Wednesday, October 9, 2019

समेटना है हुस्न तेरा

समेटना है अभी हर्फ़ हर्फ़ हुस्न तिरा,

ग़ज़ल को अपनी तिरा आईना बनाना है!

सुकूत-ए-शाम-ए-अलम तू ही कुछ बता कि तुझे,

कहाँ पे ख़्वाब कहाँ रतजगा बनाना है!


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