Friday, May 7, 2021

वक़्त, समय शायरी

सदा ऐश दौराँ दिखाता नहीं 
गया वक़्त फिर हाथ आता नहीं 
- मीर हसन

सुब्ह होती है शाम होती है 
उम्र यूँही तमाम होती है 
- मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम

वक़्त की गर्दिशों का ग़म न करो 
हौसले मुश्किलों में पलते हैं 
- महफूजुर्रहमान आदिल

और क्या चाहती है गर्दिश-ए-अय्याम कि हम 
अपना घर भूल गए उन की गली भूल गए 
- जौन एलिया

वक़्त अच्छा भी आएगा 'नासिर' 
ग़म न कर ज़िंदगी पड़ी है अभी 
- नासिर काज़मी

गुज़रने ही न दी वो रात मैं ने 
घड़ी पर रख दिया था हाथ मैं ने 
- शहज़ाद अहमद

उम्र भर मिलने नहीं देती हैं अब तो रंजिशें 
वक़्त हम से रूठ जाने की अदा तक ले गया 
- फ़सीह अकमल

वक़्त करता है परवरिश बरसों 
हादिसा एक दम नहीं होता 
- क़ाबिल अजमेरी

वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता 
दर्द कुछ होते हैं ता-उम्र रुलाने वाले 
- सदा अम्बालवी

'अख़्तर' गुज़रते लम्हों की आहट पे यूँ न चौंक 
इस मातमी जुलूस में इक ज़िंदगी भी है 
- अख़्तर होशियारपुरी

कोई ठहरता नहीं यूँ तो वक़्त के आगे 
मगर वो ज़ख़्म कि जिस का निशाँ नहीं जाता 
- फ़र्रुख़ जाफ़री

सब आसान हुआ जाता है 
मुश्किल वक़्त तो अब आया है 
- शारिक़ कैफ़ी

गुज़रते वक़्त ने क्या क्या न चारा-साज़ी की 
वगरना ज़ख़्म जो उस ने दिया था कारी था 
- अख़्तर होशियारपुरी

रोके से कहीं हादसा-ए-वक़्त रुका है 
शोलों से बचा शहर तो शबनम से जला है 
- अली अहमद जलीली

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