दहलीज पर रख दी है चाहत आगे तुम जानो ||🍁
मैं इन बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूं
मैं इन नजारों का अंधा तमाशबीन नहीं।
~ दुष्यंत कुमार
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं,
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं।
- दुष्यंत कुमार
🍁|| तेरी उंगलियां जो उलझी रही मेरे हाथ में
यकीनन हम सारी उलझनो को सुलझा लेंगे ||🍁
🍁|| यूँ ही रिहा नहीं हो सकेंगे जहन से तुम्हारे हम
बड़ी शिद्दत से तुम्हारे दिल में घर बनाया है ||🍁
🍁|| शहर के शहर बंद हैं, हर गली में नाकाबंदी है
तुम पता नहीं किन रस्तों से चले आते हो ख़्यालों में ||🍁
🍁|| ख्वाहिश ये नही की वो लौट आए मेरे पास
तमन्ना ये है कि उसे जाने का मलाल हो ||🍁
"...प्रेम में पड़ी स्त्री को तुम्हारे साथ सोने से
ज़्यादा अच्छा लगता है तुम्हारे साथ जागना"
~ अमृता प्रीतम
🍁|| मेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हें
मेरे कमरे में टूटे ख्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं ||🍁
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