किसी का यूं तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी,
ये हुस्नो-इश्क़ तो धोखा है सब मगर फिर भी!
हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है,
नई-नई सी है कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी!
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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