Tuesday, October 29, 2019

कोई पलकों में उजाले नहीं भरने आया!

"आँख की छत पे टहलते रहे काले साए
कोई पलकों में उजाले नहीं भरने आया! 
कितनी दीवाली गयीं, कितने दशहरे बीते
इन मुंडेरों पे कोई दीप न धरने आया! 

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