आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
बुलंदियों को पता चल गया के फिर मैंने हवा का टूटा हुआ एक पर उठाया है..
महाबली से बग़ावत बहुत ज़रूरी है, क़दम ये हमने समझ सोच कर उठाया है!
-राहत इंदौरी
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