मुझे मुकाम थोड़ा सख्त चाहिए,
जीने के लिए थोड़ा वक़्त चाहिए!
भीड़ में खो कर क्या मिलता है यहाँ,
इमारतों के बीच मुझे दरख़्त चाहिए!!
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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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