भीक के उजालों से रौशनी नहीं होती
~ हस्तीमल हस्ती
शायरी है सरमाया ख़ुश-नसीब लोगों का
बाँस की हर इक टहनी बाँसुरी नहीं होती
खेल ज़िंदगी के तुम खेलते रहो यारो
हार जीत कोई भी आख़िरी नहीं होती
हस्तीमल हस्ती
दिल में जो मोहब्बत की रौशनी नहीं होती
इतनी ख़ूबसूरत ये ज़िंदगी नहीं होती
दोस्त पे करम करना और हिसाब भी रखना
कारोबार होता है दोस्ती नहीं होती
ख़ुद चराग़ बन के जल वक़्त के अंधेरे में
भीक के उजालों से रौशनी नहीं होती
हस्तीमल हस्ती
छोड़ो अब उस चराग़ का चर्चा बहुत हुआ
अपना तो सब के हाथों ख़सारा बहुत हुआ
क्या बे-सबब किसी से कहीं ऊबते हैं लोग
बावर करो कि ज़िक्र तुम्हारा बहुत हुआ
मिलने दिया न उस से हमें जिस ख़याल ने
सोचा तो इस ख़याल से सदमा बहुत हुआ
#अहमद_महफ़ूज़
ये कौन मेरी तिश्नगी बढ़ा बढ़ा के चल दिया
कि लौ चिराग़-ए-दर्द की बढ़ा बढ़ा के चल दिया
न दीद की उमीद अब न लुत्फ़-ए-नग़्मा-ए-विसाल
कि लय वो साज़-ए-हिज्र की बढ़ा बढ़ा के चल दिया
वो आया 'अकबर' इस अदा से आज मेरे सामने
कि इक झलक सी ख़्वाब की दिखा दिखा के चल दिया
अकबर हैदराबादी
मुझे सहल हो गईं मंज़िलें वो हवा के रुख भी बदल गए
तेरा हाथ हाथ में आ गया कि चिराग राह में जल गए !!
अज्ञात
शीशे के मुक़द्दर में बदल क्यूँ नहीं होता
इन पत्थरों की आँख में जल क्यूँ नहीं होता
क़ुदरत के उसूलों में बदल क्यूँ नहीं होता
जो आज हुआ है वही कल क्यूँ नहीं होता
हर गाँव में मुम्ताज़ जनम क्यूँ नहीं लेती
हर मोड़ पे इक ताज-महल क्यूँ नहीं होता
हस्तीमल हस्ती
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