गया वक़्त फिर हाथ आता नहीं
- मीर हसन
सुब्ह होती है शाम होती है
उम्र यूँही तमाम होती है
- मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
वक़्त की गर्दिशों का ग़म न करो
हौसले मुश्किलों में पलते हैं
- महफूजुर्रहमान आदिल
और क्या चाहती है गर्दिश-ए-अय्याम कि हम
अपना घर भूल गए उन की गली भूल गए
- जौन एलिया
वक़्त अच्छा भी आएगा 'नासिर'
ग़म न कर ज़िंदगी पड़ी है अभी
- नासिर काज़मी
गुज़रने ही न दी वो रात मैं ने
घड़ी पर रख दिया था हाथ मैं ने
- शहज़ाद अहमद
उम्र भर मिलने नहीं देती हैं अब तो रंजिशें
वक़्त हम से रूठ जाने की अदा तक ले गया
- फ़सीह अकमल
वक़्त करता है परवरिश बरसों
हादिसा एक दम नहीं होता
- क़ाबिल अजमेरी
वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता
दर्द कुछ होते हैं ता-उम्र रुलाने वाले
- सदा अम्बालवी
'अख़्तर' गुज़रते लम्हों की आहट पे यूँ न चौंक
इस मातमी जुलूस में इक ज़िंदगी भी है
- अख़्तर होशियारपुरी
कोई ठहरता नहीं यूँ तो वक़्त के आगे
मगर वो ज़ख़्म कि जिस का निशाँ नहीं जाता
- फ़र्रुख़ जाफ़री
सब आसान हुआ जाता है
मुश्किल वक़्त तो अब आया है
- शारिक़ कैफ़ी
गुज़रते वक़्त ने क्या क्या न चारा-साज़ी की
वगरना ज़ख़्म जो उस ने दिया था कारी था
- अख़्तर होशियारपुरी
रोके से कहीं हादसा-ए-वक़्त रुका है
शोलों से बचा शहर तो शबनम से जला है
- अली अहमद जलीली
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