Tuesday, January 31, 2023

तेरी गली से दूर कोई सहारा ढूँढ लूँ |

दिल करता है कभी कभी सहारा ढूँढ लूँ

तेरी गली से दूर कोई गुजारा ढूँढ लूँ, 
हो नाम जिस्म का ,बदनामियां हजारों हों, 
पर कोई तुम सा अवारा ढूँढ़ लूँ, 
तेरी गली से दूर कोई गुजारा ढूँढ लूँ 

प्रायश्चित कर लूँ हृदय के बैराग के तडाग में, 
और कुदरत का नया नजारा ढूँढ लूँ, 
तेरी गली से दूर कोई गुजारा ढूँढ़ लूँ, 

बन मुसाफ़िर दूर हो जाऊं तेरी गली से 
पार कर लूँ इस गली को वो इशारा ढूँढ लूँ, 
तेरी गली से दूर कोई सहारा ढूँढ लूँ | 

हकीक़त कहीं मिल ना पाई

हकीक़त के दौर में हकीक़त चाही
हकीक़त तो ठहरी हकीक़त कहीं मिल ना पाई 

जमाना दर ब दर गुजर तो रहा हैं 
मगर जमाने की ठहरीयत कहीं मिल ना पाई 

यु ही बेवजह जुस्तजु में रहे हम सदा 
मगर इंसा में जमीरीयत़ कहीं मिल ना पाई 

जो भी मिला हैं अब सुकुं से भरा हैं 
इस जैसी इंसानियत कहीं मिल ना पाई 

आवाम़ बसाने में काट दिये सब 
अब क्यों कहते हो शुकुनियत कहीं मिल ना पाई 

धर्म - गोपाल दस नीरज की कविता


 

रावण बनना भी कहाँ आसान?


 

कि मेरा कोई रूप न हो

​मैं ऐसे प्रवेश चाहता हूँ तुम में,

कि मेरा कोई रूप न हो.

मैं तुम्हें जरा सा भी न घेरूँ,

और तुम्हें पूरा ढँक लूँ.

Monday, January 30, 2023

नया मंज़र है या नज़र है जुदा।

पाँव के नीचे रहगुज़र है जुदा, 
कारवाँ और हमसफ़र है जुदा। 

पाँव ले जा रहे सू-ए-मंज़िल, 
ख़याल में मगर सफ़र है जुदा। 

हमारे सामने दरपेश है जो, 
नया मंज़र है या नज़र है जुदा। 

ठोकरों का नहीं डर रहता है, 
रेंग कर चलने का हुनर है जुदा। 

पाँव को दे रहे रफ़्तार नई, 
आबलों का दिखा असर है जुदा। 

कोई रुकता नहीं किसी के लिए, 
मिज़ाज़ है जुदा जिगर है जुदा। 

गिला किसी को नहीं है 'गौतम', 
ये नया दौर है बशर है जुदा। 




चुनी है मैने एक हसीं राह

अनजाने राह पर चलते कब यूं ही मुड़ गए पीछे, 
न दिल को करार मिला, 
न जमीन को आसमां। 
पर फिर भी क्यों ऐसा लगता है, 
चुनी है मैने एक हसीं राह।



ज़िन्दगी अब क़रीब आ रही है |

नींद मुझको नहीं आ रही है
रात कैसी सितम ढा रही है | 

दर्द में छोड़ो पन्द ओ नसीहत 
बात कोई नहीं भा रही है | 

ज़ुल्फ़ से रुख़ छुपा जा रहा है 
जैसे काली घटा छा रही है | 

क्या निज़ाम ए चमन अब है बदला 
ख़ुशबू बाद ए ख़िजां ला रही है | 

फ़ायदे के लिए क़ायदे की 
बात दिल से निकल जा रही है | 

बेवफ़ाई से साकित हुआ हूं 
नब्ज़ ए ग़म सिर्फ़ चल पा रही है | 

"ख़ुशियों से मर ही न जाना 
ज़िन्दगी अब क़रीब आ रही है | 

कविता बन कागज पर उतार दिया।

न जाने जैसे हाथों से कुछ छूट गया,

एक सपना लगता है जैसे टूट गया। 
पतझड़ ही अब तक जीवन में आया, 
उम्मीद नव पल्लव की पर बहार मुझसे रूठ गया। 
दुख आंखों में समा गया, 
आंसू बन आंखों से छलक गया। 
हूं बहुत उदास,दिल का दर्द 
कविता बन कागज पर उतार दिया। 

तेरा मिलना ऐसे होता है

नीले आसमान के कोने में
रात-मिल का साइरन बोलता है
चाँद की चिमनी में से
सफ़ेद गाढ़ा धुआँ उठता है

सपने — जैसे कई भट्टियाँ हैं
हर भट्टी में आग झोंकता हुआ
मेरा इश्क़ मज़दूरी करता है

तेरा मिलना ऐसे होता है
जैसे कोई हथेली पर
एक वक़्त की रोजी रख दे।

जो ख़ाली हँडिया भरता है
राँध-पकाकर अन्न परसकर
वही हाँडी उल्टा रखता है

बची आँच पर हाथ सेंकता है
घड़ी पहर को सुस्ता लेता है
और खुदा का शुक्र मनाता है।

रात-मिल का साइरन बोलता है
चाँद की चिमनी में से
धुआँ इस उम्मीद पर निकलता है

जो कमाना है वही खाना है
न कोई टुकड़ा कल का बचा है
न कोई टुकड़ा कल के लिए है...
अमृता प्रीतम

Saturday, January 28, 2023

जो दिल के नज़दीक होता है

जो दिल के नज़दीक होता है, वो ही खफा होता है। ग़ैर से कब गिला होता है, गैर कब खफा होता है।। 

बड़ी अज़ब शै है ये प्यार,प्यार का फ़लसफ़ा यारो। 
प्यार दर्द-ए-दिल होता है,प्यार दर्द-ए-दवा होता है।। 

ज़िंदगी कुछ भी नहीं,दास्तां है मिलने-बिछुड़ने की। 
जो मिलता है ज़िंदगी में, वो शर्तिया जुदा होता है।। 

जिसने भी किया दावा,दिल के हाथों मजबूर हुआ। 
क्या भरोसा दिल का कब, किस पर फ़िदा होता है।। 

इंसान कोशिश करता है,दिल की दिल में रखने की। 
नहीं जानता राज़- ए- दिल,निग़ाहों से अदा होता है।। 

Friday, January 27, 2023

पाँव अंधेरे में हरगिज़ हम बढ़ाये न होते

पाँव अंधेरे में हरगिज़ हम बढ़ाये न होते 
आप शौक-ए-चराग़ा ग़र जलाये न होते 

आंख जम जाती शब-ए - शीत पाकर 
चाॅंद का गर्द बढ़कर हटाये न होते 

ग़मे-नज़दीकियां आग़ोश लेने लगी थी 
बस थोड़ी देर और मुस्कुराये न होते 

या खुदा हम भी कुछ और आज रहते 
हुबहू सूरत - ए - हाल सुनाये न होते 

कई बस्तियों में लोग ग़मगीन हो जाते 
जो वादे पे चल तुम शहर आये न होते॥ 

Monday, January 23, 2023

जीवन में हमेशा तेरी कमी है


कल का लिखूं आज मैं 
ये तम्मना मुद्दतों से है 
तेरे ना होने से मेरी ज़िन्दगी में 
बस इतनी कमी सी हे 
मैं चाहे लाख मुस्कुरालूं 
इन आखों में आज भी नमी सी है 
जो पानी आँख से छलक जाता है 
उस पानी को क्या कहा जाएगा 
जो हम तुम से ना कह सके 
उसको मन से चाहा प्यार कहा जाएगा 
वक़्त की हकीक़त को समझना था 
वो हमने समझने लिया 
जो लिखना था कल 
वो हमने आज लिख लिया 
तुझ जैसा मिलेगा कोई 
ये हमने कैसे सोच लिया 
गुमनाम है तू 
आज भी बेवजह बदनाम मैं हूँ 
काफी सालों से तेरे लिए तन्हां हूँ परेशान हूँ 
काबिल हूँ तेरे ये बताने के लिए सबूत ढूंढ रहा हूँ 
तेरे सामने आकर भी अपना वजूद ढूंढ रहा हूँ 
होठों पर मुस्कान तो है 
पर पूरी हसीं तो नही है 
मैं चाहे लाख मुस्कुरालूं 
जीवन में हमेशा तेरी कमी है 
कल का लिखूं आज मैं 
ये तम्मना मुद्दतों से है |

तुम्हें मालूम है मेरा हाल ए दिल

तुम्हें मालूम है मेरा हाल ए दिल 

फिर भी पूछती हो हाल कैसा है ।। 


उठा है हल्का सा दर्द सीने मैं । 
मुझे खुद पता नहीं मेरा हाल कैसा है ।। 

एक चाह निकलती है दिल की गहराइयों से 
जान लू तेरा मेरे लिए मिजाज कैसा है । 

न हो खास प्यार, मोहब्बत, इश्क, मुझ से । 
मुझे मालूम है तेरा स्वभाव कैसा है।।

Saturday, January 21, 2023

अमीर मीनाई के चुनिंदा शेर

कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं

नाख़ुदा जिन का नहीं उन का ख़ुदा होता  है


छुप के भी आए मिरे घर तो वो दरबानों को

अपनी पाज़ेब की झंकार सुनाते आए 


इतने पत्ते भी न होंगे गुलशन-ए-फ़िरदौस में
जिस क़दर फूलों के हैं अम्बार क़ैसर-बाग़ में 

निकल के चेहरे पे मैदान साफ़ ख़त ने किया
कभी ये शहर था ऐसा कि बंद राहें थीं


कहाँ ग़ुंचा कहाँ उस का दहन तंग
बढ़ाई शायरों ने बात थोड़ी 

कल तो आफ़त थी दिल की बेताबी
आज भी बे-क़रार सा है कुछ 


वो दुश्मनी करें तो करें इख़्तियार है
हम तो अदू के दोस्त हैं दुश्मन के यार हैं 

पहलू में मेरे दिल को न ऐ दर्द कर तलाश
मुद्दत हुई ग़रीब वतन से निकल गया 


उस दिल पे हज़ार जान सदक़े
जिस दिल में है आरज़ू तुम्हारी 

वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर
दिन गिने जाते थे इस दिन के लिए


कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद
याद आएगी बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद 

नज़दीकियों में दूर का मंज़र तलाश कर

नज़दीकियों में दूर का मंज़र तलाश कर 

जो हाथ में नहीं है वो पत्थर तलाश कर 

सूरज के इर्द-गिर्द भटकने से फ़ाएदा 
दरिया हुआ है गुम तो समुंदर तलाश कर 

तारीख़ में महल भी है हाकिम भी तख़्त भी 
गुमनाम जो हुए हैं वो लश्कर तलाश कर 
रहता नहीं है कुछ भी यहाँ एक सा सदा 
दरवाज़ा घर का खोल के फिर घर तलाश कर 

कोशिश भी कर उमीद भी रख रास्ता भी चुन 
फिर इस के बा'द थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर 

निदा फ़ाज़ली

Friday, January 20, 2023

इश्क़ के उपवन में

इश्क़ के उपवन में, 

लगा लिया सीने से उसे. 

चाहत लिए रूबरू की, 
फिरता रहा उपवन में. 
ख्वाबों की तल्ख़ियां लिए, 
रूबरू के उल्फत में, 
सहता रहा सर्द मौसम को. 
इश्क़ के सफ़र में, 
नयनों में अश्क लिए, 
इश्क़ के उपवन में, 
गाता रहा इश्क़ के नगमे.

मुश्किल है अलग कर पाना

दर्द को दिल से
प्यास को जल से 
व्याधि को तन से 
वहम को मन से 
बहुत मुश्किल है 
निकाल पाना 

बुद्धि को विकास से 
ज्ञान को प्रकाश से 
जीवन को आस से 
श्रद्धा को विश्वास से 
बहुत मुश्किल है 
अलग कर पाना । 

ये जो ज़िंदगी की किताब है

ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है 
कहीं इक हसीन सा ख़्वाब है कहीं जान-लेवा अज़ाब है 

कहीं छाँव है कहीं धूप है कहीं और ही कोई रूप है 
कई चेहरे इस में छुपे हुए इक अजीब सी ये नक़ाब है 

कहीं खो दिया कहीं पा लिया कहीं रो लिया कहीं गा लिया 
कहीं छीन लेती है हर ख़ुशी कहीं मेहरबाँ बे-हिसाब है 

कहीं आँसुओं की है दास्ताँ कहीं मुस्कुराहटों का बयाँ 
कहीं बरकतों की हैं बारिशें कहीं तिश्नगी बे-हिसाब है
-राजेश रेड्डी

नजरें चार होने से मोहब्बत कहाँ होती

नजरें चार होने से, मोहब्बत कहाँ होती।

मन से मन मिल जाये, गुफ्तगू वहाँ होती। 
तमन्नाएं सभी की, प्यार की लालसा भी। 
किसी-किसी के नसीब में, राते जवाँ होती। 
तुम्हारे चाहने भर से, रिश्ते मुकम्मल नही। 
एक दूजे की इच्छा भरे, तसल्ली वहाँ होती। 
निगाहें मिलने से, यदि धडकनें बढ जाएं। 
साथ रहने की तमन्ना वहाँ होती।

Wednesday, January 18, 2023

तुम तान बनो मैं गीत बनूं

तुम तान बनो मैं गीत बनूं, सुर संगम से संगीत बनू,

संघर्षों में मैं जीत बनूं , प्रियतम तेरा मनमीत बनूं। 
इन आंखों की अभिलाषा में , उत्कंठों की परिभाषा में , 
जीवन की वृहद निराशा में , निजवाणी की मृदुभाषा में, 
तुम सुरमय गुंजित ताल बनो, गिरि सम गौरव भाल बनो, 
लघुता में क्षुद्र प्रपंचों की, तुम मेरा हृदय विशाल बनो।

मिलते हैं जब दिल दीवाने

मिलते हैं जब दिल दीवाने,बन जाते कितने अफसाने, 
मिलते हैं जब दिल दीवाने बन जाते कितने अफसाने, 
होती हैं फिर कसमें वफ़ा की, दुनिया से रहते बेगाने। 
मिलते हैं जब दिल दीवाने ----- 

हाल बताऊं कैसे इनका, खोए खोऐ से रहते हैं, 
बातें जो दिल में होती हैं,ये न किसी से भी कहते हैं। 
छुप छुप कर मिलते हैं देखो, ये चाहत के परवाने, 
मिलते हैं जब दिल दीवाने,बन जाते कितने अफसाने। 
मिलते हैं जब दिल दीवाने ----- 

ये आशिक दिलवाले ऐसे , ख़्वाबों में फिरते रहते हैं, 
चाहत की राहों पर चलकर, फिर दर्द वफ़ा में सहते हैं, 
मंजिल की ख़बर नहीं इनको, राहों से भी होते अंजाने, 
मिलते हैं जब दिल दीवाने ----- 

आंखों में सपने हैं कितने, दिल में भी अरमान कई, 
किस्मत के मारे हैं इनको,मिलता ही नहीं आराम कहीं, 
एक प्यार भरा दिल साथ रहे, फिर दुनिया को ये क्या जाने, 
मिलते हैं जब दिल दीवाने ----- 

नशा मोहब्बत का जब होता ,फिर ना कोई नशा होता है, 
अपने हमदम पर मिट जाना, ही इनका मकसद होता है, 
ज़िद में सब खो देते देखो, ये पागल ये दीवाने, 
मिलते हैं जब दिल दीवाने,बन जाते कितने अफसाने। 
होती हैं फिर कसमें वफ़ा की, दुनिया से रहते बेगाने। 
मिलते हैं जब दिल दीवाने ---- 

Tuesday, January 17, 2023

रुस्वा होने का का डर था

रुस्वा होने का का डर था , हमको इस जमाने में।


इसीलिए नाम कोई लिखा नही, किसी फसाने मे।। 

और गहरे हो गये हैं, ये खामोश अंधेरों के सन्नाटे। 
मगर हम मसरूफ हैं घर के चिरागों को मनाने मे।। 

ख्वाबों मे तेरी आमद के मुंतजिर हैं,मुद्दत से हम। 
नींद मुसलसल फर्ज निभाती है हमको जगाने में।। 

दरवाजे बंद हैं तो क्या,दरीचों को खुला छोड़ा है। 
बाइस-ए-ताखीर फिर क्या हुई, बता तेरे आने मे।। 

तुझसे मेरे गिले-शिकवे बेजा नहीं हैं, मेरे हमदम। 
मगर ये लब कांपते हैं, सर-ए-महफिल बताने मे।। 

उन के लिए दुआ निकली

ज़ीस्त हो के दुनिया
जिसे चाहा बेवफ़ा निकली, 
दिल से हमारे फिरभी 
उन के लिए दुआ निकली ! 

मेरा गुरूर मेरी ख्वाहिशों पर भारी है

अगर झुक गया होता तो आसमां मेरा होता
मेरा गुरूर मेरी ख्वाहिशों पर भारी है । 

अपने गीतों और गजलों से मन बहला लेता हूं 
जमाने की ठोकरों ने मुझें बेहिसाब लफ्ज दिये । 

 लाजमी कहॉ सारा जहाँ खुशमिजाज हो 
कुछ ख्वाहिशों का मर जाना बेहतर होता है । 

 मैं टूट कर बिखर जाऊं ऐ मेरी मंजिल 
जरा आके संभाल ले कहीं दर बदर ना हो जाऊं ।

अश्क अपने वादों से मुकरने लगा

दफ़्फतन ये दर्द, फिर से क्यूं उभरने लगा?

तेरी गलियों से, मै जब आज गुजरने लगा।। 

ना बहने का वादा,जिसने किया था कभी। 
वो ही अश्क, अपने वादों से मुकरने लगा।। 

अहसास की शिद्दत बढ़ा देता है ये सावन। 
मेरे घर के ऊपर , क्यूं हर अब्र घिरने लगा?

आओ चाँद पहलू में बैठो जरा

आओ चाँद पहलू में बैठो जरा


खुले गेसुओ में न उलझो जरा 

ज़माने से बचना भी मुश्किल हुआ 
हया आ रही बात समझो ज़रा 
सिवा तेरे हम अब कहाँ जाएंगे 
धड़कन में बसते हो समझो ज़रा 

आओ चांद पहलू में बैठो ज़रा 
खुले गेसुओं में न उलझो ज़रा 

निज़ाम पूछे तो क्या बताएंगे हम 
दिल पे काबू रखना समझो ज़रा 
जिस तरेह बेधड़क तुम चले आते हो 
इसमें रुसवाई है मेरी समझो ज़रा 

आओ चांद पहलू में बैठो ज़रा 
खुले गेसुओं में न उलझो ज़रा 

तुम लहरों की चिलमन में बैठे हुए 
समन्दर की धड़कन सुन लो ज़रा 
ये मौसम घटाएँ ये रुत की बलाएँ 
मुझे छेड़ती हाथ पकड़ो ज़रा 

आओ चांद पहलू में बैठो ज़रा 
खुले गेसुओं में न उलझो ज़रा 

जवां हैं सितारे शिक़ायत करेंगे 
अलविदा सुबहा होने को समझो ज़रा 
पिघलते क़दम के निशां छोड़ दो 
रहनुमा मेरी उल्फ़त समझो ज़रा 

नेमतों से मिली हो।

कभी ख्वाब सी

कभी हकीकत सी 
कभी सज़ा सी 
कभी सौगात सी 
तुम जिंदगी हो 
जीने को मिली हो 

कभी दर्द सी 
कभी निजात सी 
कभी चार पल की 
कभी पहाड़ सी 
तुम ही जिंदगी हो 
नेमतों से मिली हो। 

Sunday, January 15, 2023

अपने दिल में हमें पनाह दे दो

अपने दिल में हमें पनाह दे दो

दिल में रहने की तुम सजा दे दो 

करार दिल को कहीं आता नहीं 
रोज मिलने की एक बजा दे दो 

तुम्हारी हर अदा पर मरते हैं 
अपनी छोटी सी इक अदा दे दो 

तुम्हारे साथ जिंदगी गुजरे 
साथ जीने की कोई कला दे दो 

धड़कनें भी तुम्हें बुलाती है 
मेरे दिल को भी कोई सलाह दे दो 

कश्ती अपनी भी पार हो जाए 
ऐसा सागर को कोई मलाह दे दो 

मानो मुझे नई मंजिल मिल गई

उसे देखा तो ऐसा लगा

मानो मुझे नई मंजिल मिल गई 
नजर जब नजर से मिली तो 
दिल पर कोई छोरी सी चल गई 
उस की गलियों में रोज आना जाना होने लगा 
उसे देख कर मैं सब कुछ भूल कर मैं उसमें खोने लगा 
मानो एक उम्मीद जगी थी 
मुझे वह अपनी दुनिया लगी थी 
सोचा उसे की दिल की बात बता दूं 
पर कैसे कहूं समझ नहीं आ रहा था 
कहीं वह मुझसे रूठ ना जाए यह डर सता रहा था 
पर दिल ने कहा कि तू जरा सी हिम्मत कर 
उसको अपनी बात बताने की जुर्रत कर

ये उदासी मेरे मन से जाती क्यों नहीं

ये उदासी मेरे मन से जाती क्यों नहीं 
किरन कोई उम्मीद की नज़र आती क्यों नहीं 

अभी तो पार करने हैं कितने ही दरिया 
ये नौका मेरी रफ्तार पाती क्यों नहीं 

निकले थे अनजाने सफर पे घर से हम 
ये राहें भी मुझे मंजिल पे लाती क्यों नहीं 

जाने कब छटेंगे ये दुखों के बादल भी 
बरसात मेरे घर खुशी की आती क्यों नहीं 

मकां में दीये ही दीये हैं चारों ओर 
हो रोशन घर मगर तेल बाती क्यों नहीं 

जाना चाहता हूं तेरे करीब जिंदगी मैं 
मगर तू भी अपना पता बताती क्यों नहीं 

मैं तो तेरा अपना हूं कोई गैर तो नहीं 
ऐ जिंदगी तू भी करीब आती क्यों नहीं 

मेरी आँखों में ठहरा है सैलाब-ए-अश्क 
लगाकर गले जिंदगी तू रुलाती क्यों नहीं 

कहीं गम में ही डूबकर ना मर जाऊं मैं 
अरे जिंदगी तू थोड़ा हंसाती क्यों नहीं 

सवाल ही सवाल हैं सूखे लब पे मेरे 
पर जवाब एक भी जिंदगी बताती क्यों नहीं 

गम ही गम हैं इस फानी दुनिया में सागर 
ये जिंदगी भी खुशी के गीत गाती क्यों नहीं 

जिस्म की बेचैनियों को मोहब्बत का नाम न दो

जिस्म की बेचैनियों को मोहब्बत का नाम न दो दो पल के इस सुकून को तुम राहत का नाम न दो | 

अपने प्यार को गर खुदा बना न पाओ तुम तो 
अपने इश्क़ को फिर तुम इबादत का नाम न दो |  

रुह तक गर जा न पाओ तुम किसी के प्यार में तो 
जिस्म छूकर अपने प्यार को इज्जत का नाम न दो | 

मां की कदमों के सिवा इस दुनिया में कभी भी 
किसी को बाहों में भर लो तो जन्नत का नाम न दो | 

लगाकर हजार पाबंदियां हम औरतों पर तुम 
इसको सरपरस्ती और हिफाजत का नाम न दो  |

यार भरोसा बस मुश्किल से होता है|

तुम कसमें-वसमें तो खा लोगे लेकिन, 
यार भरोसा बस मुश्किल से होता है| 

प्यार, मुहब्बत, धोखा जो भी होता है 
ये सब क्या है, देखी-देखा होता है| 

हम तो अपनी ही मर्ज़ी के मालिक हैं, 
अपना जो होता है दिल से होता है| 

कच्ची-पक्की सड़कों वाली बात नहीं, 
मतलब घर वाले रस्ते से होता है| 

गज़लें-वज़लें मेरे बस की बात नहीं, 
दिल को कह देने से मतलब होता है| 

एक लम्हे की ज़िन्दगी

एक लम्हे की ज़िन्दगी
बस साथ तेरे गुज़ार दूँ , 
ज़हन में मेरे बस गई , 
वो उस लम्हे की सादगी | 

वो ज़िंदगी का एक लम्हा , 
और एक दूजे में बस गए , 
फिर यादों में भी साथ हों , 
अब ना तू तन्हा, ना मैं तन्हा |

आप हमारे साथ नहीं चलिए कोई बात नहीं

आप हमारे साथ नहीं 
चलिए कोई बात नहीं 

आप किसी के हो जाएँ 
आप के बस की बात नहीं 

अब हम को आवाज़ न दो 
अब ऐसे हालात नहीं 

इस दुनिया के नक़्शे में 
शहर तो हैं देहात नहीं 

सब है गवारा हम को मगर 
तौहीन-ए-जज़्बात नहीं 
हम को मिटाना मुश्किल है 
सदियाँ हैं लम्हात नहीं 

ज़ालिम से डरने वाले 
क्या तेरे दो हाथ नहीं 

इक रोज हमारी आहों का असर देखोगे।

इक रोज हमारी आहों का असर देखोगे।


यकीं है हमारी वफ़ाओं का असर देखोगे।। 

रंग-ए-फ़िजा में बिखरी है तुम्हारी खुशबू। 
इक रोज़ मुहब्बत के रंगों का असर देखोगे।। 

प्यार सच्चा है अगर वक़्त भी रुक जाएगा। 
इक रोज हमारी सदाओं का असर देखोगे।। 

धड़केगा तुम्हारा दिल भी इक रोज हमारे लिए। 
इक रोज हमारी दुआओं का असर देखोगे।। 

घटाएं छाएंगी तुम बाहों में आ जाओगी। 
उस रोज शोख फिजाओं का असर देखोगे।। 

रुठे से उनके मिज़ाज़ है

रुठे से उनके मिज़ाज़ है
चमक रहा है चाँद अपनी चांदनी संग, 
किन्तु तुम्हारे रूठने से यूँ लग रहा हो जैसे, 
कितनी लम्बी घनघोर अमावस की रात है.



Wednesday, January 11, 2023

बे-ख़ुदी में क्या कोई जाँ-निसार करता है

ज़ख्म काँटो के सहे जाते हैं फूलों के लिए,


बे-ख़ुदी में क्या कोई जाँ-निसार करता है। 

अदावत से आगे चल के दिखाओ

अदावत से आगे निकल कर दिखाओ

मुहब्बत के रस्ते पे चल कर दिखाओ 

अजी सोच दुनिया बदल देगी अपनी 
मगर ख़ुद को पहले बदल कर दिखाओ 

फ़रिश्तो है जन्नत में नेकी ही नेकी 
ज़मीं पर भी आओ संभल कर दिखाओ 

अबस जल रहे हो तरक़्क़ी से मेरी 
चराग़ों के मानिंद जल कर दिखाओ 

ज़बां पर जहां की तुम्हीं तुम रहोगे 
ये गुफ़्तार अपनी ग़ज़ल कर दिखाओ 

मेरी आवाज़ पलटकर आई

मेरी आवाज़ पलटकर आई,


वादियों से वो ग़म-ज़दा आई। 

अगरचे माज़ी को भुलाया है, 
याद कोई यदा-कदा आई। 

बिना दस्तक दिए दरवाज़े पर, 
एक खुशबू है बे-सदा आई। 

हमको पहचान लिया ग़ैरों में, 
बा-ख़ुदा आन-ओ-अदा आई। 

कहाँ अता किया पता ही नहीं, 
जबीं ये आज कर सजदा आई। 

शहर में शोर बहुत होता है, 
लगता रहता है आपदा आई। 

रिश्ते धागे की तरह होते हैं, 
तोड़कर जोड़ा तो उक़्दा आई। 

जुदा थे ख़्वाब तुम्हारे 'गौतम', 
इनकी ताबीर भी जुदा आई। 

Tuesday, January 10, 2023

कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी

कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी 

दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी 


बात वो आधी रात की रात वो पूरे चाँद की 
चाँद भी ऐन चैत का उस पे तिरा जमाल भी 

सब से नज़र बचा के वो मुझ को कुछ ऐसे देखता 
एक दफ़ा तो रुक गई गर्दिश-ए-माह-ओ-साल भी 

दिल तो चमक सकेगा क्या फिर भी तराश के देख लें 
शीशा-गिरान-ए-शहर के हाथ का ये कमाल भी 

उस को न पा सके थे जब दिल का अजीब हाल था 
अब जो पलट के देखिए बात थी कुछ मुहाल भी 

मेरी तलब था एक शख़्स वो जो नहीं मिला तो फिर 
हाथ दुआ से यूँ गिरा भूल गया सवाल भी 

उस की सुख़न-तराज़ियाँ मेरे लिए भी ढाल थीं 
उस की हँसी में छुप गया अपने ग़मों का हाल भी 

गाह क़रीब-ए-शाह-रग गाह बईद-ए-वहम-ओ-ख़्वाब 
उस की रफ़ाक़तों में रात हिज्र भी था विसाल भी 

उस के ही बाज़ुओं में और उस को ही सोचते रहे 
जिस्म की ख़्वाहिशों पे थे रूह के और जाल भी 

शाम की ना-समझ हवा पूछ रही है इक पता 
मौज-ए-हवा-ए-कू-ए-यार कुछ तो मिरा ख़याल भी

परवीन शाकिर

मैनें पूरे हक से आपना माना तुझे

मैनें पूरे हक से आपना माना तुझे
क्या था मेरे दिल सब पता था तुझे 
फिर क्यों नहीं आपना माना मुझे 
मैं बहता चला गया तेरे प्यार में इस कदर 
बह जाए पानी में लाश जिस कदर 
मेरी चाहतों का खिलवाड़ तूने किया 
मेरे प्यार की लाश के टुकड़े बिखर गये इधर उधर 
यह तेरी चाहत ही थी जो जिंदा था मैं 
अब जिंदा होकर भी मर सा गया हूँ मैं 
इस तरह से जग हँसाई की तूने मेरी 
सब पागल पागल कहते हैं अब जाऊं मैं जिधर 
मैनें पूरे हक से आपना माना तुझे 
क्या था मेरे दिल सब पता था तुझे | 

वक्त चाहे कैसा भी हो हंसते हंसाते रहा करो

वक्त चाहे कैसा भी हो हंसते हंसाते रहा कर 
है जिंदगी छोटी बहुत मिलते मिलाते रहा करो। 

कौन जाने किसको कब मंजिलें पुकार बैठें, 
इसलिए बातें दिलों की सुनते सुनाते रहा करो। 

दोस्ती और दुश्मनी तो हमने बनाई है यहां, 
भूल कर सब रंजिशें गले लगते लगाते रहा करो। 

कौन हमसे क्यों मिला मालूम हमको है कहां, 
वक्त पे सबकी मदद करते कराते रहा करो। 

जो बुरा करता है उसका हश्र होता है बुरा, 
इसलिए खौफ़-ए-खुदा से डरते डराते रहा करो।