"हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते,
मगर रस्मे-वफ़ा ये है, कि ये भी कह नहीं सकते,
जरा कुछ देर तुम उन साहिलों की चीख सुन भर लो,
जो लहरों में तो डूबे हैं, मगर सँग बह नहीं सकते...!"
~डॉ. कुमार विश्वास
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
No comments:
Post a Comment