Wednesday, October 30, 2019

गुजर जाते है खूबसूरत लम्हें

गुजर जाते है खूबसूरत लम्हें
यूँ ही मुसाफ़िरों की तरह..!! 
यादें वहीं रह जाती हैं
रुके हुए रास्तों की तरह..!! ❤❤

इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा?


तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा भी नहीं,
मैं गिरा तो मसअला बनकर खड़ा हो जाऊँगा।

मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र,
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा।

सारी दुनिया की नज़र में है मेरी अह्द-ए-वफ़ा,
इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा?

~ वसीम बलेरवी

कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं

जुदाइयाँ तो मुक़द्दर हैं फिर भी जान-ए-सफ़र 
कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं! 

हर अदा अच्छी ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं

आप ने तस्वीर भेजी मैं ने देखी ग़ौर से 
हर अदा अच्छी ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं! 

फिर से इक बार उसे ख़ुद पे सितम ढाने दूँ

फिर से इक बार उसे ख़ुद पे सितम ढाने दूँ, 
या'नी वह लौट के आए तो उसे आने दूँ! 

कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं

जुदाइयाँ तो मुक़द्दर हैं फिर भी जान-ए-सफ़र 
कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं! 

इंसान का बेहतरीन होना गुनाह है

"ख्वाबों का रंगीन होना गुनाह है ..
इंसान का जहीन होना गुनाह है ..
कायरता समझते है लोग मधुरता को ..
जुबान का शालीन होना गुनाह है ..
लोग इस्तेमाल करते है नमक की तरह ..
आंसुओ का नमकीन होना गुनाह है ..
दुश्मनी हो जाती है मुफ्त में सैकड़ो से ..
इंसान का बेहतरीन होना गुनाह है ..!"

अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला 
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला 

~बशीर बद्र 

इक चाँद बग़ल में हो इक चाँद मुक़ाबिल हो!

लुत्फ़-ए-शब-ए-मह ऐ दिल उस दम मुझे हासिल हो, 
इक चाँद बग़ल में हो इक चाँद मुक़ाबिल हो! 

ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक

हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन, 
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक! 

Tuesday, October 29, 2019

निगाहें इस क़दर क़ातिल कि उफ़

निगाहें इस क़दर क़ातिल कि उफ़ उफ़ 
अदाएँ इस क़दर प्यारी कि तौबा! 

वो शख्स

'
तारीफ ना पुछना मुझसे उसकी ❤️;
वो शख्स मेरी अल्फाजों के दायरें में सिमटता नहीं है...!!

मेरे जीवन का हर किस्सा, कहानी हो गया...

जितना भी आँसू बहा, सब पानी हो गया,
मेरे जीवन का हर किस्सा, कहानी हो गया! 

मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया

हम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका 

मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया 

दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है और

दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है, 
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता! 

तेरे बेहिसाब ख्यालों ने बेताहासा लफ्ज दिए

अलफ़ाज़ चुराने की हमें जरुरत ही ना पड़ी कभी,
तेरे बेहिसाब ख्यालों ने बेताहासा लफ्ज दिए! 

तू ख़ुदा है न मिरा इश्क फरिश्तों जैसा

तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा, 
दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें! 

कोई पलकों में उजाले नहीं भरने आया!

"आँख की छत पे टहलते रहे काले साए
कोई पलकों में उजाले नहीं भरने आया! 
कितनी दीवाली गयीं, कितने दशहरे बीते
इन मुंडेरों पे कोई दीप न धरने आया! 

तुझ से मिलने की आरज़ू है वही

तुझ से सौ बार मिल चुके लेकिन, 
तुझ से मिलने की आरज़ू है वही! 

कोई पलकों में उजाले नहीं भरने आया!

"आँख की छत पे टहलते रहे काले साए
कोई पलकों में उजाले नहीं भरने आया! 
कितनी दीवाली गयीं, कितने दशहरे बीते
इन मुंडेरों पे कोई दीप न धरने आया! 

मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था

मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था 

वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था 

मैं उस को देखने को तरसती ही रह गई 

जिस शख़्स की हथेली पे मेरा नसीब था 

बस्ती के सारे लोग ही आतिश-परस्त थे 

घर जल रहा था और समुंदर क़रीब था 

मरियम कहाँ तलाश करे अपने ख़ून को 

हर शख़्स के गले में निशान-ए-सलीब था 

दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र में 

मैं जिस को चाहती थी वो लड़का ग़रीब था 

मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था
~अंजुम रहबर

मांगी हुई निज़ात मेरे काम की नहीं

सज़दे करूं, सवाल करूं, इल्तिज़ा करूं,
यूं दे, तो कायनात मिरे काम की नहीं ।
वो ख़ुद अता करे, तो जहन्नुम भी है बहिश्त,
मांगी हुई निज़ात, मिरे काम की नहीं ।।

अदना सा फ़साना

इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है 
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है 

जिगर मुरादाबादी

कमी खलती रही

तुझे भूल न सका
कमी खलती रही
पर न जाने कैसे 
जिंदगी चलती रही! 

कमबख्त तेरी यादें

बंद कर दिये है हमने तो दरवाजे इश्क के, 
पर कमबख्त तेरी यादें तो दरारों से ही चली आई! 

जैसे कोई गुनाह किये जा रहा हूँ मैं!

यूँ ज़िन्दगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बगैर 
जैसे कोई गुनाह किये जा रहा हूँ मैं!

~ जिगर मुरादाबादी

कई लोग दिल से उतर जायेंगे।

ये जो हालात हैं एक रोज़ सुधर जायेंगे,
पर कई लोग मेरे दिल से उतर जायेंगे।

हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है!

क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है, 
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है! 

~जिगर मुरादाबादी 

Monday, October 28, 2019

आओ अंधेरा मिटाने का हुनर सीखें हम

आओ अंधेरा मिटाने का ...हुनर सीखें हम
कि चलती आँधियों में भी 
“लौ” सा जलते रहने का..
..हुनर सीखें हम
रोशनी और बढ़े, हर ओर उजाला फैले
दीये से दीया जलाने का..
..हुनर सीखें हम 😊

Saturday, October 26, 2019

बंद हथेलियों में... तक़दीर ढूंढते हैं लोग!

लकीरें इधर भी खींच दी, लकीरें उधर भी खींच दी...
अब बंद हथेलियों में... तक़दीर ढूंढते हैं लोग! 

नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं,

नए  दौर के नए  ख़्वाब हैं नए  मौसमों के गुलाब हैं, 
ये मोहब्बतों के चराग़ हैं इन्हें नफ़रतों की हवा न दे! 
- बशीर बद्र

ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था

तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था 
उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था! 

मुझ को देख कर तन्हा

उसी मक़ाम पे कल मुझ को देख कर तन्हा, 
बहुत उदास हुए फूल बेचने वाले! 

है अजीब शहर की जिंदगी

है अजीब शहर की जिंदगी 
ना सफ़र रहा ना कयाम है
कहीं करोबार सी दोपहर 
कहीं बदमिजाज़ सी शाम है! 

Friday, October 25, 2019

मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में!

घर लौट के रोएँगे माँ बाप अकेले में
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में! 

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
~अहमद फ़राज़

Wednesday, October 23, 2019

हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है

क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है 
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है 

~जिगर मुरादाबादी #Ishq #Husn #Shayari

तन्हाई को जगह जगह बिखराया हम ने

घर से निकले चौक गए फिर पार्क में बैठे
तन्हाई को जगह जगह बिखराया हम ने

~शारिक़ कैफ़ी

Tuesday, October 22, 2019

कैसे सीखा डँसना-विष कहाँ पाया?

साँप! तुम सभ्य तो हुए नहीं-
नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया।
एक बात पूछूँ- (उत्तर दोगे?)
तब कैसे सीखा डँसना-विष कहाँ पाया?

~ अज्ञेय

तेरा मिलना ऐसे होता है

नीले आसमान के कोने में
रात-मिल का साइरन बोलता है
चाँद की चिमनी में से
सफ़ेद गाढ़ा धुआँ उठता है

सपने — जैसे कई भट्टियाँ हैं
हर भट्टी में आग झोंकता हुआ
मेरा इश्क़ मज़दूरी करता है

तेरा मिलना ऐसे होता है
जैसे कोई हथेली पर
एक वक़्त की रोजी रख दे।

~ अमृता प्रीतम

Monday, October 21, 2019

सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल

सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ 
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ 
~ख़्वाजा मीर दर्द

Sunday, October 20, 2019

हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे

हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे 

तुम्हें है शर्म तो आँखों पे हाथ धर लेना.

- दाग़ 

तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता

तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता 
वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता

- दाग़ 

बड़ी मुश्किल से मिलता है! l

मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है, 
मेरी जाँ, चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है! 

~दाग़ 

Friday, October 18, 2019

इक दर्द तुम्हारा और सही.

बड़े जख्म दिए है दुनिया ने
इक जख्म-ए-तमन्ना और सही... 

सौ दर्द छुपे हैं इस दिल में 
इक दर्द तुम्हारा और सही... 💔

तेरी मोहब्बत में

हमे क्या  जरूरत
         खुशबू लगाने की, 
तेरी  मोहब्बत में
          महक कर  गुलाब हुए  है! 

तेरी ख्वाहिश कर ली तो कौन सा गुनाह किया

तेरी ख्वाहिश कर ली तो कौन सा गुनाह किया, 
लोग तो इबादत में पूरी कायनात मांग लेते है.!

तुम को देखें कि तुम से बात करें

तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो 
तुम को देखें कि तुम से बात करें 

~फ़िराक़ गोरखपुरी

इक चाँद फ़लक पर निकला हो

ऐ काश हमारी क़िस्मत में
ऐसी भी कोई शाम आ जाए 
इक चाँद फ़लक पर निकला हो
इक चाँद सर-ए-बाम आ जाए! 

Thursday, October 17, 2019

Honsle Zindagi ke dekhte hai.n,

Honsle Zindagi ke dekhte hai.n,
Chaliye kuchh roz jee ke dekhte hai.n..

Neend pichhli sadi se zakhmi hai,
Khwaab agli sadi ke dekhte hai.n..

Baarisho.n se to pyaas bujhti nahi,
Aaiye zehar pee ke dekhte hai.n..

राहत इंदौरी 

तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है!

साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है लेकिन, 
तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है! 

Tuesday, October 15, 2019

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिले


अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिले
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले

ढूंढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये खज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिले

तू खुदा है, न मेरा इश्क फरिश्तों जैसा
दोनों इन्सां हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिले

ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बढ़ता है शराबे जो शराबों में मिले 

अब न मैं हूँ, न तू है, न वो माज़ी है फ़राज़
जैसे दो साये तमन्ना के सराबों में मिले! 

-Faraz 

राम तुम्हारे युग का रावण, अच्छा था।

राम तुम्हारे युग का रावण, अच्छा था।
दस ते दस चेहरे, सब बाहर रखता था!

ऐ देखने वालो मुझे हँस हँस के न देखो

दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे
वर्ना कहीं तक़दीर तमाशा न बना दे

ऐ देखने वालो मुझे हँस हँस के न देखो
तुम को भी मोहब्बत कहीं मुझ सा न बना दे!

Monday, October 14, 2019

कुछ इश्क़ किया, कुछ काम किया

हम जीते जी मसरूफ़ रहे
कुछ इश्क़ किया, कुछ काम किया
काम इश्क़ के आड़े आता रहा
और इश्क़ से काम उलझता रहा
फिर आखिर तंग आ कर हमने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया

~ फैज़ अहमद फैज़

Saturday, October 12, 2019

ख़त्म कुछ देर को दुनिया का झमेला कर दे

ख़त्म कुछ देर को दुनिया का झमेला कर दे
ख़ुद के अन्दर से गुज़रना है अकेला कर दे

डॉ कुमार विश्वास

तुम हो जाता हूँ

अच्छा   ख़ासा   बैठे  बैठे  गुम  हो  जाता  हूँ,
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ!

शजर ढूँड रहे हैं!

अब शाम है तो शहर में, गाँव के परिंदे
रहने के लिए कोई शजर ढूँड रहे हैं!

Friday, October 11, 2019

जिंदगी के हसीं लम्हे इस तरह निकाल देते हैं

"जिंदगी के हसीं लम्हे इस तरह निकाल देते हैं,
जवानी के लुफ्त को बोतल में ढाल देते हैं...!"

जिंदादिल रहिये

ज़िंदा दिल रहिए ज़नाब,
ये चहेरे पे उदासी कैसी,
वक्त तो बीत ही रहा है,
उम्र की ऐसी की तैसी!

इंसान का चेहरा नहीं क़िरदार दिखा दे।

आइना कोई ऐसा बना दे, ऐ ख़ुदा जो,
इंसान का चेहरा नहीं क़िरदार दिखा दे।

जिंदादिल रहिये

ज़िंदा दिल रहिए ज़नाब,
ये चहेरे पे उदासी कैसी,
वक्त तो बीत ही रहा है,
उम्र की ऐसी की तैसी!

जिंदादिल रहिये

ज़िंदा दिल रहिए ज़नाब,
ये चहेरे पे उदासी कैसी,
वक्त तो बीत ही रहा है,
उम्र की ऐसी की तैसी!

कदे से मेरी जवानी उठा के ला

कहते हैं उम्र-ए-रफ़्ता कभी लौटती नहीं,
जा मय-कदे से मेरी जवानी उठा के ला!

मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी

मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा

~ परवीन शाकिर

Thursday, October 10, 2019

साक्षी रहे संसार करता हूँ प्रतिज्ञा पार्थ मैं,

साक्षी रहे संसार करता हूँ प्रतिज्ञा पार्थ मैं,
पूरा करूँगा कार्य सब कथानुसार यथार्थ मैं।
जो एक बालक को कपट से मार हँसते हैं अभी,
वे शत्रु सत्वर शोक-सागर-मग्न दिखेंगे सभी।

~ मैथिलीशरण गुप्त ('अर्जुन की प्रतिज्ञा' से)

एक ही शख्स था जहां में क्या?

उम्र गुजरेगी इम्तेहान में क्या,
दाग ही देंगे हमको दान में क्या?
ये मुझे चैन क्यों नहीं पड़ता,
एक ही शख्स था जहां में क्या?

क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए

भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम,
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए!

सुकून याद में तेरी न भूलने में क़रार!

ये किस अज़ाब में छोड़ा है तू ने इस दिल को,
सुकून याद में तेरी न भूलने में क़रार!

तेरे गिरने में तेरी हार नहीं

तेरे गिरने में तेरी हार नहीं
तू इंसान है, अवतार नहीं
गिर, उठ, चल, दौड़, भाग
क्योंकि,
जीवन संक्षिप्त है
इसका कोई सार नहीं!

Wednesday, October 9, 2019

लेकिन कभी रोया नहीं

जानता हूँ एक ऐसे शख़्स को मैं भी
ग़म से पत्थर हो गया लेकिन कभी रोया नहीं

तू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे खोया नहीं

ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
तू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे खोया नहीं

सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते!

किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते,
सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते!

अपनी ही अदा से

अपनी ही तेग़-ए-अदा से आप घायल हो गया,
चाँद ने पानी में देखा और पागल हो गया!

एक रिश्ता

एक रिश्ता ,
बेनाम सा ,
ना हासिल ,
ना जुदा ,
ना खोया ,
ना मिला ,
फ़िर भी ,
क़रीब सा ,
मोहोब्बत तो नहीं...
पर मोहोब्बत सा ,
ज़रूरत भी नहीं ,
पर ज़रूरी सा ,
जाने क्या है ,
और कैसा है ,
शायद रिश्ता है ये ,
तेरा मेरा रिश्ता,
बस दिल का!

जहाँ तुम नहीं वहाँ हम अकेले हैं !

हजारो महफिलें हैं और लाखों मेले हैं,
पर जहाँ तुम नहीं वहाँ हम अकेले हैं !

तुम को देखें कि

तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो,
तुम को देखें कि तुम से बात करें!

एक बार दिल तो धड़का मगर, फिर सम्भल गया!

मुद्दत के बाद आज उसे देखकर, ऐ दोस्त,
एक बार दिल तो धड़का मगर, फिर सम्भल गया!

मगर फिर भी

किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी,
ये हुस्नो-इश्क़ तो धोखा है सब मगर फिर भी!
हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है,
नई-नई सी है कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी!

भीतर के रावण को जो, आग खुद लगायेंगे

भीतर के रावण को जो, आग खुद लगायेंगे,
सही मायने में वे ही, दशहरा मनाएंगे!

समेटना है हुस्न तेरा

समेटना है अभी हर्फ़ हर्फ़ हुस्न तिरा,

ग़ज़ल को अपनी तिरा आईना बनाना है!

सुकूत-ए-शाम-ए-अलम तू ही कुछ बता कि तुझे,

कहाँ पे ख़्वाब कहाँ रतजगा बनाना है!


सलाम

इस इंतिज़ार में बैठे हैं उन की महफ़िल में,
कि वो निगाह उठाएँ तो हम सलाम करें!

थोड़ा वक़्त चाहिए

मुझे मुकाम थोड़ा सख्त चाहिए,
जीने के लिए थोड़ा वक़्त चाहिए!
भीड़ में खो कर क्या मिलता है यहाँ,
इमारतों के बीच मुझे दरख़्त चाहिए!!

चले आओ जहाँ तक रौशनी मालूम होती है!

दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है,
चले आओ जहाँ तक रौशनी मालूम होती है!

Tuesday, October 8, 2019

दशहरा पर करें, हम इसका संहार॥

क्रोध, कपट, कटुता, कलह, चुगली, अत्याचार,
दगा, द्वेष, अन्याय, छल, रावण का परिवार॥

राम चिरंतन चेतना, राम सनातन सत्य।
रावण वैर-विकार है, रावण है दुष्कृत्य॥

वर्तमान का दशानन, यानी भ्रष्टाचार।
दशहरा पर करें, हम इसका संहार॥

काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं।।

काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं।

कुंभ-कर्ण तो मदहोशी हैं, मेघनाथ भी निर्दोषी है,
अरे तमाशा देखने वालों, इनसे बढ़कर हम दोषी हैं।

अनाचार में घिरती नारी, हाँ दहेज की भी लाचारी,
बदलो सभी रिवाज पुराने, जो घर-घर में आज अड़े हैं।
काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं।।

सड़कों पर कितने खर-दूषण, झपट ले रहे औरों का धन।
मायावी मारीच दौड़ते, और दुखाते हैं सब का मन।

सोने के मृग-सी है छलना, दूभर हो गया पेट का पलना।
गोदामों के बाहर कितने, मकरध्वज से जाल कड़े हैं।
काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं।।

लखनलाल ने सुनो ताड़का, आसमान पर स्वयं चढ़ा दी।
भाई के हाथों भाई के, राम राज्य की अब बरबादी।

हत्या, चोरी, राहजनी है, यह युग की तस्वीर बनी है,
आज जाति अरु धर्म मे देखो,
आपस मे ही बड़ी ठनी है।

न्याय, व्यवस्था में कमज़ोरी, आतंकों के स्वर तगड़े हैं।
काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं।।

बाली जैसे कई छलावे, आज हिलाते सिंहासन को,
अहिरावण आतंक मचाता, भय लगता है अनुशासन को।

खड़ा विभीषण सोच रहा है, अपना ही सर नोच रहा है।
नेताओं के महाकुंभ में, सेवा नहीं प्रपंच बड़े हैं।
काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं।।

रावण बनना भी कहाँ आसान?

रावण बनना भी कहाँ आसान?

रावण में अहंकार था,
तो पश्चाताप भी था,
रावण में वासना थी,
तो संयम भी था!

रावण में सीता के अपहरण की ताकत थी,
तो बिना सहमति परस्त्री को,
स्पर्श भी न करने का संकल्प भी था!

सीता जीवित मिली,
ये राम की ही ताकत थी,
पर पवित्र मिली,
ये रावण की भी मर्यादा थी!

राम,
तुम्हारे युग का रावण अच्छा था,
दस के दस चेहरे, सब “बाहर” रखता था!

महसूस किया है कभी,
उस जलते हुए रावण का दुःख,
जो सामने खड़ी भीड़ से,
बारबार पूछ रहा था?

“तुम में से कोई राम है क्या?”

धड़क जाता है

इस दिल को संभालना बहुत बड़ी बात होती है,
धड़क जाता है ये जब भी तुम्हारी याद आती है!

कहानी फिर सही।

दिल के लुटने का सबब पूछो न सबके सामने
नाम आएगा तुम्हारा, ये कहानी फिर सही।

नफ़रतों के तीर खाकर दोस्तों के शहर में हमने किस-किस को पुकारा, ये कहानी फिर सही।

क्या बताएँ प्यार की बाज़ी वफ़ा की राह में कौन जीता कौन हारा, ये कहानी फिर सही...

मैं ने तुझे याद किया!

दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया,
जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया!

~जोश

दिन में ख्वाब देखे!

तेरी जुस्तजू में निकले तो अजब सराफ देखे,
कभी शब को दिन कहा तो कभी दिन में ख्वाब देखे!

वो घर अच्छा नहीं लगता!

फ़कत माल - जर -ए - दीवार - ओ - दर
अच्छा नहीं लगता,
जिस घर में बच्चॆ नहीं होते वो घर
अच्छा नहीं लगता!

घर कर देता है

एक तुम्हारा होना क्या से क्या कर देता है
बेजुबान छत दीवारों को घर कर देता है।

दुआ में असर कर दे!

तू तो ना मांगने वाले को भी बेहिसाब देता है, ए ख़ुदा
बस इतनी इल्तिजा, तू मेरी हर दुआ में असर कर दे!

घर कर दे!

मेरे ख़ुदा मुझे इतना तो मोतबर कर दे,
मैं जिस मकान में रहता हूँ उस को घर कर दे!

कौन है वो जो इसे फिर से जनम देता है..?

”राम होने में या रावण में है अंतर इतना,
एक दुनिया को खुशी दूसरा गम देता है !
हम ने रावण को बरस दर बरस जलाया है,
कौन है वो जो इसे फिर से जनम देता है..?

उस रावण में आग लगाओ!

ख़ुशियों का सूरज चमकाकर अंधियारों का ज़ोर घटाओ,
दिल के अन्दर जो रावण है उस रावण में आग लगाओ!

मानस के कागद पर प्रियतम

मानस के कागद पर प्रियतम
    दो अक्षर का गीत लिखा
पहला अक्षर नाम तुम्हारा
  दूजा अक्षर प्रीत लिखा

अब न कोई आधि-व्याधि
अब न कोई साध रही
अब न मोह की बन्धन बाधा
नदिया यूं निर्बाध बही
 नाम तेरे की माला पहनी
  जपने की तू रीत सिखा

कि फिर आ भी न सकूं

उसकी हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूं,
ढूंढने उसको चला हूं जिसे पा भी न सकूं!

मेहरबां होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त,
मैं गया वक़्त नहीं हूं कि फिर आ भी न सकूं!

रावण, दशानन, दशहरा

क्रोध, कपट, कटुता, कलह, चुगली, अत्याचार,
दगा, द्वेष, अन्याय, छल, रावण का परिवार॥

राम चिरंतन चेतना, राम सनातन सत्य।
रावण वैर-विकार है, रावण है दुष्कृत्य॥

वर्तमान का दशानन, यानी भ्रष्टाचार।
दशहरा पर करें, हम इसका संहार॥

झुक नहीं सकता

ग़ुरूरे वक्त तुझको बात इतनी कौन समझाये,
वो सर झुक ही नहीं सकता जिसे कट जाना आता है !!

Monday, October 7, 2019

रस्ता, मंजिल, ख्वाहिश, दरिया, साहिल

जो मिला ये है रास्ता, पर मंज़िल ये नहीं
ख्वाहिशें उस दरिया की, जहाँ साहिल ही नहीं!

हकदार

“वही हक़दार हैं किनारों के,
जो बदल दें बहाव धारों के..!!”

गुफ़्तगू

मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
तुझ से मिलने की आरज़ू की है
तेरे जाने के बाद भी मैं ने
तेरी ख़ुशबू से गुफ़्तुगू की है!

मैं डूब रहा हूँ

दुनिया तिरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ
तू चाँद मुझे कहती थी मैं डूब रहा हूँ

~मुनव्वर राना

Sunday, October 6, 2019

सब रोये

अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोए,
शजर गिरा तो परिंदे तमाम शब रोए। 😔

दिल बड़ा कीजिए!

यूं ही न अपने मिजाज को चिड़चिड़ा कीजिए,
अगर कोई बात छोटी करे तो आप दिल बड़ा कीजिए!

तुम याद आओगी

रात की चादर ओढ़कर
चाँदनी खिलखिलाएगी
तब तुम याद आओगी।

उजास की चुनरी लपेटकर
किरणें मुस्कुराएँगी
तब तुम याद आओगी।

ठंडी चाँदनी में।
गर्म किरणों में।
सुस्त आँखों में।
गहरे सपनो में।
सब में तुम
समाहित हो जाओगी।
और याद आओगी।

Saturday, October 5, 2019

तबियत नहीं मिलती

कुछ लोग यूँही शहर में हम से भी ख़फ़ा हैं,
हर एक से अपनी भी तबीअ'त नहीं मिलती!

अच्छे दिन आयेंगे

शाख़ें रहीं तो फूल भी पत्ते भी आएँगे,
ये दिन अगर बुरे हैं तो अच्छे भी आएँगे!

Friday, October 4, 2019

समझ सोच कर

बुलंदियों को पता चल गया के फिर मैंने
हवा का टूटा हुआ एक पर उठाया है..

महाबली से बग़ावत बहुत ज़रूरी है,
क़दम ये हमने समझ सोच कर उठाया है!

-राहत इंदौरी

इश्क़ की ऐसी रिवायात

दिल तो रोता रहे ओर आँख से आँसू न बहे
इश्क़ की ऐसी रिवायात ने दिल तोड़ दिया

आप को प्यार है मुझ से कि नहीं है मुझ से
जाने क्यूँ ऐसे सवालात ने दिल तोड़ दिया

~सुदर्शन फ़ाख़िर

बेवफा हो जाएगा

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा

~ बशीर बद्र

Thursday, October 3, 2019

शराब शायरी

ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर
या वो जगह बता दे जहाँ पर ख़ुदा न हो!
-Galib
(ज़ाहिद - सांसारिक प्रपंचों आदि से दूर रहकर भगवत् भजन करनेवाला व्यक्ति)

मस्जिद ख़ुदा का घर है, कोई पीने की जगह नहीं ,
काफिर के दिल में जा, वहाँ पर ख़ुदा नहीं!
-Iqbal

काफिर के दिल से आया हूँ मैं ये देख कर वहाँ पर जगह नही,
खुदा मौजूद है वहा भी, काफिर को पता नहीं!
-Faraz

खुदा तो मौजूद दुनिया में कही भी जगह नही,
तू जन्नत में जा वहाँ पीना मना नहीं ”
-Wasi

“पीता हूँ ग़म-ए-दुनिया भुलाने के लिए अौर कुछ नही,
जन्नत में कहाँ ग़म है वहाँ पीने में मजा नहीं”
-Saqi

“हम पीते हैं मज़े के लिए, बेवजह बदनाम गम है,
पुरी बोतल पीकर देखों, फिर दुनिया क्या जन्नत से कम है!
-Sharabi

तुम बोल उठे, युग बोल उठा,

तुम बोल उठे, युग बोल उठा,
तुम मौन बने, युग मौन बना,
कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर
युगकर्म जगा, युगधर्म तना;
युग-परिवर्तक, युग-संस्थापक,
युग-संचालक, हे युगाधार!
युग-निर्माता, युग-मूर्ति! तुम्हें
युग-युग तक युग का नमस्कार!

~ सोहनलाल द्विवेदी ('युगावतार गांधी' से)

Tuesday, October 1, 2019

तुम पे होता नहीं है असर तो क्या कीजे.

वो मानता ही नहीं हमसफ़र तो क्या कीजे,
हर इक दुआ है अगर बेअसर तो क्या कीजे.

नज़र की राह में यूँ तो कई नज़ारे हैं,
तुम्हीं पे जा के जो ठहरे नज़र तो क्या कीजे.

हज़ार बार कहा है के’- ‘प्यार है तुमसे’
जो तुम पे होता नहीं है असर तो क्या कीजे.

इश्क बेपनाह करना / खुद को तबाह करना

"माना की जायज/आसाँ नहीं,
                इश्क़ तुम से बेपनाह करना"
"मगर तुम अच्छे लगे,
                तो ठान लिया ये गुनाह करना"

माना की आसाँ नहीं,
इश्क़ तुम से बेपनाह करना!
तुम अच्छे लगे तो ठान लिया,
खुद को तबाह करना!!

मेरी रज़ा

आंखें में पढ़ो, और जानो, 'मेरी' रज़ा क्या है,
हर बात लफ़्ज़ों से बयान हो, तो मज़ा क्या है!

हमें मालूम है दो दिल

"हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते,
मगर रस्मे-वफ़ा ये है, कि ये भी कह नहीं सकते,
जरा कुछ देर तुम उन साहिलों की चीख सुन भर लो,
जो  लहरों में तो डूबे हैं, मगर सँग बह नहीं सकते...!"

~डॉ. कुमार विश्वास

ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं

लीक पर वे चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं।

~ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना