Tuesday, October 15, 2019

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिले


अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिले
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले

ढूंढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये खज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिले

तू खुदा है, न मेरा इश्क फरिश्तों जैसा
दोनों इन्सां हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिले

ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बढ़ता है शराबे जो शराबों में मिले 

अब न मैं हूँ, न तू है, न वो माज़ी है फ़राज़
जैसे दो साये तमन्ना के सराबों में मिले! 

-Faraz 

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