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आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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गुजर जाते है खूबसूरत लम्हें
इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा?
कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं
हर अदा अच्छी ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं
फिर से इक बार उसे ख़ुद पे सितम ढाने दूँ
कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं
इंसान का बेहतरीन होना गुनाह है
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला
इक चाँद बग़ल में हो इक चाँद मुक़ाबिल हो!
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक
निगाहें इस क़दर क़ातिल कि उफ़
वो शख्स
मेरे जीवन का हर किस्सा, कहानी हो गया...
मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया
दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है और
तेरे बेहिसाब ख्यालों ने बेताहासा लफ्ज दिए
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क फरिश्तों जैसा
कोई पलकों में उजाले नहीं भरने आया!
तुझ से मिलने की आरज़ू है वही
कोई पलकों में उजाले नहीं भरने आया!
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
मांगी हुई निज़ात मेरे काम की नहीं
अदना सा फ़साना
कमी खलती रही
कमबख्त तेरी यादें
जैसे कोई गुनाह किये जा रहा हूँ मैं!
कई लोग दिल से उतर जायेंगे।
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है!
आओ अंधेरा मिटाने का हुनर सीखें हम
बंद हथेलियों में... तक़दीर ढूंढते हैं लोग!
नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं,
ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था
मुझ को देख कर तन्हा
है अजीब शहर की जिंदगी
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में!
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है
तन्हाई को जगह जगह बिखराया हम ने
कैसे सीखा डँसना-विष कहाँ पाया?
तेरा मिलना ऐसे होता है
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल
हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे
तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता
बड़ी मुश्किल से मिलता है! l
इक दर्द तुम्हारा और सही.
तेरी मोहब्बत में
तेरी ख्वाहिश कर ली तो कौन सा गुनाह किया
तुम को देखें कि तुम से बात करें
इक चाँद फ़लक पर निकला हो
Honsle Zindagi ke dekhte hai.n,
तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है!
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिले
राम तुम्हारे युग का रावण, अच्छा था।
ऐ देखने वालो मुझे हँस हँस के न देखो
कुछ इश्क़ किया, कुछ काम किया
ख़त्म कुछ देर को दुनिया का झमेला कर दे
तुम हो जाता हूँ
शजर ढूँड रहे हैं!
जिंदगी के हसीं लम्हे इस तरह निकाल देते हैं
जिंदादिल रहिये
इंसान का चेहरा नहीं क़िरदार दिखा दे।
जिंदादिल रहिये
जिंदादिल रहिये
कदे से मेरी जवानी उठा के ला
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
साक्षी रहे संसार करता हूँ प्रतिज्ञा पार्थ मैं,
एक ही शख्स था जहां में क्या?
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए
सुकून याद में तेरी न भूलने में क़रार!
तेरे गिरने में तेरी हार नहीं
लेकिन कभी रोया नहीं
तू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे खोया नहीं
सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते!
अपनी ही अदा से
एक रिश्ता
जहाँ तुम नहीं वहाँ हम अकेले हैं !
तुम को देखें कि
एक बार दिल तो धड़का मगर, फिर सम्भल गया!
मगर फिर भी
भीतर के रावण को जो, आग खुद लगायेंगे
समेटना है हुस्न तेरा
सलाम
थोड़ा वक़्त चाहिए
चले आओ जहाँ तक रौशनी मालूम होती है!
दशहरा पर करें, हम इसका संहार॥
काग़ज़ के रावण मत फूँकों, ज़िंदा रावण बहुत पड़े हैं।।
रावण बनना भी कहाँ आसान?
धड़क जाता है
कहानी फिर सही।
मैं ने तुझे याद किया!
दिन में ख्वाब देखे!
वो घर अच्छा नहीं लगता!
घर कर देता है
दुआ में असर कर दे!
घर कर दे!
कौन है वो जो इसे फिर से जनम देता है..?
उस रावण में आग लगाओ!
मानस के कागद पर प्रियतम
कि फिर आ भी न सकूं
रावण, दशानन, दशहरा
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Saturday, October 26, 2019
ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था
उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था!
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