, गिरे धरा पर
 वो चंदन बन जाता है।

 चट्टानों को काट काट 
जो गीत विजय के गाता है 

संघर्षों में तपकर भी
 अंदर जिंदा रखे लगन

 हे! मजदूरों तुम्हें नमन 
हे! श्रमवीरों तुम्हें नमन।
जो माटी को सींच रहे हैं 
अपने खून पसीने से ।

खूब संवरती है ये धरती
 श्रम के इसी नगीने से।

 जिनके भीतर ही पलती है 
पर्वत जैसी ठोस लगन ।

हे! मजदूरों तुम्हें नमन 
हे! श्रमवीरों तुम्हें नमन।
जिनका जीवन भी अर्पित
 राष्ट्र के निर्माणों में 

आंखों में विश्वास बसा है
मेहनत जिनके प्राणों में।

 ये माटी के, सच्चे सैनिक 
जो रखते खुशहाल वतन।

 हे ! मजदूरों ,तुम्हें नमन
 हे,श्रमवीरों तुम्हें नमन।

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