Wednesday, October 30, 2019
गुजर जाते है खूबसूरत लम्हें
इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा?
कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं
हर अदा अच्छी ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं
फिर से इक बार उसे ख़ुद पे सितम ढाने दूँ
कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं
इंसान का बेहतरीन होना गुनाह है
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला
इक चाँद बग़ल में हो इक चाँद मुक़ाबिल हो!
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक
Tuesday, October 29, 2019
मेरे जीवन का हर किस्सा, कहानी हो गया...
मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया
दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है और
तेरे बेहिसाब ख्यालों ने बेताहासा लफ्ज दिए
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क फरिश्तों जैसा
कोई पलकों में उजाले नहीं भरने आया!
कोई पलकों में उजाले नहीं भरने आया!
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
मांगी हुई निज़ात मेरे काम की नहीं
अदना सा फ़साना
कमबख्त तेरी यादें
जैसे कोई गुनाह किये जा रहा हूँ मैं!
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है!
Monday, October 28, 2019
आओ अंधेरा मिटाने का हुनर सीखें हम
Saturday, October 26, 2019
बंद हथेलियों में... तक़दीर ढूंढते हैं लोग!
नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं,
ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था
है अजीब शहर की जिंदगी
Friday, October 25, 2019
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में!
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
Wednesday, October 23, 2019
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है
तन्हाई को जगह जगह बिखराया हम ने
Tuesday, October 22, 2019
कैसे सीखा डँसना-विष कहाँ पाया?
तेरा मिलना ऐसे होता है
Monday, October 21, 2019
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल
Sunday, October 20, 2019
हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे
तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता
बड़ी मुश्किल से मिलता है! l
Friday, October 18, 2019
इक दर्द तुम्हारा और सही.
तेरी ख्वाहिश कर ली तो कौन सा गुनाह किया
तुम को देखें कि तुम से बात करें
इक चाँद फ़लक पर निकला हो
Thursday, October 17, 2019
Honsle Zindagi ke dekhte hai.n,
तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है!
Tuesday, October 15, 2019
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिले
राम तुम्हारे युग का रावण, अच्छा था।
राम तुम्हारे युग का रावण, अच्छा था।
दस ते दस चेहरे, सब बाहर रखता था!
ऐ देखने वालो मुझे हँस हँस के न देखो
दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे
वर्ना कहीं तक़दीर तमाशा न बना दे
ऐ देखने वालो मुझे हँस हँस के न देखो
तुम को भी मोहब्बत कहीं मुझ सा न बना दे!
Monday, October 14, 2019
कुछ इश्क़ किया, कुछ काम किया
हम जीते जी मसरूफ़ रहे
कुछ इश्क़ किया, कुछ काम किया
काम इश्क़ के आड़े आता रहा
और इश्क़ से काम उलझता रहा
फिर आखिर तंग आ कर हमने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया
~ फैज़ अहमद फैज़
Saturday, October 12, 2019
ख़त्म कुछ देर को दुनिया का झमेला कर दे
ख़त्म कुछ देर को दुनिया का झमेला कर दे
ख़ुद के अन्दर से गुज़रना है अकेला कर दे
डॉ कुमार विश्वास
Friday, October 11, 2019
जिंदगी के हसीं लम्हे इस तरह निकाल देते हैं
"जिंदगी के हसीं लम्हे इस तरह निकाल देते हैं,
जवानी के लुफ्त को बोतल में ढाल देते हैं...!"
जिंदादिल रहिये
ज़िंदा दिल रहिए ज़नाब,
ये चहेरे पे उदासी कैसी,
वक्त तो बीत ही रहा है,
उम्र की ऐसी की तैसी!
इंसान का चेहरा नहीं क़िरदार दिखा दे।
आइना कोई ऐसा बना दे, ऐ ख़ुदा जो,
इंसान का चेहरा नहीं क़िरदार दिखा दे।
जिंदादिल रहिये
ज़िंदा दिल रहिए ज़नाब,
ये चहेरे पे उदासी कैसी,
वक्त तो बीत ही रहा है,
उम्र की ऐसी की तैसी!
जिंदादिल रहिये
ज़िंदा दिल रहिए ज़नाब,
ये चहेरे पे उदासी कैसी,
वक्त तो बीत ही रहा है,
उम्र की ऐसी की तैसी!
कदे से मेरी जवानी उठा के ला
कहते हैं उम्र-ए-रफ़्ता कभी लौटती नहीं,
जा मय-कदे से मेरी जवानी उठा के ला!
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा
~ परवीन शाकिर
Thursday, October 10, 2019
साक्षी रहे संसार करता हूँ प्रतिज्ञा पार्थ मैं,
साक्षी रहे संसार करता हूँ प्रतिज्ञा पार्थ मैं,
पूरा करूँगा कार्य सब कथानुसार यथार्थ मैं।
जो एक बालक को कपट से मार हँसते हैं अभी,
वे शत्रु सत्वर शोक-सागर-मग्न दिखेंगे सभी।
~ मैथिलीशरण गुप्त ('अर्जुन की प्रतिज्ञा' से)
एक ही शख्स था जहां में क्या?
उम्र गुजरेगी इम्तेहान में क्या,
दाग ही देंगे हमको दान में क्या?
ये मुझे चैन क्यों नहीं पड़ता,
एक ही शख्स था जहां में क्या?
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए
भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम,
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए!
सुकून याद में तेरी न भूलने में क़रार!
ये किस अज़ाब में छोड़ा है तू ने इस दिल को,
सुकून याद में तेरी न भूलने में क़रार!
तेरे गिरने में तेरी हार नहीं
तेरे गिरने में तेरी हार नहीं
तू इंसान है, अवतार नहीं
गिर, उठ, चल, दौड़, भाग
क्योंकि,
जीवन संक्षिप्त है
इसका कोई सार नहीं!
Wednesday, October 9, 2019
तू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे खोया नहीं
ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
तू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे खोया नहीं
सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते!
किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते,
सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते!
एक रिश्ता
एक रिश्ता ,
बेनाम सा ,
ना हासिल ,
ना जुदा ,
ना खोया ,
ना मिला ,
फ़िर भी ,
क़रीब सा ,
मोहोब्बत तो नहीं...
पर मोहोब्बत सा ,
ज़रूरत भी नहीं ,
पर ज़रूरी सा ,
जाने क्या है ,
और कैसा है ,
शायद रिश्ता है ये ,
तेरा मेरा रिश्ता,
बस दिल का!
जहाँ तुम नहीं वहाँ हम अकेले हैं !
हजारो महफिलें हैं और लाखों मेले हैं,
पर जहाँ तुम नहीं वहाँ हम अकेले हैं !
एक बार दिल तो धड़का मगर, फिर सम्भल गया!
मुद्दत के बाद आज उसे देखकर, ऐ दोस्त,
एक बार दिल तो धड़का मगर, फिर सम्भल गया!
मगर फिर भी
किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी,
ये हुस्नो-इश्क़ तो धोखा है सब मगर फिर भी!
हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है,
नई-नई सी है कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी!
भीतर के रावण को जो, आग खुद लगायेंगे
भीतर के रावण को जो, आग खुद लगायेंगे,
सही मायने में वे ही, दशहरा मनाएंगे!
समेटना है हुस्न तेरा
समेटना है अभी हर्फ़ हर्फ़ हुस्न तिरा,
ग़ज़ल को अपनी तिरा आईना बनाना है!
सुकूत-ए-शाम-ए-अलम तू ही कुछ बता कि तुझे,
कहाँ पे ख़्वाब कहाँ रतजगा बनाना है!
थोड़ा वक़्त चाहिए
मुझे मुकाम थोड़ा सख्त चाहिए,
जीने के लिए थोड़ा वक़्त चाहिए!
भीड़ में खो कर क्या मिलता है यहाँ,
इमारतों के बीच मुझे दरख़्त चाहिए!!
चले आओ जहाँ तक रौशनी मालूम होती है!
दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है,
चले आओ जहाँ तक रौशनी मालूम होती है!
Tuesday, October 8, 2019
दशहरा पर करें, हम इसका संहार॥
क्रोध, कपट, कटुता, कलह, चुगली, अत्याचार,
दगा, द्वेष, अन्याय, छल, रावण का परिवार॥
राम चिरंतन चेतना, राम सनातन सत्य।
रावण वैर-विकार है, रावण है दुष्कृत्य॥
वर्तमान का दशानन, यानी भ्रष्टाचार।
दशहरा पर करें, हम इसका संहार॥
काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं।।
काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं।
कुंभ-कर्ण तो मदहोशी हैं, मेघनाथ भी निर्दोषी है,
अरे तमाशा देखने वालों, इनसे बढ़कर हम दोषी हैं।
अनाचार में घिरती नारी, हाँ दहेज की भी लाचारी,
बदलो सभी रिवाज पुराने, जो घर-घर में आज अड़े हैं।
काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं।।
सड़कों पर कितने खर-दूषण, झपट ले रहे औरों का धन।
मायावी मारीच दौड़ते, और दुखाते हैं सब का मन।
सोने के मृग-सी है छलना, दूभर हो गया पेट का पलना।
गोदामों के बाहर कितने, मकरध्वज से जाल कड़े हैं।
काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं।।
लखनलाल ने सुनो ताड़का, आसमान पर स्वयं चढ़ा दी।
भाई के हाथों भाई के, राम राज्य की अब बरबादी।
हत्या, चोरी, राहजनी है, यह युग की तस्वीर बनी है,
आज जाति अरु धर्म मे देखो,
आपस मे ही बड़ी ठनी है।
न्याय, व्यवस्था में कमज़ोरी, आतंकों के स्वर तगड़े हैं।
काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं।।
बाली जैसे कई छलावे, आज हिलाते सिंहासन को,
अहिरावण आतंक मचाता, भय लगता है अनुशासन को।
खड़ा विभीषण सोच रहा है, अपना ही सर नोच रहा है।
नेताओं के महाकुंभ में, सेवा नहीं प्रपंच बड़े हैं।
काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं।।
रावण बनना भी कहाँ आसान?
रावण बनना भी कहाँ आसान?
रावण में अहंकार था,
तो पश्चाताप भी था,
रावण में वासना थी,
तो संयम भी था!
रावण में सीता के अपहरण की ताकत थी,
तो बिना सहमति परस्त्री को,
स्पर्श भी न करने का संकल्प भी था!
सीता जीवित मिली,
ये राम की ही ताकत थी,
पर पवित्र मिली,
ये रावण की भी मर्यादा थी!
राम,
तुम्हारे युग का रावण अच्छा था,
दस के दस चेहरे, सब “बाहर” रखता था!
महसूस किया है कभी,
उस जलते हुए रावण का दुःख,
जो सामने खड़ी भीड़ से,
बारबार पूछ रहा था?
“तुम में से कोई राम है क्या?”
कहानी फिर सही।
दिल के लुटने का सबब पूछो न सबके सामने
नाम आएगा तुम्हारा, ये कहानी फिर सही।
नफ़रतों के तीर खाकर दोस्तों के शहर में हमने किस-किस को पुकारा, ये कहानी फिर सही।
क्या बताएँ प्यार की बाज़ी वफ़ा की राह में कौन जीता कौन हारा, ये कहानी फिर सही...
मैं ने तुझे याद किया!
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया,
जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया!
~जोश
दिन में ख्वाब देखे!
तेरी जुस्तजू में निकले तो अजब सराफ देखे,
कभी शब को दिन कहा तो कभी दिन में ख्वाब देखे!
वो घर अच्छा नहीं लगता!
फ़कत माल - जर -ए - दीवार - ओ - दर
अच्छा नहीं लगता,
जिस घर में बच्चॆ नहीं होते वो घर
अच्छा नहीं लगता!
दुआ में असर कर दे!
तू तो ना मांगने वाले को भी बेहिसाब देता है, ए ख़ुदा
बस इतनी इल्तिजा, तू मेरी हर दुआ में असर कर दे!
कौन है वो जो इसे फिर से जनम देता है..?
”राम होने में या रावण में है अंतर इतना,
एक दुनिया को खुशी दूसरा गम देता है !
हम ने रावण को बरस दर बरस जलाया है,
कौन है वो जो इसे फिर से जनम देता है..?
उस रावण में आग लगाओ!
ख़ुशियों का सूरज चमकाकर अंधियारों का ज़ोर घटाओ,
दिल के अन्दर जो रावण है उस रावण में आग लगाओ!
मानस के कागद पर प्रियतम
मानस के कागद पर प्रियतम
दो अक्षर का गीत लिखा
पहला अक्षर नाम तुम्हारा
दूजा अक्षर प्रीत लिखा
अब न कोई आधि-व्याधि
अब न कोई साध रही
अब न मोह की बन्धन बाधा
नदिया यूं निर्बाध बही
नाम तेरे की माला पहनी
जपने की तू रीत सिखा
कि फिर आ भी न सकूं
उसकी हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूं,
ढूंढने उसको चला हूं जिसे पा भी न सकूं!
मेहरबां होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त,
मैं गया वक़्त नहीं हूं कि फिर आ भी न सकूं!
रावण, दशानन, दशहरा
क्रोध, कपट, कटुता, कलह, चुगली, अत्याचार,
दगा, द्वेष, अन्याय, छल, रावण का परिवार॥
राम चिरंतन चेतना, राम सनातन सत्य।
रावण वैर-विकार है, रावण है दुष्कृत्य॥
वर्तमान का दशानन, यानी भ्रष्टाचार।
दशहरा पर करें, हम इसका संहार॥
Monday, October 7, 2019
रस्ता, मंजिल, ख्वाहिश, दरिया, साहिल
जो मिला ये है रास्ता, पर मंज़िल ये नहीं
ख्वाहिशें उस दरिया की, जहाँ साहिल ही नहीं!
गुफ़्तगू
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
तुझ से मिलने की आरज़ू की है
तेरे जाने के बाद भी मैं ने
तेरी ख़ुशबू से गुफ़्तुगू की है!
मैं डूब रहा हूँ
दुनिया तिरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूँ
तू चाँद मुझे कहती थी मैं डूब रहा हूँ
~मुनव्वर राना
Sunday, October 6, 2019
तुम याद आओगी
रात की चादर ओढ़कर
चाँदनी खिलखिलाएगी
तब तुम याद आओगी।
उजास की चुनरी लपेटकर
किरणें मुस्कुराएँगी
तब तुम याद आओगी।
ठंडी चाँदनी में।
गर्म किरणों में।
सुस्त आँखों में।
गहरे सपनो में।
सब में तुम
समाहित हो जाओगी।
और याद आओगी।
Saturday, October 5, 2019
Friday, October 4, 2019
समझ सोच कर
बुलंदियों को पता चल गया के फिर मैंने
हवा का टूटा हुआ एक पर उठाया है..
महाबली से बग़ावत बहुत ज़रूरी है,
क़दम ये हमने समझ सोच कर उठाया है!
-राहत इंदौरी
इश्क़ की ऐसी रिवायात
दिल तो रोता रहे ओर आँख से आँसू न बहे
इश्क़ की ऐसी रिवायात ने दिल तोड़ दिया
आप को प्यार है मुझ से कि नहीं है मुझ से
जाने क्यूँ ऐसे सवालात ने दिल तोड़ दिया
~सुदर्शन फ़ाख़िर
Thursday, October 3, 2019
शराब शायरी
ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर
या वो जगह बता दे जहाँ पर ख़ुदा न हो!
-Galib
(ज़ाहिद - सांसारिक प्रपंचों आदि से दूर रहकर भगवत् भजन करनेवाला व्यक्ति)
मस्जिद ख़ुदा का घर है, कोई पीने की जगह नहीं ,
काफिर के दिल में जा, वहाँ पर ख़ुदा नहीं!
-Iqbal
काफिर के दिल से आया हूँ मैं ये देख कर वहाँ पर जगह नही,
खुदा मौजूद है वहा भी, काफिर को पता नहीं!
-Faraz
खुदा तो मौजूद दुनिया में कही भी जगह नही,
तू जन्नत में जा वहाँ पीना मना नहीं ”
-Wasi
“पीता हूँ ग़म-ए-दुनिया भुलाने के लिए अौर कुछ नही,
जन्नत में कहाँ ग़म है वहाँ पीने में मजा नहीं”
-Saqi
“हम पीते हैं मज़े के लिए, बेवजह बदनाम गम है,
पुरी बोतल पीकर देखों, फिर दुनिया क्या जन्नत से कम है!
-Sharabi
तुम बोल उठे, युग बोल उठा,
तुम बोल उठे, युग बोल उठा,
तुम मौन बने, युग मौन बना,
कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर
युगकर्म जगा, युगधर्म तना;
युग-परिवर्तक, युग-संस्थापक,
युग-संचालक, हे युगाधार!
युग-निर्माता, युग-मूर्ति! तुम्हें
युग-युग तक युग का नमस्कार!
~ सोहनलाल द्विवेदी ('युगावतार गांधी' से)
Tuesday, October 1, 2019
तुम पे होता नहीं है असर तो क्या कीजे.
वो मानता ही नहीं हमसफ़र तो क्या कीजे,
हर इक दुआ है अगर बेअसर तो क्या कीजे.
नज़र की राह में यूँ तो कई नज़ारे हैं,
तुम्हीं पे जा के जो ठहरे नज़र तो क्या कीजे.
हज़ार बार कहा है के’- ‘प्यार है तुमसे’
जो तुम पे होता नहीं है असर तो क्या कीजे.
इश्क बेपनाह करना / खुद को तबाह करना
"माना की जायज/आसाँ नहीं,
इश्क़ तुम से बेपनाह करना"
"मगर तुम अच्छे लगे,
तो ठान लिया ये गुनाह करना"
माना की आसाँ नहीं,
इश्क़ तुम से बेपनाह करना!
तुम अच्छे लगे तो ठान लिया,
खुद को तबाह करना!!
मेरी रज़ा
आंखें में पढ़ो, और जानो, 'मेरी' रज़ा क्या है,
हर बात लफ़्ज़ों से बयान हो, तो मज़ा क्या है!
हमें मालूम है दो दिल
"हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते,
मगर रस्मे-वफ़ा ये है, कि ये भी कह नहीं सकते,
जरा कुछ देर तुम उन साहिलों की चीख सुन भर लो,
जो लहरों में तो डूबे हैं, मगर सँग बह नहीं सकते...!"
~डॉ. कुमार विश्वास
ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं
लीक पर वे चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं।
~ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना