रात की चादर ओढ़कर
चाँदनी खिलखिलाएगी
तब तुम याद आओगी।
उजास की चुनरी लपेटकर
किरणें मुस्कुराएँगी
तब तुम याद आओगी।
ठंडी चाँदनी में।
गर्म किरणों में।
सुस्त आँखों में।
गहरे सपनो में।
सब में तुम
समाहित हो जाओगी।
और याद आओगी।
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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