Sunday, May 9, 2021

साथी, सब सहना पड़ता है।

साथी, सब सहना पड़ता है। 
उर-अंतर के अरमानों को, 
छालों को मधु-वरदानों को, 
और मूक गीले गानों को 

निर्मम कर से स्वयं कुचल कर 
और मसल कर— 
भी तो #जननी के सम्मुख 
असमर्थ हमें हँसना पड़ता है। 
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संचित जीवन-कोष लुटा कर 
पाषाणों पर हृदय चढ़ाकर 
सब अपने अधिकार मिटाकर 
घूँट हलाहल-सी भी पीकर— 

अपने ही हाथों से कंपित 
और विनिंदित— 
भी हो, ख़ुशी न ख़ुशी से 
पर मर-मर कर जीना पड़ता है। 
जीवन के एकाकी-पथ पर 
कुछ काँटों की सेज बिछाकर 
कर का जलता दीप बुझाकर 
पग अपने सहला-सहला कर— 

अपने ही हाथों से विह्वल 
तन-मन व्याकुल— 
भी हो पर जीवन-पथ पर 
हमको प्रतिपल बढ़ना पड़ता है। 

साथी, सब सहना पड़ना पड़ता है॥

गोपाल दास नीरज 

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