आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
कहते हैं उम्र-ए-रफ़्ता कभी लौटती नहीं, जा मय-कदे से मेरी जवानी उठा के ला!
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