आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
अब शाम है तो शहर में, गाँव के परिंदे रहने के लिए कोई शजर ढूँड रहे हैं!
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