वो मानता ही नहीं हमसफ़र तो क्या कीजे,
हर इक दुआ है अगर बेअसर तो क्या कीजे.
नज़र की राह में यूँ तो कई नज़ारे हैं,
तुम्हीं पे जा के जो ठहरे नज़र तो क्या कीजे.
हज़ार बार कहा है के’- ‘प्यार है तुमसे’
जो तुम पे होता नहीं है असर तो क्या कीजे.
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
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