बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं
- राहत इंदौरी
ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
में जब तक घर न लौटूं मेरी मां सज्दे में रहती है
- मुनव्वर राना
मैं वो पल था जो खा गया सदियां
सब ज़माने गुज़र गए मुझ में
- अम्मार इक़बाल
हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में
- बशीर बद्र
कैसे कह दूं कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की
- परवीन शाकिर
तेरी बातें ही सुनाने आए
दोस्त भी दिल ही दुखाने आए
- अहमद
उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में
इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए
- वसीम बरेलवी
कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूं मैं
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएंगे
- जौन एलिया
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